सुधीर कुमार वालिया(अशोक चक्र,(सेना मेडल, दो बार)।


सुधीर कुमार वालिया(अशोक चक्र,(सेना मेडल, दो बार)।  

  
सुधीर कुमार वालिया(अशोक चक्र,(सेना मेडल, दो बार)।
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                                                                         अगर हमें अपनी कोई चीज़ किसी को देनी हो तो हम 50 बार सोचते है ,,दे की नही 'मगर  एक सैनिक अपने जीवन को देश पर कुर्बान करते समय एक पल भी नही सोचता ,एक सैनिक समय आने पर अपने परिवार को भूल कर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देता हैं,ऐसे कई वीर भारत की मिट्टी से पैदा हुए हैं,जिन्होने समय आने पर अपने हौसलो  से मुश्किल से मुश्किल कार्य भी आसान कर दिया है,जिस प्रकार पेड़ में लगे हुए फल को भी मीठा बनने के लिए धूप में तपना पड़ता है,उसी तरह एक सफल इंसान बनने के लिए भी ,,,मेहनत की धूप में तपना पड़ता है,और उस मेहनत रूपी तपन के बाद जो मिठास निकल कर सामने आती है,वह मिठास बहुत आनन्द देने वाली होती हैं, 

   अगर जिंदगी में कुछ ठान लो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है,अगर आप सपने देखते हैं तो उनको पूरा भी कर सकते हैं,बस आपके पास आत्मविश्वास और लगन होनी चाहिए उस सपने को पूरा करने की,जितना बड़ा आपका सपना होगा उतनी ही बड़ी आपकी मेहनत होगी ,मेहनत करने में आपको दिक्कतों का सामना तो करना पड़ेगा लेकिन जब आप सफल होते हैं तो आपकी सफलता की गूंज बहुत दूर तक सुनाई देती हैं,आज आपको मेजर सुधीर कुमार वालिया के बारे में रूबरू करवाने जा रहा हूं,जिन्होंने एक गरीब परिवार से निकलकर भारतीय सेना के ऑफिसर के रूप में देश में ही भी बल्कि विदेशों में भी अपनी एक पहचान छोड़ी।

 Sudhir Kumar Walia (Ashok Chakra, (SENA Medal, Twice)

शुरुवाती जीवन


                    Sudhir Kumar Walia का जन्म हिमाचल प्रदेश के कागरा जिले के पालमपुर में 24 मई 1979 को हुआ था,इनके पिता का नाम सूबेदार मेजर रुलिया राम था,इनके पिता indian army में सूबेदार मेजर के पद पर कार्यरत थे,इनकी माता का नाम श्रीमती राजेश्वरी देवी था,
                      सुधीर कुमार वालिया बचपन से ही महत्वकांक्षी थे,जब वे स्कूल जाने लगे तो उनका दाखिला गांव के सरकारी स्कूल में करवाया गया,सुधीर जब अंग्रेजी स्कूल में पड़ने वाले बच्चों को आते जाते देखते थे तो उनके मन में सवाल पैदा हो गया ,उन्होंने अपने पिता से एक दिन पूछा कि''"
         ये बच्चे कौन है को कोट पैंट पहन कर स्कूल जाते हैं और हम तो स्कूल में अपना टाट ले कर जाते हैं,उनके पिता ने उनको जबाव दिया की वे अधिकारी के बच्चे है इसलिए अच्छे स्कूल में पढ़ाई करते हैं,,,बस उस दिन से सुधीर के मन में बात घर कर गई की वे भी अधिकारी बनेंगे, सुधीर एक मेधावी छात्र थे। आगे चलकर उन्होंने सैनिक स्कूल सुजानपुर की परीक्षा उत्तीर्ण की और उनको सैनिक स्कूल में दाखिला मिल गया।,सैनिक स्कूल में सुधीर कुमार की प्रतिभा सामने निकल कर आई,वह बहुत ही तेज और हर कार्य में सफलता प्राप्त करने में माहिर थे,उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी की प्रवेश परीक्षा पहले ही पर्यास में पास कर ली ,और वे ट्रेनिंग के लिए चले गए,1988 में मेजर सुधीर कुमार वालिया भारतीय सैन्य अकादमी से पासआउट हुए और उनको 4 JAT REGIMENT में बतौर सैकंड लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया।
                                        अब उनके सपने पूरे होने जा रहे थे,उनके परिवार ही नहीं पूरे गांव में खुशी का माहौल था क्युकी आजतक उनके गांव से कोई भी सेना में ऑफिसर नहीं बना था,लेकिन मेजर सुधीर कुमार वालिया यहां पर रुकने वालो में से नहीं थे ,अभी तो मेजर सुधीर कुमार वालिया का सफ़र शुरू हुआ था।;;;;;;वो कहते है ना कि कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं ,
जीता वही जो डरा नहीं |


