प्रथम विश्व युद्ध के विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित भारतीय ..सैनिक

विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले प्रथम भारतीय 

 राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी (विक्टोरिया क्रॉस)





इंडियन आर्मी
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             आपने गब्बर सिंह का नाम तो सुना होगा ,???अब मेरे कई दोस्त ये सोच रहे होंगे गब्बर सिंह ,,,वो शोले का गब्बर ,और जो मेरी नई पीढ़ी के दोस्त है वो गब्बर सिंह  अक्षय कुमार को समझ रहे होंगे,है ना ,,इसमें गलती आप लोगो की नहीं है ,हमको कभी  पढ़ाया जाता या उनके बारे में बताया जाता तो हमे पता होता,ये हम सभी भारतीयों का दुर्भाग्य ही है कि हमें अपने इतिहास के बारे में कुछ भी सही नहीं बताया गया,हमारे देश भरते केवल 5 % लोग ही है जो इन सब बातों में दिलचस्पी रखते है ,,, राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी ने केवल 20 बरस की उम्र में ये वीरता पुरस्कार प्राप्त किया था,
             अगर आपको नहीं पता तो मैं आज भारत देश के इस महान वीर योद्धा के बारे में जानकारी देता हूं,राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी जी को पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार द्वारा विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था,विक्टोरिया क्रॉस उस समय का वीरता का सबसे बड़ा पुरस्कार था,और वे उन 06 भारतीयों में से एक थे जिनको पहले विश्व युद्ध में ये सम्मान दिया गया था,,,तो आओ  पढ़ें  उन इतिहास के पन्नों को जिनके बारे में हमें कुछ भी बताया नहीं गया;!!!!!!!!!

शुरुवाती जीवन


                       राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी का जन्म उत्तराखंड की शांत वादियों में टिहरी गढ़वाल के चंबा के नजदीक  मज्युड गांव में  21 अप्रैल 1895 में एक गरीब परिवार में हुआ था,इनके पिता एक किसान थे,गब्बर सिंह बचपन से ही एक मेहनती बालक थे ,गब्बर सिंह सन 1913 में लैंस डाउन में  39 गढ़वाल राइफल में भर्ती हो गए,शुरुवाती ट्रेनिग पूरी करने के बाद गब्बर सिंह नेगी को बतौर राइफल मैन 39 गढ़वाल राइफल की दूसरी बटालियन में भेजा गया,गब्बर सिंह के पूरे गांव में खुशी का
माहौल था ,एक गरीब परिवार का गब्बर सिंह अब फौजी राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी बन गया था,

सैनिक जीवन

                      अभी राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी का सैनिक जीवन शुरू ही हुआ था ,और पहले विश्व युद्ध का आगाज भी  हो गया था,पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय ब्रिटिश सेना को भी युद्ध में उतार दिया था,उसी युद्ध में 39 गढ़वाल राइफल्स के पहली और दूसरी बटालियन दोनों ही हिस्सा ले रही थी, अक्टूबर 1914 के आखरी  महीनों में दूसरी गढ़वाली राइफल को फ्रांस के दक्षिणी हिस्से में तैनात किया गया था,‌और मार्च 1915 में
दूसरी गढ़वाल राइफल्स को फ्रांस में , नेवे-चैपल नामक जगह पर जर्मनी की सेना से टक्कर लेने के लिए भेजा गया, 10 मार्च 1915को 39 गढ़वाल राइफल की दूसरी बटालियन , नेवे-चैपल पहुंच गई थी ,और जर्मनी के सेना से टक्कर लेने के तैयार थी,राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी भी अपनी बटालियन के साथ खड़े थे,उनके पास लड़ाई का कोई अनुभव नहीं था, अभी तो सेना में उनका जीवन शुरू हुआ था,लेकिन 10 मार्च को वो एक ऐसी कहानी लिखने वाले थे वो युगों युगों तक अमर होने वाली थी ,जर्मन सेना 
नेवे-चैपल में मोर्चो में तैनात थी,जर्मन सेना मजबूत थी ,मोर्चो में छुपे होने के कारण आर्टलरी फायर भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं पा रही थी ,इसलिए दूसरी गढ़वाल राइफल को आगे बढ़ने का हुक्कम मिल चुका था, राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी उस दल का हिस्सा थे जो सबसे पहले जर्मन सेना के बनाई गए ट्रेंच /मोर्चो में दाखिल हुए,राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी ने अपनी संगीन (संगीन बन्दूक के आगे लगा हुए चाकू)  और हथगोले ले कर मोर्चो में कूद पड़े थे ,उन्होंने जर्मन सेना के सामने ऐसी वीरता का परिचय दिया कि सब हैरान थे ,वे एक एक करके जर्मन सैनिकों को अपनी संगीन से ही मौत के घाट उतारते जा रहे थे,और साथ ही हथगोले फेंक कर उन्होंने जर्मन सेना के बीच हाहाकार मचा दिया था,,इस बीच राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी बुरी तरह जख्मी हो गए थे,लेकिन दूसरी गढ़वाल राइफल के सैनिक काल बन कर जर्मन सैनिकों को मारते रहे,और तब तक वे उन मोर्चे पर युद्ध लड़ते रहे जब तक जर्मन की सेना ने आत्म समर्पण नहीं कर दिया ,आखरी में जर्मन सैनिक इस हमले से घबरा गये और उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया,वीर राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी इस आस आमने सामने की लड़ाई में घायल हो गए थे,उनको काफी चोटें आईं थीं,जिनके कारण दूसरी गढ़वाल राइफल का ये वीर और साहसी जवान वीरगति को प्राप्त हो गया,
     इस युद्ध में असीम साहस का प्रदर्शन करने के लिए राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी को ब्रिटिश सरकार ने उस समय के सबसे बड़े पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया,राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले सैनिक थे,वे जब वीरगति को प्राप्त हुए उस समय केवल 20 बरस के थे,,,
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      आजादी के बाद आज भी 21 अप्रैल को इनके जन्म स्थान च्ंबा में  एक तीन दिवसीय मेले का आयोजन
किया जाता हैं,हर साल होने वाले इस मेले में गढ़वाल राइफल्स की एक टुकड़ी वहा आती है और राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी की वीरता को याद किया जाता है और सलामी दी जाती हैं,वहा पर राइफल मैन गब्बर सिंह (विक्टोरिया क्रॉस) की एक मूर्ति की स्थापना की गई है,इसी प्रकार गढ़वाल राइफल के ट्रेनिंग सेंटर लैंस डाउन में भी इनकी एक बड़ी मूर्ति बनाई गई है ,जिससे वह पर ट्रेनिंग लेने वाले रंगरूट उनसे प्ररेणा लेते रहे,इस प्रकार भारत का एक और इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया,पहले विश्व युद्ध में 06 में 02 विक्टोरिया क्रॉस गढ़वाल राइफल के  सैनिकों ने प्राप्त किए थे, राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी (विक्टोरिया क्रॉस)की शहादत को मेरा सत सत नमन,
      जय हिन्द वन्दे मातरम,
                       

