भारतीय थल सेना का 'अमर' सैनिक शहीद होने के बाद भी ड्यूटी पर
जसवंत सिंह रावत,(महावीर चक्)
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किसी से प्रेम करना क्या होता है ,,हम किसी से अथाह प्रेम करते है, तो चाए हम मर भी जाय लेकिन उसके लिए हमारा प्रेम वही रहता है ,, आज आपके सामने एक ऐसे वीर सैनिक की कहानी ले कर आया हु जिन्होंने जीते जी तो अपना देश प्रेम निभाया ही अपितु शहीद होने के बाद भी आज भी वे अपनी ड्यूटी करते है,,ऐसा भारतीय सेना का बिस्वास है ,,भारतीय सेना ही नही बल्कि कई लोग ऐसा बिस्वास करते है की वो सैनिक आज भी अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से कर रहा है,image source |
एक सैनिक जो दुनिया में नहीं है, फिर भी उसको पूरा सम्मान दिया जाता हैं, उसको रिटायर नहीं किया गया है वो आज भी अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से कर रहा है। आप सोचेंगे कि आखिर वह सैनिक कौन है और उसने ऐसा क्या किया है जो मरने के बाद भी इतना सम्मान दिया जा रहा है। तो आप लोग जान लीजिए, उस सैनिक का नाम है जसवंत सिंह रावत। 1962 के भारत चीन युद्ध में जसवंत सिंह ने अकेले 72 घंटे तक चीनी सैनिकों का मुकाबला किया , मुकाबला ही नहीं बल्कि चीनी सेना के नाक में दम कर दिया था इस वीर जवान ने, ।उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से लेकर अरुणाचल प्रदेश की भारत चीन सीमा तक उस जवान को लोग आज भी याद करते हैं।
तो चलो पढ़ते हैं, आज उनकी बहादुरी की दास्तान ----
शुरुवाती जीवन.........
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RAIFALMAN JASWANT SINGH RAWAT (महावीर चक्र )का जन्म उत्तराखंड में पौड़ी जिले के बीरोखाल में 16 जुलाई 1941 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गुमान सिंह रावत और मां का नाम श्री मति लीला देवी रावत था,इनके पिता सैनिक डेरी फॉर्म में कार्य करते थे, वो चार भाईयो में सबसे बड़े थे । जसवंत रावत बचपन से ही बहुत मेहनती थी,केवल 17 साल की आयु में ही वो सेना में भर्ती होने के लिए चले गए थे।किन्तु आयु कम होने के कारण उनका चयन नहीं हो पाया
लेकिन जसवंत रावत ने हिम्मत नहीं हारी और 19 अगस्त 1962 को रावत गढ़वाल राइफल में शामिल हो गए शुरुवाती ट्रेनिंग पूरी करने के बाद JASWANT SINGH RAWAT 4 गढ़वाल राइफल का हिस्सा बने,और राइफलमैन के पद पर तैनात हुए,
1962 का भारत चीन का युद्ध
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सन 1962 में चीन की सेना भारत की जमीन पर कब्जा करने के लिए हिमालय की सीमा को पार करके आगे बढ़ रहे थी, भारत चीन युद्ध की घोषणा हो गई थी उस समय हमारी सेना बहुत मजबूत नहीं थी।हमारी सेना के पास ना तो चीन के जितनी अत्याधुनिक हथियार थे और ना ही बहुत अधिक मात्रा में गोला बारूद था। उस समय अगर भारत की सेना के पास कुछ था तो वो थी उनकी हिम्मत और उनका जज्बा।सन 1962 के भारत-चीन के युद्ध में 4 गढ़वाल राइफल को अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरारंग में तैनात किया गया ।
4 GARHWAL RAIFAL चीनी सेना से डटकर मुकाबला कर रही थी। यूनिट के पास गोलाबरुद और खाने तक की कमी हो गई थी।उनके कई आदमी घायल हो गए थे ,कई जवान अपनी जान गंवा चुके थे। लड़ाई के बीच में संसाधन,राशन और जवानों की कमी के कारण,4 गढ़वाल राइफल को पीछे हटने का आदेश दिया गया ।उनको पोस्ट को छोड़ने का हुक्म मिल चुका था।
लेकिन JASWANT SINGH RAWAT और उनके 2 साथियों(गोपाल गुसाईं और त्रिलोक नेगी)), ने वहीं रहने और चीनी सैनिकों का मुकाबला करने का फैसला किया।
लेकिन जब चीन की सेना आगे बढ़ती ही जा रही थी तो जसवंत सिंह ने अपने दोनो साथियों को वापस भेज दिया
और अकेले ही मोर्चे को सम्भाल लिया था/
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ऐसा माना जाता है कि RAIFALMAN JASWANT SINGH RAWAT ने अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति की दो लड़कियों NURA और SELA की मदद से तीन स्थानों पर मशीनगन और मोर्टार रखे,और वो अगल अगल जगहों पर जा कर चीनी सेना पर फायर करते उन्होंने ऐसा चीनी सैनिकों को भ्रम में रखने के लिए किया ताकि चीनी सैनिक यह समझते रहे कि भारतीय सेना बहुत बड़ी संख्या में है और तीनों स्थानो से हमला कर रही है। इससे बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए।और काफी चीनी सैनिक घायल हो गए । इस तरह जसवंत सिंह रावत 72 घंटे यानी तीन दिनों तक चीनी सैनिकों को चकमा देने में कामयाब रहे।
