विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले प्रथम भारतीय
राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी (विक्टोरिया क्रॉस)
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शुरुवाती जीवन
सैनिक जीवन
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किया जाता हैं,हर साल होने वाले इस मेले में गढ़वाल राइफल्स की एक टुकड़ी वहा आती है और राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी की वीरता को याद किया जाता है और सलामी दी जाती हैं,वहा पर राइफल मैन गब्बर सिंह (विक्टोरिया क्रॉस) की एक मूर्ति की स्थापना की गई है,इसी प्रकार गढ़वाल राइफल के ट्रेनिंग सेंटर लैंस डाउन में भी इनकी एक बड़ी मूर्ति बनाई गई है ,जिससे वह पर ट्रेनिंग लेने वाले रंगरूट उनसे प्ररेणा लेते रहे,इस प्रकार भारत का एक और इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया,पहले विश्व युद्ध में 06 में 02 विक्टोरिया क्रॉस गढ़वाल राइफल के सैनिकों ने प्राप्त किए थे, राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी (विक्टोरिया क्रॉस)की शहादत को मेरा सत सत नमन,
दरबान सिंह नेगी (विक्टोरिया क्रॉस)
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रच् गै नि जु इतिहास विजय कु, उं पुरखो कि रीत नीभय ,हे गढ़वली पलटन का सिपै घर बुडुलु जिति क ऐ ,यह गाना गढ़वाली भाषा में है और इसका मतलब है कि हे मेरे देश(गढ़वाली पलटन) के वीर सिपाही अपने पूर्वजों के इतिहास जो विजय का है उसकी याद रखना और जब घर आना तो जीत कर ही आना,तू उनकी (अपने पूर्वजों ) की रीति को आगे बढ़ाना,,,
श्री नेगी जी का जब ये गीत सुनता हूं तो एक जोश भर जाता है दिल में और भी सम्मान बढ़ जाता है ,भारतीय सैनिकों के लिए मेरा,हमारे देश के जवानों ने इतिहास ही कुछ ऐसी बहादुरी से लिखा है कि,जब भी अपने इतिहास में जाता हूं तो वीरता ही दिखाई देती है,
उत्तराखंड की वीर भूमि से महान योद्धा जन्म लेते हैं ,अपनी ईमानदारी ,भोले पन और बहादुरी के लिए उत्तराखंड के लोग जाने जाते है ,बहादुरी और देश के लिए समर्पण तो यहां के लोगों की खून में है
पहले विश्व युद्ध में भारत के 06 वीर सैनिकों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था,। दरबान सिंह नेगी उस समय के दूसरे भारतीय सैनिक थे जिन्होंने विक्टोरिया क्रॉस (ब्रिटेन में वीरता का सबसे बड़ा पुरस्कार) प्राप्त किया था,हालाकि पहला और दूसरा विक्टोरिया क्रॉस एक ही दिन दिया गया था,
शुरुवाती जीवन,
नायक दरबान सिंह नेगी (बाद में जमादार/सूबेदार) का जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले के कड़ाकोट पट्टी के काफर तीर गांव में नवम्बर 1881 में हुआ था , इनके पिता का नाम श्री कमल सिंह नेगी था, सन 1903 में दरबान सिंह नेगी 39 गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन में बतौर राइफल मैन भर्ती हो गए ,
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पहला विश्व युद्ध
28 जुलाई 1914 को पहले विश्व युद्ध की शुरुवात हो है थी ,और ब्रिटिश भारतीय सेना भी इस युद्ध में भाग ले रही थी,39 गढ़वाल राइफल्स की पहली और दूसरी दोनों बटालियन इस युद्ध में भाग ले रही थी ,नायक दरबान सिंह नेगी भी पहले युद्ध में हिस्सा ले रहे थे,और 39 गढ़वाल की पहली बटालियन को फ्रांस में भेजा गया था,। यहां पर जर्मनी की सेना अपने आप को मजबूत करके बैंठी थी,जर्मनी की सेना यहां पर दीवार बन कर खड़ी थी,जिसको फ्रांस से हटाना नामुमकिन लग रहा था,,तब ब्रिटिश सरकार ने 39 गढ़वाल की पहली बटालियन को जर्मनी सेना से टक्कर लेने के आगे भेजा,
