सैम मानेकशॉ(सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ)
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इतिहास उनको ही याद रखता है जो कुछ अलग करते है, वैसे तो भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक बाहदुर हुए है,लेकिन इतिहास के पन्नो में उनका नाम ही दर्ज है जिन्होंने निडरता से अपना कार्य किया,, आज फौजी नामा की इस कड़ी में भारतीय सेना के प्रथम फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ
के जीवन की कहानी ले कर आया हु।
जनरल सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के प्रथम फील्ड मार्शल थे।07 जून 1969 को उन्होंने भारतीय सेना के 08वे सेनाध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया था। 1971 के भारत - पाकिस्तान युद्ध में ,भारत ने इनके कुशल नेतृत्व में विजय प्राप्त की थी। जिससे बांग्लादेश की उत्पति हुई थी।
शुरुवाती जीवन.......
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का जन्म 03 अप्रैल 1914 में पंजाब के अमृसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। इनकी शुरुवाती शीक्षा अमृतसर में ही हुई उसके बाद आगे की पढ़ाई नैनीताल के सेरेवुड कॉलेज में हुई। इनका परिवार गुजरात के बलसाड़ से अमृतसर आया था। 1932 में सैम मानेकशॉ जी का चयन इंडियन मिलिट्री अकादमी(IMA) में पहले बैच के लिए हो गया। सन 1934 में सैम मानेकशॉ ने भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त किया।image source googal |
सैनिक जीवन.......
सैम मानेकशॉ ने पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध में अपना युद्ध कौशल दिखाया,इस युद्ध में वे बुरी तरह घायल भी हुए।स्वस्थ होने के बाद वे बर्मा के जंगलों में फिर से जापानियों के साथ लोहा लेने के लिए पहुंच गए।और एक फिर बुरी तरह से घायल हो गए।द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद सैम मानेकशॉ जी को स्टाफ ऑफिसर बना कर जापानियों के आत्मसमर्पण के लिए भेजा गया जहां सैम मानेकशॉ जी ने तकरीबन 10000 युद्ध बंदियों के पुनर्वास में अपना योगदान दिया! द्वितीय विश्व युद्ध में अपने योगदान के लिए इनको मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया।सन1946 में सैम मानेकशॉ जी फर्स्ट ग्रेड स्टॉफ ऑफिसर बनकर मिलिट्री आपरेशंस डायरेक्ट्रेट में सेवारत रहे।
उसके बाद सन 1947 1948 के भारत पाकिस्तान युद्ध में इन्होंने महत्वूर्ण भूमिका निभाई।
आजादी के बाद गोरखा सैनिको कि कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। वहीं से इनके नाम के आगे बहादुर लग गया था।अब ये सैम बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे।
सैम मानेकशॉ जी को नागालैंड की समस्या सुलझाने के अविस्मरणीय योगदान के लिए 1968 में पद्मभूण से सम्मानित किया गया।
07 जून 1969 में सैम बहादुर को सेना का 08 वा् चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया गया।
सन 1971 में जब हजारों शरणार्थियों के जत्थे पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने लगे और युद्घ अवश्य हो गया, सैम के युद्घ कौशल के सामने पाकिस्तान की करारी हार हुई और बांग्लादेश का निर्माण हुआ, उनके देशप्रेम,युद्घ कौशल व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्मविभूषण तथा 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से अलंकृत किया गया। चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए।
सैम मानेकशॉ ने अपनी सेवा के दौरान पांच युद्ध लड़े, जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध, विभाजन का भारत-पाकिस्तान युद्ध, चीन-भारतीय युद्ध (1962) और 1965 और 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध शामिल थे।
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फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के बारे में कुछ रोचक बातें-------::::::""""
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले, जब इंदिरा गांधी(तत्कालीन प्रधान मंत्री) ने मानेकशॉ से पूछा कि क्या सेना युद्ध के लिए तैयार है, तो उन्होंने जवाब दिया, "मैं हमेशा तैयार हूं, स्वीटी!"सैम मानेकशॉ जी कहते थे कि अगर कोई सिपाही कहता है कि वो मौत से नहीं डरता, या तो वो झूठ बोल रहा है, या फिर वो गोरखा है''""""
सन1971 के भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बीच में ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से तख्तापलट की कोशिश करने वाले हैं. इस पर मानेकशॉ ने सीधे जाकर इंदिरा गांधी से कह दिया कि- “क्या आपको नहीं लगता कि मैं आपकी जगह पर आने के लायक नहीं हूं, मैडम? आपकी नाक लंबी है. मेरी नाक भी लंबी है, लेकिन मैं दूसरों के मामलों में नाक नहीं घुसाता हूं.”