लेकिन दुर्भाग्य से उनको राशन की आपूर्ति करने वाले शख्स को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया। और जब उससे पूछा गया कि बता उस तरफ भारत की कितनी सेना लगी है तो उसने कहा वहा पर तो एक ही आदमी है ये सुन कर चीनी सेना के होश उड़ गए
17 नवंबर, 1962 को चीनी सेना के जवानों ने जसवंत सिंह
को चारो तरफ से घेर लिया । फिर भी जसवंत सिंह रावत ने निर्भीक होकर उनका मुकाबला किया और लगातार चीनी सेना को मौत के घाट उतारते रहे।अंत में जब वो बुरी तरह से जख्मी हो गए तो जिंदा पकड़े जाने की बात सोचकर रावत ने खुद को गोली मार ली। ऐसा कहा जाता है कि जसवंत सिंह रावत ने खुद को गोली नहीं मारी थी बल्कि चीनी सैनिकों ने उनको पकड़ लिया था और फांसी दे दी थी।
चीनी सैनिक जसवंत सिंह रावत की गर्दन काट कर अपने साथ ले गए।बाद में जब युद्ध खत्म हो गया तो भारतीय सेना ने ऑर्डर ना मानने के जुर्म में जसवंत सिंह रावत का कोर्ट मार्शल करने का फैसला कर लिया था। जब चीनी सेना को इस बात का पता चला तो चीनी सेना ने उनके बहादुरी भरे कारनामों से प्रभावित होकर उनकी बहादुरी की कहानी भारतीय सेना को बताई ,और धातु कि बनी रावत की प्रतिमा भारतीय सेना को भेंट की,और इनकी बहादुरी को सलाम किया,तब जाकर तत्कालीन सरकार ने जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया।
सेला और नुरा की याद में दो पहाड़ियों का नाम सेला पास और नूरा पास रखा गया।
जसवंत सिंह की याद में वहां पर एक मंदिर बनाया गया है जिसका नाम जसवंतगढ़ रखा गया है। मंदिर
में उनके समान को संभाल कर रखा गया है ।
आज भी सैनिक उनके कमरे की देखरेख करते है। वे सैनिक रात को उनका बिस्तर लगाते हैं, वर्दी प्रेस करते हैं और जूतों की पॉलिश करते है। सैनिक सुबह के 4.30 बजे उनके लिए चाय, 9 बजे नाश्ता और शाम में 7 बजे खाना कमरे में रख देते हैं।
जवानों का मानना है कि अब भी जसवंत सिंह रावत की आत्मा चौकी की रक्षा करती है।और यह माना जाता है कि वह आज भी अपनी ड्यूटी कर रहे हैं उसी साहस के साथ जो रावत ने 1962 में दिखाया था ।उस रास्ते से जाने वाला कोई भी सैनिक वहा पर रुकता है और राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की वीरता को नमन करते हुए और उनका आश्रीवाद ले कर आगे अपनी ड्यूटी पर निकल जाता है।
इस प्रकार जसवंत सिंह रावत ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।उन्होंने अपनी आखरी सांस तक युद्ध किया अगर वो चाहते तो वो भी पीछे हट सकते थे।मगर नहीं
उन्होंने हमारे लिए ,देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।हर एक देशवासी और सैनिक के लिए प्रेणास्रोत हैं राइफलमैन जसवंत सिंह रावत।
इस प्रकार राइफल मैंन जसवंत सिंह रावत ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया,इनकी वीरता के लिए कहना चाहता हु कि""हे वीर तुझ पर क्या लिखूं मेरी कलम में इतनी स्याही,चंद शब्दो में आपकी कुर्बानी लिखूं ऐसा तू सिपाही नही,
अभी इनके जीवन के ऊपर एक फिल्म भी बनी थी जिसका नाम था 72 hours
जवानों का मानना है कि अब भी जसवंत सिंह रावत की आत्मा चौकी की रक्षा करती है।और यह माना जाता है कि वह आज भी अपनी ड्यूटी कर रहे हैं उसी साहस के साथ जो रावत ने 1962 में दिखाया था ।उस रास्ते से जाने वाला कोई भी सैनिक वहा पर रुकता है और राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की वीरता को नमन करते हुए और उनका आश्रीवाद ले कर आगे अपनी ड्यूटी पर निकल जाता है।
इस प्रकार जसवंत सिंह रावत ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।उन्होंने अपनी आखरी सांस तक युद्ध किया अगर वो चाहते तो वो भी पीछे हट सकते थे।मगर नहीं
उन्होंने हमारे लिए ,देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।हर एक देशवासी और सैनिक के लिए प्रेणास्रोत हैं राइफलमैन जसवंत सिंह रावत।
इस प्रकार राइफल मैंन जसवंत सिंह रावत ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया,इनकी वीरता के लिए कहना चाहता हु कि""हे वीर तुझ पर क्या लिखूं मेरी कलम में इतनी स्याही,चंद शब्दो में आपकी कुर्बानी लिखूं ऐसा तू सिपाही नही,
अभी इनके जीवन के ऊपर एक फिल्म भी बनी थी जिसका नाम था 72 hours
jai badri vishal jai bharat
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Jai hind
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