 दरबान सिंह नेगी (विक्टोरिया क्रॉस)

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                    रच् गै नि जु इतिहास विजय कु, उं पुरखो कि रीत नीभय ,हे गढ़वली पलटन का सिपै घर बुडुलु जिति क ऐ ,यह गाना गढ़वाली भाषा में है और इसका मतलब है कि हे मेरे देश(गढ़वाली पलटन) के वीर सिपाही अपने पूर्वजों के इतिहास जो विजय का है उसकी याद रखना और जब घर आना तो जीत कर ही आना,तू उनकी (अपने पूर्वजों ) की रीति को आगे बढ़ाना,,,

                   श्री नेगी जी का जब ये गीत सुनता हूं तो एक जोश भर जाता है दिल में और भी सम्मान बढ़ जाता है ,भारतीय सैनिकों के लिए मेरा,हमारे देश के जवानों ने इतिहास ही कुछ ऐसी बहादुरी से लिखा है कि,जब भी अपने इतिहास में जाता हूं तो वीरता ही दिखाई देती है,

उत्तराखंड की वीर भूमि से महान योद्धा जन्म लेते हैं ,अपनी ईमानदारी ,भोले पन और बहादुरी के लिए उत्तराखंड के लोग जाने जाते है ,बहादुरी और देश के लिए समर्पण तो यहां के लोगों की खून में है

पहले विश्व युद्ध में भारत के 06 वीर सैनिकों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था,। दरबान सिंह नेगी उस समय के  दूसरे भारतीय सैनिक थे जिन्होंने विक्टोरिया क्रॉस (ब्रिटेन में वीरता का सबसे बड़ा पुरस्कार) प्राप्त किया था,हालाकि पहला और दूसरा विक्टोरिया क्रॉस एक ही दिन दिया गया था,


शुरुवाती जीवन,

                      नायक दरबान सिंह नेगी (बाद में जमादार/सूबेदार) का जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले के कड़ाकोट पट्टी के काफर तीर गांव में नवम्बर 1881 में हुआ था , इनके पिता का नाम श्री कमल सिंह नेगी था, सन 1903 में दरबान सिंह नेगी 39 गढ़वाल राइफल्स  की पहली बटालियन में बतौर राइफल मैन भर्ती हो गए ,

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पहला विश्व  युद्ध 

                        28 जुलाई 1914 को पहले विश्व युद्ध की शुरुवात हो है थी ,और ब्रिटिश भारतीय सेना भी इस युद्ध में भाग ले रही थी,39 गढ़वाल राइफल्स की पहली और दूसरी  दोनों बटालियन इस युद्ध में भाग ले रही थी ,नायक दरबान सिंह नेगी भी पहले युद्ध में हिस्सा ले रहे थे,और 39 गढ़वाल की पहली बटालियन को फ्रांस में भेजा गया था,। यहां पर जर्मनी की सेना अपने आप को मजबूत करके बैंठी थी,जर्मनी की सेना यहां पर दीवार बन कर खड़ी थी,जिसको फ्रांस से हटाना नामुमकिन लग रहा था,,तब ब्रिटिश सरकार ने 39 गढ़वाल की पहली बटालियन को जर्मनी सेना से टक्कर लेने के आगे भेजा,

