मेजर धन सिंह थापा परमवीर (जीवनी)

मेजर धन सिंह थापा जीवनी ,बायोग्रापी

मेजर धन सिंह थापा  परमवीर  chkra
IMAGE SOURCE GOOGAL

मेजर धन सिंह थापा को 1962 के भारत चीन युद्ध में असीम साहस ,कुशल नेतृत्व ,और निस्वार्थ बलिदान के लिए परमवीर चक्र दिया गया था,मेजर धन सिंह थापा ने अपने 28 सैनिकों के साथ मिलकर चीनी सेना का ना केवल डटकर मुकाबला किया अपितु चीनी सेना को काफी नुकसान भी पहुचाया,हालाकि अपनी पोस्ट पर लड़ते लड़ते उनको और उनके साथियों को चीनी सेना द्वारा बंदी भी बना लिया गया था,
1962 में परमवीर चक्र मेजर धन सिंह थापा को मरणोप्रांत दिया गया था ,बाद में जब पता चला कि मेजर धन सिंह थापा तो जिंदा हैं तब इसमें जरूरी बदलाव किए गए।
हवलदार अनिल कुमार तोमर शौर्य चक्र
हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)
मेजर शैतान सिंह मराठी माहिती
हाइफा का युद्ध
बाना सिंह
हरियाणा में कौन परमवीर चक्र विजेता है

शुरुवाती जीवन .........

मेजर धन सिंह थापा का जन्म हिमाचल प्रदेश के शिमला में 10 अप्रैल 1928 में हुआ था,इनके पिता का नाम श्री पी एस थापा था,मेजर धन सिंह थापा की शिक्षा शिमला में ही हुई, धन सिंह थापा बचपन से एक मेधावी छात्र थे,और खेल कूद में भी इनकी बहुत रुचि थे,28 अगस्त 1949 में धन सिंह थापा को भारतीय सेना में शामिल किया गया,। धन सिंह थापा को बतौर सेंकड लेफ्टिनेंट 1/8 गोरखा राइफल्स में शामिल किया गया।
इसके बाद धन सिंह थापा ने भिन्न भिन्न स्थानों पर अपनी सेवाएं दी, इस बीच इनका प्रमोशन भी होता रहा और 1962 तक मेजर के पद पर पहुंच गई थे



1962 भारत चीन युद्ध

हिमालय क्षेत्र में अपनी सीमाओं की लेकर भारत और चीन दोनों देशों में लंबे समय से तनाव चल रहा था,चीनी सेना लगातार भारतीय सीमा में घुसपैठ का प्रयास कर रही थीं । तत्कालीन प्रधामंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने इस घुसपैठ को रोकने के लिए एक रणनीति बनाई ,उसके तहत भारतीय सेना को अपनी सीमा पर पोस्ट तैयार करनी थी,ये पोस्ट दुर्गम इलाकों में तैयार करनी थी,इस रणनीति को फारवर्ड पॉलिसी के नाम से जाना गया,
उस समय मेजर धन सिंह थापा की 1/8 गोरखा रेजीमेंट
लद्दाख में तैनात थी,और मेजर धन सिंह थापा एक अग्रिम चौकी में अपने 28 जवानों का नेतृत्व कर रहे थे,इस चौकी का नाम चुशूल था,20 अक्टूबर 1962 को चीनी सेना ने
चुशूल पोस्ट पर भारी गोलाबारी शुरू कर दी,और चीनी सेना के एक बड़े दल ने उनकी पोस्ट पर हमला बोल दिया,चीनी सेना की अपेक्षा मेजर धन सिंह थापा की टुकड़ी
संख्या में बहुत कम थी,परन्तु उनके हौसले मेजर धन सिंह थापा के नेतृत्व में बहुत बड़े थे,मेजर धन सिंह थापा और उनकी टुकड़ी ने चीनी सेना के हमले को नाकाम कर दिया
और चीनी सेना को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचाया,चीनी सेना ने एक बार फिर से बड़ी मात्रा में चुशूल पोस्ट पर धावा बोला परन्तु एक बार फिर से मेजर धन सिंह थापा और उनके जवानों ने असाधारण शौर्य का प्रदर्शन दिखाते हुए चीनी सैनिकों के दात खट्टे कर दिए,चीनी सेना दूसरी बार भी चुशूल पोस्ट को कब्ज़ा करने में नाकाम हो गई थी,
चीनी सेना तिलमिला गई थी,अत: चीनी सेना ने तीसरी बार पूरे जोर के साथ फिर से चुशूल पोस्ट पर आक्रमण किया इस बार वो अपनी साथ टैंक भी लाए थे,मेजर धन सिंह थापा और उनके सैनिक संख्या में काफी कम रह गए थे परन्तु उन्होंने बहादुरी के साथ चीनी सेना का मुकबला किया,और गोलियां खत्म होने के बाद भी अपनी खुखरी से कई चीनी सैनिकों की मौत के घाट उतार दिया,आखरी में मेजर धन सिंह थापा और उनके बचे हुए कुछ साथी सैनिकों को चीनी सेना ने बंधक बना लिया,जब चुशूल चौकी पर कब्जे की बात सेना मुख्यालय दिल्ली पहुंची तो ये मान लिया गया कि मेजर धन सिंह थापा और उनके साथी सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए हैं,28 अक्टूबर को उनके घर में उनके शहीद होने की खबर दी गई,परिवार में शोक कि लहर दौड़ गई ,और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया,सेना ने सरकार से मेजर धन सिंह थापा को परमवीर चक्र देने की सिफारश की,और मेजर धन सिंह थापा को परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया,

