कहानी हौसलों की अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट क्लाइंबर

अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट क्लाइंबर

Story of courageous Arunima Sinha Everest climber
अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट क्लाइंबर
image source wikipediya

इच्छा शक्ति में बहुत शक्ति होती है,,इंसान अगर अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत कर ले और ठान ले की ये कार्य मैंने करना ही है,तो फिर दुनिया की कोई भी ताकत आपको अपनी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती,,

दुनिया आपकी आलोचना तब तक ही करती है, जब तक आप कामयाब नही हो जाते,

आज फौजी नामा की इस कड़ी में आपके लिए एक एवरेस्ट क्लाइंबर की जीवनी ले कर आया हु,
जिन्होंने पैर कट जाने के बाद फ़ैसला किया की मैने एवरेस्ट फतेह करना है,,उनका एक पैर नकली था,और एक पैर में रॉड पड़ी हुई थी,लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति और दृढनिश्चय
के कारण एवरेस्ट की चोटी को फतेह किया,और पूरी दुनिया में नाम कमाया,,
'""जैसे एक छोटा सा दिया पूरे अंधकार को खत्म कर देता है उसी प्रकार जब हमारे जीवन के पथ में अँधेरा दिखलाई पड़ता है तो इनके जीवन के आदर्श ,विचार और साहस हम सभी को प्रेरणादायक मार्ग का रास्ता दिखाते है और हमारी हिम्मत को बढ़ाते हैं। वे एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय दिव्यांग है ।

अरुणिमा सिन्हा का जन्म उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में1988 हुआ था। वह वॉलीबॉल के राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी थी। साल 2011 में अरुणिमा सिन्हा लखनऊ से देहरादून आ रही थी। उनके गले में एक सोने की चैन थी। कुछ बदमाशों ने सोने की चैन को उनसे लूटना चाहा। मगर अरुणिमा ने उनका विरोध किया और गुंडों ने उनको चलती ट्रेन से ट्रेन के बाहर फेंक दिया दुर्भाग्य ही था कि दूसरे ट्रैक पर भी उस समय ट्रेन आ रही थी और सिन्हा उस ट्रेन से टकराकर नीचे गिर गई दोनों ट्रेन चले चले जाने के बाद जब सिन्हा ने उठने की कोशिश की तो उसे पता चला कि उसका एक पैर कट चुका है और दूसरे पैर की हड्डियां भी टूट कर बाहर आ चुकी थी पूरी रात वह ट्रैक पर ही दर्द से चिल्लाती रही। आसपास कोई नही था, सुनसान जगह थी,चूहे उनके कटे हुए पैर की मांस को कुतर रहे थे,वे पूरी रात मदद के लिए पुकारती रही लेकिन कोई नहीं आया ,, उस सुनसान जगह पे रात को कोई नहीं था,
लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी ,,हैरानी की बात है वे सुबह तक जिंदा थी,जब आम लोगो की नजर उन पर पड़ी
तो लोगों ने उनको बरेली सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती कराया, जब डॉक्टरों ने सिन्हा को देखा तो उन्होंने कहा कि हमारे पास तो Anestheya नहीं है इसका इलाज कैसे करेंगे। रात भर railway track पर पड़े रहने के कारण उसका काफी खून बह चुका था। डॉक्टर परेशान थे कि ऑपरेशन कैसे शुरू करें क्योंकि उनके पास बेहोश करने के लिए कोई इंजेक्शन नहीं था तब सिन्हा ने खुद डॉक्टर को बोला कि जब मैं रात भर मैं इतना दर्द बर्दाश्त कर सकती हूं तो अभी तो आप मेरे अच्छे के लिए मेरा पैर काटेंगे। उसके बाद जिला अस्पताल बरेली के डॉक्टर और फार्मासिस्ट ने अपना खून देकर बिना बेहोश किए सिन्हा के पैर को अलग कर दिया।

बाद में इनको बरेली से एम्स दिल्ली में रेफर किया गया। उनका एक पैर कट चुका था और स्पाइन में तीन फैक्चर थे। जब सिन्हा ऐम्स दिल्ली में थी तो अख़बारों में खबर छपी की सिन्हा के पास टिकट नहीं था इसलिए वह ट्रेन से कूद गई। कुछ ने कहा कि वह सुसाइड करने गई थी। उनको ये देखकर बहुत दुख हुआ,
वही अस्पताल के बिस्तर पर पड़े पड़े अरुणिमा सिन्हा ने फैसला लिया कि मैं माउंट एवरेस्ट को फतेह करूंगी और एक दिन इन सब का मुंह बन्द कर दूंगी वो बताना चाहती थी कि वो क्या है।जब उन्होंने ये बात अपने घर वालो को ये बात बताई तो उन्होंने कहा पागल हो गई हो क्या??? तुम कभी mountaining नहीं कर सकती हो तुम्हारा एक पैर आर्टिफिशियल है दूसरे में रॉड है तुम्हारा दिमाग खराब है
स्पाइन में भी fracture हैं तुम कोई नौकरी करो और चुपचाप जीवन यापन करो।लोग सिर्फ सिन्हा के पैरो को देख रहे थे लेकिन उसके मन जो तूफ़ान था वो किसी को दिखाई नहीं दे रहा था। उन्होंने पूरा मन बना लिया था की अब अगर वो इसके अलावा कुछ नहीं करेंगी,
उनके बड़े भाई साहब ने इनकी मदद करी,और इनको साथ लेकर वे बछेंद्री पाल ( जिन्होंने 1984 में एवरेस्ट फतेह किया था)से मिले।