सैनिक जीवन 

                    Sudhir Kumar Walia सेना में कमीशन लेने के बाद तुरंत श्रीलंका में चल रहे पवन का हिस्सा बने,वहा पर भी उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया, श्री लंका से वापस आने के बाद मेजर सुधीर कमांडो ट्रेनिंग के लिए चले गए, ट्रेनिंग में उन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया ;जिसके बाद उनको 9 पैराशूट कमांडो रेजिमेंट (विशेष बल) स्थानांतरित किया गया, 09 पैराशूट रेजीमेंट (विशेष बल) एक विख्यात रूप से प्रसिद्ध दल है! मेजर सुधीर ने 09 पैराशूट (विशेष बल) के साथ कई आतंकवादी विरोधी अभियानों में हिस्सा लिया और अपनी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया,
 सन 1994 में जब वे लेफ्टिनेट के पद पर थे तब दो बार अलग अलग आतंकवाद विरोधी अभियानों में असीम साहस निस्वार्थ देश प्रेम और उच्च कोटि के नेतृत्व के प्रदर्शन के लिए उनको दो बार सेना मेडल से सम्मानित किया गया,वे एक बहुत ही जोशीले सैनिक के रूप में सामने आ रहे थे,मेजर सुधीर कोई भी कार्य हो उसको बिना हिचके  करने में तत्पर रहते थे,
अपने सेवा काल के दौरान वे विश्व कि सबसे ऊंचे युद्ध स्थल सियाचिन ग्लेशियर में भी तैनात रहे,
सन् 1997 में मेजर सुधीर वालिया को एक विशेष कोर्स के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में भेजा गया, मेजर वालिया ने उस कोर्स में अव्वल स्थान प्राप्त किया, इस कोर्स के दौरान मेजर वालिया को पेंटागन में बोलने का मौका मिला जो उनके लिए और पूरी भारतीय सेना के लिए एक बहुत सम्मान की बात थी, मेजर वालिया को उनके साथी कर्नल के नाम से  बुलाते थे,
 
उसके बाद मेजर सुधीर थल सेनाध्यक्ष (जनरल वेद प्रकाश मलिक) के एडीसी नियुक्त किए गए, वहा पर भी मेजर सुधीर ने बहुत अच्छा कार्य किया,तभी सन 1999 में कारगिल का युद्ध शुरू हो गया था,मेजर की यूनिट 09 पैरा( विशेष बल) भी कारगिल में तैनात थी ,तो मेजर जो एक कामंडो थे वे दिल्ली में आराम से कैसे रह सकते थे,मेजर सुधीर ने जनरल वीके मलिक साहब से आग्रह किया कि उनको भी युद्ध क्षेत्र में भेजा जाए, जनरल साहब ने उनके आग्रह को स्वीकार कर लिया और मेजर सुधीर भी अपने दल के साथ कारगिल युद्ध क्षेत्र में पहुंच गए,और कारगिल में पहुंच कर उन्होंने मास्कोह वैली में जुलू टॉप पर कब्जे के लिए अपने दल का नेतृत्व किया, ज़ुलु टॉप 5200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित था
                    ,जब वे ज़ुलु टॉप पर अपने दल के पास जा रहे तो उनको क्लाइमेंट करने को कहा गया,क्युकी वे दिल्ली से एकदम अधिक ऊंचाई वाली जगह पर जा रहे थे,अधिक ऊंचाई वाली जगह पर जाने के लिए पहले क्लाइमेट करना पड़ता है तब मेजर सुधीर ने कहा ""सर मै पहाड़ी हूं, मुझे क्लाइमेट की जरूरत नहीं है। ज़ुलु टॉप से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने में उन्होंने अपनी टीम का नेतृव किया और वहां पर भी असीम वीरता और निस्वार्थ देश प्रेम का प्रदर्शन किया,कारगिल युद्ध खत्म हो जाने के बाद मेजर सुधीर वालिया जम्मू कश्मीर में ही अपने दल का नेतृत्व करते रहे,वो लगातार आतंकवाद विरोधी अभियानों में हिस्सा ले रहे थे,।    
                   
अशोक चक्र सुधीर कुमार
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29 अगस्त 1999 

                         29 अगस्त 1999 को कुपवाड़ा के 
  "हफरुदा के घने जंगलों में एक गुप्त सूचना के आधार पर  मेजर सुधीर  अपने दल के साथ मिलकर एक खोजी अभियान चला रहे थे,हफरुदा के जंगलों में 20  आंतकवादी छुपे होने की खबर थी,मेजर अपने दल के साथ  खोजी अभियान को आगे बढ़ा ही रहे थे ,की अचानक उनकी नजर आतंक वादियों के छुपने के स्थान पर पड़ी,उन्होंने तुरन्त आतंक वादियों के उपर गोला बारी शुरू कर दी,जिससे  चार आतंकवादी वहीं पर ढेर हो गए,
बाकी बचे हुए उग्रवादियों ने भी भारी गोला बारी शुरू कर दी,थी,इस भारी गोला बारी के आदान प्रदान में मेजर सुधीर के पेट भी गोली लग गई और वे बुरी तरह से घायल हो गए,परंतु घायल होने के बावजूद भी मेजर अपने दल का नेतृत्व करते रहे और उन्होंने तब तक अपने आप को रेस्क्यू नहीं करने दिया जब तक वह अभियान पूरा नहीं हुआ,उन्होंने बुरी तरह से घायल होने के बावजूद भी लगभग 35 मिनट तक अपने दल का नेतृत्व किया,अभियान खत्म होने के बाद उनको मिलिर्टी हॉस्पिटल ले लिए भेजा गया लेकिन अत्यधिक मात्रा में रक्त बह जाने के कारण वे रास्ते में ही  वीरगति  को प्राप्त हो गए,
 मेजर सुधीर कुमार वालिया को उनकी वीरता ,देश प्रेम ,कुशल नेतृत्व,और आत्मसर्मपण की भावना के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया,
      मेजर सुधीर कुमार वालिया के इस महान बलिदान को ये देश हमेशा याद रखेगा। 
   
      जय हिन्द जय भारत!

                    

         

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