                        23 , 24 नवम्बर की रात को नायक दरबान सिंह अपने दल के साथ फ्रांस के फेस्तुबर्त नामक जगह से आगे  बढ़ रहे थे,जर्मनी की सेना  ने पहले से ही मोर्चो में पोजिशन ले रखी थी ,भारतीय सैनिकों के नजदीक आते ही जर्मनी की सेना ने उन भारी भारी मात्रा में गोलाबारी  शुरू कर दी थी,लेकिन पहली गढ़वाल राइफल्स के सैनिक आगे बढ़ते जा रहे थे ,इस गोलाबारी में नायक दरबान सिंह नेगी जी को  दो बार सर में और बांह में चोट लगने के बावजूद भी वे आगे बढ़ते हुए जर्मन सैनिकों को मारते रहे,उन्होंने अपनी खंजर से ही 4,5 जर्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया,उनके इस साहस को देख कर उनके साथी भी जोश में भर गए,और वे काल बन कर जर्मनी की सेना पर ट्टू पड़े ,पहली गढ़वाल पलटन के इस भयानक रूप को देखकर जर्मन सैनिकों में अफरा तफरी मच गई,कुछ तो मारे गए और कुछ जान बचाकर कर भाग खड़े हुए,इस प्रकार 39 गढ़वाल राइफल की पहली बटालियन ने रातो रात जर्मनी सेना (जिसको दीवार कहा जा रहा था),को हराकर फेस्तुबर्त पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसमें नायक दरबान सिंह नेगी का बहुत बड़ा हाथ था,नायक दरबान सिंह नेगी ने जर्मन सेना को मोर्चा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था,

                 05 दिसंबर 1914 को उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम(ब्रिटेन के सम्राट) ने युद्ध क्षेत्र में आकर  उनको उस समय के वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस से सामनित किया,यह पहला मौका था जब किंग जॉर्ज पंचम किसी को मेडल देने युद्ध क्षेत्र में पहुंचे थे,लिकन भारतीय सैनिकों की वीरता से प्रभावित होकर वे युद्ध क्षेत्र तक आए और खुद अपने हाथो से विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया,

इंडियन आर्मी मेडल्स
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     किंग जॉर्ज पंचम ने मेडल देने के बाद नायक दरबान सिंह नेगी से पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हुं,तब नायक दरबान सिंह नेगी ने ,

                                      सम्राट से कहा श्री मान महोदय मेरे गांव के नजदीक कोई भी विद्यालय नहीं है जिसके कारण वहा  अधिकतर लोग अनपढ़ हैं,अगर आस पास  में एक विद्यालय खुल जाए तो हमारे यहां के लोग शिक्षित हो सकेंगे,और उन्होंने ऋषिकेश से कर्ण प्रयाग तक ट्रेन मार्ग बनवाने की बात कही,

                      नायक दरबान सिंह नेगी के आग्रह पर उस समय एक साल के अंदर ही कर्ण प्रयाग में वार मेमोरियल मीडिल स्कूल खोला गया,और ट्रेन मार्ग का भी सर्वे किया गया,इससे पता चलता है  कि नायक दरबान सिंह नेगी बहादुर होने के साथ साथ बहुत ही दूरदर्शी और महत्वकांशी थे,उसके बाद 09 अगस्त 1915 को नायक दरबान सिंह नेगी को वॉयस राय कमीशन दिया गया,और उनको जमादार / नायब सूबेदार का पद दिया गया, 

                     

     उसके बाद 1917 में इनकी पलटन वापस लैंसडौन आ गई और उसके बाद उन्होंने रंगून के युद्ध में भी भाग लिया, ब्रिटिश सरकार ने इसको बहादुर की उपाधि से भी सम्मानित किया,सेवानिवृति के बाद सूबेदार दरबान सिंह नेगी ने अपना जीवन  सामाजिक सेवा के कार्यों को करने में बिताया,,और 24 जून 1950 को भारत देश के इस वीर ने अपनी आंखे मूंद लीं,,

                        नायक दरबान सिंह नेगी एक कुशल सैनिक के साथ एक समाज सेवी भी थे,उन्होंने समाज के सुधार के लिए बहुत जरूरी कदम उठाए,और गरीब लोगो की बहुत मदद की,जिससे वे आगे बढ़ सके,वे अगर चाहते तो ब्रिटिश के सम्राट से अपने लिए कुछ माग सकते थे,लेकिन उन्होंने अपने समाज के लिए मांगा ताकि हमारा समाज उन्नति कर सके,

                        उनकी वीरता से हमारे देश और उत्तराखंड के युवा हमेशा प्ररेणा लेते रहेंगे,

                        जय हिन्द जय उत्ताखंड,

              


                      


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