जब बछेंद्री पाल जी ने अरुणिमा को देखा तो उन्होंने कहा ""अरुणिमा तुमने ऐसे हालत में एवरेस्ट फतेह करने की सोची तुमने अपने दिल में एवरेस्ट को फतह कर लिया "बस अब तो लोगो नी नजर में फेतह करना है। बछेंद्री पाल जी ने अरुणिमा पर भरोसा किया और कहा हां तुम कर सकती हो।उसके बाद अरुणिमा ने कड़ी मेहनत दिन रात एक कर दिया और आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होंने रात दिन मेहनत की ,, ट्रैनिंग की,और अपने अथक प्रयासों के कारण उनको चयनित किया गया,,जब वे ट्रैक ट्रेनिंग कर रही थी तो पहले दिन वे सबसे पीछे थी ,लोग उन पर हस रहे थे,लेकिन कुछ दिनों की ट्रेनिंग में ही अरुणिमा सिन्हा ने दोनो पैर वालो को पीछे छोड़ दिया था,,एक नकली पैर , और एक पैर में रॉड होने के बाद भी वे ट्रेनिंग के दौरान सबसे आगे आ रही थी,,इसको बोलते है इच्छा शक्ति,,
21 मई 2013 को अरुणिमा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड को अपने नाम कर लिया। अपने दर्द को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने लोगो का मुंह बंद कर दिया था,,जो उनकी आलोचना करते थे वे अब उनकी तारीफों के पुल बांध रहे थे,,
अरुणिमा ने अपना सफर केवल माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई तक ही सीमित नहीं रखा,
अरुणिमा ने अपने हौसलों के दम पर अब तक माउंट एवरेस्ट के अलावा, माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कोजिअस्को (आस्ट्रेलिया), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कारस्टेन्ज पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट एलब्रस (यूरोप) की चढ़ाई कर ली है एक पैर के सहारे दुनिया की छह प्रमुख पर्वत चोटियों पर भारत का झंडा लहराकर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं। अरुणिमा सिन्हा ने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में शामिल अंटार्कटिका के 'विन्सन मैसिफ़' हिल पर भी तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल कर ली है। अरुणिमा को अंटार्कटिका का सवोर्च्च शिखर फतह करने पर बधाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी। प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, 'अरुणिमा सिन्हा को सफलता की नई ऊंचाई पर पहुंचने के लिए बधाई। वह भारत का गर्व हैं, जिसने अपनी मेहनत व लगन से खुद की पहचान बनाई है। उन्हें भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।'

2015 में इनको पदमश्री से सम्मानित किया गया और
उन्हें ब्रिटेन की एक यूनीवर्सिटी ने डॉक्टर की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया था।

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान,🌷✈️✈️🚀✈️ होती है।

दुर्घटना के बाद जिस हालत में अरुणिमा थीं, उस हालत में हिल पाना भी मुश्किल होता है . लेकिन मजबूत इरादों वाली अरुणिमा की कहानी कभी धैर्य न हारने वाले जज्बे की कहानी साबित हुई.जहां एक ओर पूरी दुनिया उनके इरादों पर संदेह जता रही थी, जिन हालात में अरुणिमा थीं, उसमें लोगों को खड़े होने के लिए सालों लग जाते हैं, वहीं अरुणिमा केवल चार माह में ही उठ कर खड़ी हो गईं. अगले दो साल उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से प्रशिक्षण लिया. उन्हें स्पांसर मिले, उनकी यात्रा शुरू हुई और फिर वह दिन भी आया जब मंजिल फतह हुई.

अरुणिमा ने कहा कि इस कोशिश के दौरान उनके पैरों से खून बहता रहता था और अकसर वह गिर भी जाती थीं. लोग उन्हें पागल कहते थे और उन्हें लगता था कि वह कभी अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाएंगी. हालांकि, वे सभी उनके इरादों की मजबूती से अनजान थे. अरुणिमा ने अपने जीवन में किए संघर्ष पर एक किताब भी लिखी है जिसका नाम है एवरेस्ट की बेटी!
इनके बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है।नारी शक्ति को नमन इनके हौसले को नमन ।
""' उठो और लड़ो अपने आप से और तब तक लड़ो जब तक आप खुद से नहीं जीत जाते। क्योंकि जो खुद से जीत गया उसको कोई हरा नहीं सकता।""""
जय हिन्द।
अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट क्लाइंबर

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