लड़ाई के मैदान में सात गोलियां लगने के बाद जब जनरल मानेकशॉ मिलिट्री अस्पताल पहुंचाए गए, तब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या हुआ है. मानेकशॉ का कहना था कि """""अरे कुछ नहीं, एक गधे ने लात मार दी"""""
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सन1962 में जब मिजोरम में एक बटालियन ने भारत- चाइना की लड़ाई से दूर रहने की कोशिश की तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को पार्सल में चूड़ी के डिब्बे के साथ एक नोट भेजा. जिस पर लिखा था कि """""अगर लड़ाई से पीछे हट रहे हो तो अपने आदमियों को ये पहनने को बोल दो. """"फिर उस बटालियन ने लड़ाई में हिस्सा लिया और काफी अच्छा काम कर दिखाया. अब मानेकशॉ ने फिर से एक नोट भेजा जिसमें चूड़ियों के डिब्बे को वापस भेज देने की बात की गई थी.
सन1971 की लड़ाई खत्म होने के बाद सैम मानेकशॉ जी से पूछा गया था कि अगर बंटवारे के वक़्त अगर पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता. इस पर मानेकशॉ हंसते हुए बोले """होता क्या, पाकिस्तान 1971 की लड़ाई जीत जाता."""""
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सैम मानेकशॉ अपनी हाज़िर जवाबी, खुश-मिजाज़ी और दृढ़ता के लिए जाने जाते थे। मान-सम्मान के लिए किसी से भी अड़ सकते थे। अपने सैनिकों के हित के लिए वे किसी के भी सामने खड़े हो जाते।
एक बार उन्होंने पे-कमीशन के अफ़सरों के साथ मीटिंग बुलाई क्योंकि उस समय पे-कमीशन ने सैनिकों की वर्दी के लिए मिलने वाले फण्ड में कटौती करने का फ़ैसला किया था। मानेकशॉ ने मीटिंग में कहा, “महोदय, अब आप मुझे बताएं, कि अगर मैं धोती और कुर्ता पहनकर आदेश दूँ तो क्या कोई मेरे आदेश को मानेगा।” और इस बात के बाद सारा मुद्दा ही हल हो गया।
सैम मानेकशॉ को ‘सैम बहादुर’ नाम भी गोरखा रेजिमेंट से ही मिला। एक बार उन्होंने हरका बहादुर गुरुंग नाम के एक गोरखा सिपाही से पूछा, “मेरा नाम के हो?” (मेरा नाम क्या है) उस गोरखा सिपाही ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया, “सैम बहादुर, साब!” और तब से यह नाम प्रसिद्ध हो गया।
भारतीय सेना में एक प्रसिद्द जासूस था, रणछोड़ पागी, जो समय-समय पर सेना को दुश्मनों की महत्वपूर्ण गतिविधियों के बारे में जानकारियाँ पहुंचाता था। उससे मिलने वाली सुचना के चलते भारतीय सेना ने कई मौकों पर फ़तेह हासिल की थी।साल 1971 के युद्ध के बाद सैम मानेकशॉ ने पागी को मिलने बुलाया।और फील्ड मार्शल ने गुजरात से पागी को लाने के लिए एक हेलीकॉप्टर भेजा, उनके काम की सराहना की, और उन्हें 300 रुपये का इनाम भी दिया। इसके बाद सैम मानेकशॉ पागी के साथ दोपहर का भोजन करने के लिए बैठ गए।
"" जब भोजन के दौरान पागी ने अपने थैले से बाजरे की रोटी और एक प्याज़ निकाली,तो सैम मानेकशॉ ने भी पागी के साथ वो रोटी और प्याज खाया। वो एक खुशदिल जनरल थे।
एक बार बर्मा में एक सरदार सैनिक(सोहन सिंह) ने बटालियन में कहा की वो सैम मानेकशॉ को गोली मार देगा,,जब सूबेदार साब ने ये बात सैम मानेकशॉ को बताई तो उन्होंने उस सरदार सैनिक को बुलाया और उसके हाथ में अपनी लोड पिस्तौल देते हुए कहा अगर आप मुझे मारना चाहते हो तो ये लो और मार दो,,सरदार सैनिक ने माफी मागते हुए बोला साब गलती हो गया,,सैम मानेकशॉ ने उसे छोड़ दिया,,जिस पर कंपनी सूबेदार साब ने कहा ,,साब आपको रात को गोली मरेगा,,,उसे जेल में बंद करो,,सैम मानेकशॉ ने सरदार सैनिक को बुलाया और फिर कहा ,सैनिक कल सुबह एक
मग्गा गर्म पानी और एक मग्गा चाय के साथ मुझे उठना,
और ये बोल के सो गए,,सुबह सरदार सैनिक आया और सैम मानेक को एक मग चाय और गर्म पानी दिया,,
इसके बाद जब जब उनसे दूसरे ऑफिसर ने पूछा की साब आपको डर नहीं लगा, अगर वो सोहन सिंह आपको गोली मार देता तो,, तब सैम मानेक ने हस्ते हुए बोला डर तो लगा ,,लेकिन अगर मैं एक बार डर जाता तो ,पूरी बटालियन बोलती हमारा साब डरता है,,😀
""मानेकशॉ ने 22 अप्रैल 1939 को बॉम्बे में सिलू बोडे से शादी की थी ।इनकी दो बेटियां थीं, शेरी और माया ।
सैम मानेकशॉ की मृत्यु 27 जून 2008 को 94 साल की उम्र में 12:30 बजे तमिलनाडु के वेलिंगटन के मिलिट्री हॉस्पिटल में निमोनिया से हुई थी। उनके अंतिम शब्द थे "मैं ठीक हूँ!"