परन्तु युद्ध विराम के बाद जब चीनी सेना ने भारत के युद्धबन्दियों की सूची जारी करी,तो उसमे मेजर धन सिंह थापा का भी नाम था,इस खबर से उनके परिवार और सेना में खुशी की लहर दौड़ गई थी।


10 मई 1963 को जब में भारत लौटे तो सेना मुख्यालय दिल्ली में उनका भव्य स्वागत किया गया,12 मई को मेजर धन सिंह थापा अपने देहरादून स्थित निवास स्थान पर पहुंचे
उनका अंतिम संस्कार हो चुका था,उनकी धर्मपत्नी विधवा की तरह जीवन यापन कर रही थी,
हिन्दू धर्म की परम्पराओं के अनुसार फिर से उनका मुंडन संस्कार किया गया और उनको फिर से अपनी पत्नी के साथ विवाह करना पड़ा, इस प्रकार उनका वैवाहिक जीवन,और नए जीवन का फिर से आरंभ हुआ,इसके बाद भी मेजर ने अपनी सेवाएं सेना में जारी रखी और वे लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से सेवनिवृत्त हुए और सेवानिवृत्ती के बाद लखनऊ में सहारा ग्रुप में डायरेक्टर के पद पर आसीन रहे। सेवानिवत्ति के बाद मेजर धन सिंह थापा पूरे परिवार के साथ देहरादून से लखनऊ जा बसे। 06 सितम्बर 2005 को श्री धन सिंह थापा ने लखनऊ में अपनी अंतिम सांस ली,

इस प्रकार मेजर धन सिंह थापा ने अपनी बहादुरी और कर्तव्य परायणता,से अपना नाम इस देश के इतिहास में सदा के लिए अमर कर दिया,मेजर धन सिंह थापा ने युद्ध बंदी के दौरान बहुत यातनाएं और कष्ट उठाया चीनी सेना ने इनको भारत के खिलाफ मुंह खोलने के लिए बहुत कष्ट दिए लेकिन इस भारत मां के वीर सपूत ने अपना मुंह नहीं खोला,


मेजर धन सिंह थापा की वीरता को हमारा देश और हम सब हमेशा याद रखेंगे, और उनकी वीरता की कहानी अपने आने वाली पीढ़ी को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाएंगे
जय हिंद जय भारत!!!











एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