अकेले तीन आतंकियों को ढेर करने वाले हंगपन दादा की वीरता से भरी कहानी

 हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)|जीवनी ,बायोग्राफी इन हिंदी 

               ''शौर्य साहस का तू चन्दन है ,,,,,,

                        हे!!!!!!मात्रभूमि के महा वीर  तुम्हारा वंदन है 
हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)
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हवलदार हंगपन दादा, भारतीय सेना की असम रेजीमेंट में हवलदार के पद पर तैनात  थे ।उस समय दादा 35 राष्टीय राइफल में तैनात थे। 27 मई 2016 को उत्तरी कश्मीर के शमसाबाड़ी में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए। वीरगति प्राप्त करने से पूर्व उन्होंने 4 हथियारबंद आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा। इस असीम शौर्य , कर्तव्य परायणता,और अपनी टीम का कुशल नेतृत्व करने लिए 15 अगस्त 2016 को उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)
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शुरुवाती जीवन ,,.,,,,,,,,,

                                  दादा का जन्म 02 अक्टूबर 1979 में   अरुणाचल प्रदेश के बोदुरिया गांव में हुआ था।  दादा बचपन से ही साहसिक कार्यों में रुचि रखते थे।दादा में बहुत कम उम्र में ही अपने एक साथी को नदी में डूबने से बचाया था ।1997में दादा भारतीय सेना का हिस्सा बन गए ।बेसिक ट्रेनिंग पूरी करने के बाद दादा को असम रेजीमेंट में  शामिल किया गया। बाद में इनकी पोस्टिंग 2016 में 35 राष्ट्रीय राइफल में हो गईं।  जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के नोगाम सैक्टर में लाइन ऑफ कंट्रोल के पास दादा एक पोस्ट पर टीम के कामंडर थे।उनकी पोस्ट 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित थी।26 मई 2016 को उनके कंपनी के दूसरी पोस्ट पर मीरा नमक जगह पर संदिग्ध गतिवधि देखी गई। जिसमे 4 आतंक वादी छुप छुप के लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करने की कोशिश कर रहे थे।इन आतंकवादीयो को पकड़ने के लिए ऑप्रेशन चलाया गया जिसका नाम ऑप्रेशन साबु दादा रखा गया। सुबह के 6 बजे दादा को खबर दी गई कि 4 आतंकवादी मीरा नाला से साबु पोस्ट की तरफ हरकत कर रहे हैं।और दादा को स्टॉप लगाने के लिए कहा गया।उसके बाद कंपनी कमांडर ,दादा के साथ अपनी टीम को लेकर निकल गए। और कुछ देर बाद ही उनकी  आतंकवादीयो से मुधभेड शुरू हो गई।दादा ने असीम वीरता और कुशल नेतृत्व दिखाते हुए एक एक करके 2 आतंकवादी को मार गिराया।उसके बाद 2 बचे हुए आतंकवादी को खोजने के लिए टीम को 2 भागो में बाटा गया एक कंपनी कमांडर की टीम और एक दादा की टीम ।
          दादा  के टीम ने अगुवाई कि ।और आगे चल पड़े ।अचानक तीसरे आतंकवादी ने दादा के ऊपर अंधाधुंध फायर खोल दिया ।दादा ने उसका जवाब दिया और उसको भी मार गिराया।और आगे बढ गए तभी लास्ट बचे आतंकवादी ने छुप कर दादा के उपर फायर किया और एक गोली दादा के पेट में आ लगी वो गिर पड़े मगर दादा ने हिम्मत नहीं हारी वो फिर से हिम्मत जुटा कर खड़े हुए।इस मकसद से को आखरी आतंकवादी को मार गिराना है।लेकिन आंतकवादी छुपाव में था ।उसने फिर से दादा के ऊपर फायर किया ।और दादा फिर गिर गए।और शहीद हो गए ।दादा को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। अशोक चक्र शांतिकाल में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है


हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)
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          नवंबर 2016 में शिलोंग के असम रेजीमेंटल सेंटर (एआरसी) में प्लेटिनियम जुबली सेरेमनी के दौरान एक एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक का नाम हंगपन के नाम पर रखा गया।और एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पब्लिक इन्फॉर्मेशन द्वारा 26 जनवरी 2017 को दादा पर एक डॉक्युमेंट्री भी रिलीज की।
हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)
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इस तरह भारत माता के एक  बेटे ने अपनी जान देकर इस मिट्टी की कर्ज चुकया हैं।दादा जैसे सचे सिपाही को मैं सलाम करता हूं। जय हिन्द।

आयो झुक कर करे सलाम उन्हें,
जिसके हिस्से में ये मुकाम आता है,
कितने खुशनसीब है वो लोग,
जिनका खून वतन के काम आता है !
जय हिन्द , जय भारत .

         और इस तरह भारत माता का एक और लाल इस मिट्टी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे गया।आओ हम सब मिलकर एक दिया जलाए , दिया घर के बाहर नहीं अपने दिलो में दिया जलाए।पहले अपने आप को बताए उसके बाद अपने बच्चों को ।ताकि दादा और उनके जिसे वीर हमेशा हमारे दिलो में जिंदा रह सके।।

 वन्दे मातरम्।

     



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