उन्हें तमिलनाडु के ऊटाकामुंड (ऊटी) में पारसी कब्रिस्तान में दफनाया गया,
हर साल 16 दिसंबर को, विजय दिवस 1971 में मानेकशॉ के नेतृत्व में मिली जीत की याद में मनाया जाता है।
16 दिसंबर 2008 को, मानेकशॉ को अपने फील्ड मार्शल की वर्दी में दिखाते हुए एक डाक टिकट, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा जारी किया गया था।
2014 में, ऊटी-कुन्नूर रोड पर मानेकशॉ ब्रिज के करीब, नीलगिरी जिले के वेलिंगटन में उनके सम्मान में एक ग्रेनाइट प्रतिमा बनाई गई हैं।
अहमदाबाद के शिवरंजनी क्षेत्र में एक फ्लाईओवर ब्रिज का नाम उनके नाम पर 2008 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखा गया था।
सन 1973 में इनको फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया था ।लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनको उस रैंक का पूरा allowances नहीं दिया गया था। सन 2007 में श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम(तत्कालीन राष्ट्रपति) जब सैम मानेकशॉ जी से मिले तो राष्ट्रपति जी ने उनको 1.3 crore का चैक भेंट किया जो कि उनका 30 साल का बकाया allowances था।
सैम मानेकशॉ एक कुशल नेतृत्व वाले और बहादुर जनरल थे।
सैम बहादुर का व्यक्तित्व बहुत ही सरल और सहज था।
9 दिसंबर 1971 को मानेकशॉ ने पाकिस्तानी सैनिकों को रेडियो संदेश दिया था, “भारतीय सेनाओं ने आपको घेर लिया है. आपकी वायु सेना नष्ट हो गई है. आपको उनसे किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए. चटगाँव, चल्ना और मंगला बंदरगाह सील हो गए हैं. कोई भी आपको समुद्र से मदद नहीं पहुंचा सकता है. आपकी किस्मत अब हमारे हाथों में है. मुक्ति बाहिनी और बाकी लोग आपके द्वारा किए गए अत्याचारों और क्रूरताओं का बदला लेने के लिए तैयार हैं … बर्बादी से किसी को क्या मिलेगा ? क्या आप घर नहीं जाना चाहते और अपने बच्चों के साथ रहना चाहते हैं? समय मत गंवाओ; एक सैनिक के लिए शस्त्र डालने में कोई अपमान नहीं है. हम आपको एक सिपाही की इज़्ज़त मान सम्मान देंगे.।
सैम मानेकशॉ को महान नेतृत्व गुणों और सैन्य विशेषज्ञता के अलावा, त्वरित बुद्धि के लिए भी जाना जाता था.
2008 में निमोनिया के कारण सैम मानेकशॉ की मृत्यु हो गई और उनके अंतिम शब्द यही थे कि “मैं ठीक हूँ”. कुछ विवादों के कारण, उनके अंतिम संस्कार में कोई वीआईपी ,नेता सामिल नहीं हुआ था और ना ही राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था,जो कि इस महान जनरल का हक था. हमें इस बात का खेद है.
सेना और हिंदुस्तान के लोग,उनकी बहादुरी, साहस, अनुशासन और दृढ़ संकल्प के लिए उनको हमेशा सलाम करते रहेंगे। हमारे देश के लिए किये गए उनके योगदान को याद रखेंगे और आपके इतिहास से प्रेरित होते रहेंगे.
जय हिन्द!!!
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