हे भारत के राम जगो ||MOTIVATIONAL POEM IN HINDI||
यह कविता श्री आशुतोष राणा जी के द्वारा कही गई है,,वीर रस से भरी हुईं यह कविता नस नस में उमंग भर देती है ,आशा करता हु की आपकी नस नस में भी उमंग भरेगी,कविता का नाम है ये भारत के वीर जागो,,,
हे भारत के वीर जागो मैं तुम्हे जगाने आया हु,
और अनेक धर्मों का धर्म एक बलिदान बताने आया हुं,
सुनो हिमालय कैद हुआ है दुश्मन की जंजीरों में,
आज बता दो कितना पानी है भारत के वीरों में।
खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर आज तुमको ललकार रही ।
सोए सिंह जगो भारत के ,माता तुम्हे पुकार रही ।
रण की भेरी बज रही, उठो मोह निंद्रा त्यागो।
पहला शीष चढ़ाने वाले भारत मां के पुत्र जागो,
बलिदानों के बज्र दंड पर देशभक्त की ध्वजा जगे,
रण के कंकर पैने है,वे राष्ट्र हित की ध्वजा जगे,
अग्निपथ के पंथी जागो शीष हथेली पर रखकर,
और जागो रक्त के भक्त लाडलो,जागो सिर के सौदागर।
खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बबृडा,
रक्त बीज का रक्त चाटने वाली जागे चामुंडा,
नर मुंडो की माला वाला जगे कपाली कैलाशी ।
रण की चंडी घर घर नाचे मौत कहे प्यासी प्यासी।
रावण का वध स्वयं करूंगा , कहने वाला राम जगे
और कौरव शेष न बचेंगे कहने वाला श्याम जगे।
परशुराम का परशा जागे,रघु नंदन का बाण जगे।
यजुनंदन का चक्र जगे ,अर्जुन का धनुष महान जगे ।
चोटी वाला चाणक्य जगे पौरुष महान जगे।
सेलयुकस को कसने वाला चंद्रगुप्त बलवान जगे,
हठी हमीर जगे जिसने झुकना कभी न जाना
जगे पद्मनी का जौहर , जागे केसरिया बाना ।
देशभक्त का जीवित झंडा,आजादी का दीवाना ।
रण प्रताप का सिंह जगे और हल्दी घाटी का राणा ।
दक्षिण वाला जगे शिवाजी,खून शाह जी का ताजा
मरने की हठ ठाना करते विकट मराठों के राजा।
छत्र साल बुंदेला जागे,पंजाबी कृपाण जगे।
दो दिन जिया शेर की माफिक ,वो टीपू सुल्तान जगे
कनवह्ये का जगे मोर्चा,पानीपत मैदान जगे,।।
जगे भगत सिंह की फांसी,राजगुरु के प्राण जगे,
जिसकी छोटी सी लकुटी से संगेनी भी हार गई,
हिटलर को जीता वे फौजे, सात समुंदर पार गई
मानवता का प्राण जगे और भारत का अभिमान जगे,
उस लकूटी और लंगोटी वाले बापू का बलिदान जगे,
आजादी की दुल्हन को जो सबसे पहले चूम गया,
स्वयं कफ़न की गांठ बांधकर, सातों भावर घूम गया।
उस सुभाष की शान जगे,उस सुभाष की आन जगे,
ये भारत देश महान जगे,ये भारत की संतान जगे,
क्या कहते हो मेरे भारत से चीनी टकराएंगे?
अरे चीनी को तो हम पानी में घोल घोल पी जायेंगे,
वह बर्बर था वह अशुद्ध था,हमने उसको शुद्ध किया।
हमने उनको बुद्ध दिया था,उसने हमको युद्ध दिया,
आज बंधा है कफ़न सिश पर ,जिसको आना है आ जाओ
चाओ- माओ, चीनी मीनी,जिसमे दम हो टकराओ ।
जिसके रण से बनता है ,रण का केसरिया बाना ,
ओ कश्मीर हड़पने वाले कान खोल सुनते जाना,
रण के खेतो में जब छाएगा ,अमर मृत्यु का सन्नाटा
लाशों की जब रोटी होगी,और बारूदो का आटा,
सन सन करते वीर चलेंगे,जो बामी से फन वाला
फिर चाहे रावलपिंडी वाले हो या हो पेकिंग वाला।
जो हमसे टकराएगा,वो चूर चूर हो जाएगा।
इस मिट्टी को छूने वाला ,मिट्टी में मिल जाएगा।
मैं घर घर में इंकलाब की ,आग लगाने आया हु,
हे भारत के राम जागो ,मैं तुम्हे जगाने आया हु।
हे भारत के राम जागो मैं तुम्हे जगाने आया हु।।
जय हिंद जय भारत
IMAGE SOURCE GOOGAL |
शांति वान्ति छोड़ो;;;;;;
यह कविता श्री योगेन्द्र शर्मा द्वारा लिखी गई है और भारतीय सेना के एक मेजर के द्वारा यूट्यूब पर काफी फेमस हुई थी
शांति वान्ति छोड़ो, शस्त्रों का संधान करो,सेना को आदेश थमा,रण चंडी का आह्वान करो,जो आंख उठी है भारत पर, कसम राम की वो आंख फोड़ दो,ले नापाक इरादे जो हाथ उठे वो हाथ तोड़ दो और मात्र भूमि पर घात लगाए दुश्मन को ऐसा झटका दो की उनके जिंदा सीस काट कर लाल किले पर लटका दो,गांडीव (धनुष) उठा लो अर्जुन फिर से समर महाभारत कर दो ,लाहौर , कराची,रावलपिंडी तक भारत ही भारत कर दो,,,,,
शांति वान्ति छोड़ो, शस्त्रों का संधान करो,सेना को आदेश थमा,रण चंडी का आह्वान करो,जो आंख उठी है भारत पर, कसम राम की वो आंख फोड़ दो,ले नापाक इरादे जो हाथ उठे वो हाथ तोड़ दो और मात्र भूमि पर घात लगाए दुश्मन को ऐसा झटका दो की उनके जिंदा सीस काट कर लाल किले पर लटका दो,गांडीव (धनुष) उठा लो अर्जुन फिर से समर महाभारत कर दो ,लाहौर , कराची,रावलपिंडी तक भारत ही भारत कर दो,,,,,
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