23 , 24 नवम्बर की रात को नायक दरबान सिंह अपने दल के साथ फ्रांस के फेस्तुबर्त नामक जगह से आगे बढ़ रहे थे,जर्मनी की सेना ने पहले से ही मोर्चो में पोजिशन ले रखी थी ,भारतीय सैनिकों के नजदीक आते ही जर्मनी की सेना ने उन भारी भारी मात्रा में गोलाबारी शुरू कर दी थी,लेकिन पहली गढ़वाल राइफल्स के सैनिक आगे बढ़ते जा रहे थे ,इस गोलाबारी में नायक दरबान सिंह नेगी जी को दो बार सर में और बांह में चोट लगने के बावजूद भी वे आगे बढ़ते हुए जर्मन सैनिकों को मारते रहे,उन्होंने अपनी खंजर से ही 4,5 जर्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया,उनके इस साहस को देख कर उनके साथी भी जोश में भर गए,और वे काल बन कर जर्मनी की सेना पर ट्टू पड़े ,पहली गढ़वाल पलटन के इस भयानक रूप को देखकर जर्मन सैनिकों में अफरा तफरी मच गई,कुछ तो मारे गए और कुछ जान बचाकर कर भाग खड़े हुए,इस प्रकार 39 गढ़वाल राइफल की पहली बटालियन ने रातो रात जर्मनी सेना (जिसको दीवार कहा जा रहा था),को हराकर फेस्तुबर्त पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसमें नायक दरबान सिंह नेगी का बहुत बड़ा हाथ था,नायक दरबान सिंह नेगी ने जर्मन सेना को मोर्चा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था,
05 दिसंबर 1914 को उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम(ब्रिटेन के सम्राट) ने युद्ध क्षेत्र में आकर उनको उस समय के वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस से सामनित किया,यह पहला मौका था जब किंग जॉर्ज पंचम किसी को मेडल देने युद्ध क्षेत्र में पहुंचे थे,लिकन भारतीय सैनिकों की वीरता से प्रभावित होकर वे युद्ध क्षेत्र तक आए और खुद अपने हाथो से विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया,
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किंग जॉर्ज पंचम ने मेडल देने के बाद नायक दरबान सिंह नेगी से पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हुं,तब नायक दरबान सिंह नेगी ने ,
सम्राट से कहा श्री मान महोदय मेरे गांव के नजदीक कोई भी विद्यालय नहीं है जिसके कारण वहा अधिकतर लोग अनपढ़ हैं,अगर आस पास में एक विद्यालय खुल जाए तो हमारे यहां के लोग शिक्षित हो सकेंगे,और उन्होंने ऋषिकेश से कर्ण प्रयाग तक ट्रेन मार्ग बनवाने की बात कही,
नायक दरबान सिंह नेगी के आग्रह पर उस समय एक साल के अंदर ही कर्ण प्रयाग में वार मेमोरियल मीडिल स्कूल खोला गया,और ट्रेन मार्ग का भी सर्वे किया गया,इससे पता चलता है कि नायक दरबान सिंह नेगी बहादुर होने के साथ साथ बहुत ही दूरदर्शी और महत्वकांशी थे,उसके बाद 09 अगस्त 1915 को नायक दरबान सिंह नेगी को वॉयस राय कमीशन दिया गया,और उनको जमादार / नायब सूबेदार का पद दिया गया,
उसके बाद 1917 में इनकी पलटन वापस लैंसडौन आ गई और उसके बाद उन्होंने रंगून के युद्ध में भी भाग लिया, ब्रिटिश सरकार ने इसको बहादुर की उपाधि से भी सम्मानित किया,सेवानिवृति के बाद सूबेदार दरबान सिंह नेगी ने अपना जीवन सामाजिक सेवा के कार्यों को करने में बिताया,,और 24 जून 1950 को भारत देश के इस वीर ने अपनी आंखे मूंद लीं,,
नायक दरबान सिंह नेगी एक कुशल सैनिक के साथ एक समाज सेवी भी थे,उन्होंने समाज के सुधार के लिए बहुत जरूरी कदम उठाए,और गरीब लोगो की बहुत मदद की,जिससे वे आगे बढ़ सके,वे अगर चाहते तो ब्रिटिश के सम्राट से अपने लिए कुछ माग सकते थे,लेकिन उन्होंने अपने समाज के लिए मांगा ताकि हमारा समाज उन्नति कर सके,
उनकी वीरता से हमारे देश और उत्तराखंड के युवा हमेशा प्ररेणा लेते रहेंगे,
जय हिन्द जय उत्ताखंड,
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