सियाचिन विश्व का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल

 सियाचिन विश्व का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल  मेरी सियाचिन की पोस्टिंग


सियाचिन विश्व का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल
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मेरी सियाचिन की पोस्टिंग........

                                           सियाचिन ग्लेशियर इस नाम को सुनकर ही मन में बर्फ ,, माइनस डिग्री तापमान, तेज बर्फीली हवाओं,,और एवलांच का ख्याल आता है,

                                           ,एक सैनिक होने के नाते मेरे मन में भी  सियाचिन को देखने की इच्छा थी ,,,कई सीनियर सैनिकों से वहा के मुश्किल हालातों के बारे सुना था, वहा की मुश्किल ड्यूटी पूरी करने के बाद बर्दी में जो सियाचिन का मेडल लगता था,वो सीने को गर्व से और चौड़ा करने का कार्य करता था ,और साथ ही ये भी आप गर्व से कह सकते थे की मैंने सियाचिन ग्लेशियर की पोस्टिंग भी काटी है ,पुराने उस्तादो को सियाचिन की जोशीली कहानी सुनाते हुए बहुत बार सुना था,

                                           ,सियाचिन की पोस्टिंग एक उपलब्धि से कम नहीं थी , वहा के बारे सुन कर मेरे मन में वहा जाने की ललक पैदा हो गई थी।और सन 2016 में मुझे सियाचिन जाने का मौका मिला,मेरी पोस्टिंग हो गई थी या यूं कहिए कि मैंने खुद वोलेंटियर होकर वहा की पोस्टिंग मागी थी,और मुझे मौका मिला दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध स्थल पर सेवा करने का,पोस्टिंग होने के बाद मुझे चंडीगढ़ रिपोर्ट करनी थी,सितम्बर 2016 में मैं चंडीगढ़ पहुंच गया , वहा जाने के बाद मेरा मेडिकल टेस्ट किया गया ,सियाचिन जाने वाले सैनिकों का बहुत ही हार्ड मेडिकल होता है,1 हफ्ते के बाद सभी प्रकार के मेडिकल टेस्ट होने के बाद ,और फिट पाए जाने के बाद मैं आगे के सफर के लिए तैयार था,अगली सुबह मुझे इंडियन एयरफोर्स के एक बड़े विमान में बैठकर आगे का सफर तय करना था ,लेकिन यह सफ़र अभी शुरू हुआ था , एक नया अनुभव था,इससे पहले मैं कभी भी विमान में सवार नहीं हुआ था,मेरे मन में उत्सुकता भी थी,हवाई जहाज की यात्रा को लेकर,हवाई जहाज में सवार होने के बाद यात्रा के दौरान जब विमान ऊपर नीचे होता तो डर भी लगता ,,यह मेरी पहली हवाई यात्रा थी,तकरीबन डेढ़ घंटे के सफर के बाद मैं अपने गंतत्व्य स्थान पर पहुंच गया था ,जो लेह से आगे था,विमान से उतरने के बाद बाहर का नजारा देखने लायक था,चंडीगढ़ की गर्मी से एकदम ठंड में आ गए थे, बाहर का तापमान 07 डिग्री सेलसियस था,मैंने भी बैग में रखी अपनी जैकेट निकाली और पहन ली,अब कुछ राहत मिली थी ठंड से,

                     बड़े बड़े पहाड़ ,जी बिलकुल नगे थे,उन पर पेड़ो का कोई नामो निशान नहीं था,एयरपोर्ट से आगे की यात्रा बस से करनी थी कुछ ही समय बाद एक आर्मी बस हमें लेने आ गई थी,और अपना सामान बस में रखकर हम अपने कैंप कि तरफ चल पड़े ,,क्या नजारा था पहाड़ों का,बहुत ही सुंदर लग रहे थे ,बड़े बड़े पहाड़!!!!हिमालय,, जो हमारी सरहदों की हिफाजत कर रहा है ,हिमालय का इतना सुंदर रूप पहली बार देख रहा था मैं।,कैंप में पहुंचने के बाद , वहा हमें हिदायतें दी गई,की आपने क्या करना है और क्या नहीं करना है क्युकी हम 9000 फिट की ऊंचाई से अधिक के ऊंचाई पर स्थित थे,इसलिए वहा पर सावधानी बरतनी पड़ती है, यहां पर फिर से 7 दिन तक हमारा मेडिकल होना था ,जिसमें ब्लड प्रेशर टेस्ट , ईसीजी,ब्लड टेस्ट,डेंटल,आदि शामिल थे,यह काफी मुश्किल प्रक्रिया थी,

सियाचिन विश्व का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल
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                    इस प्रक्रिया में 1 हफ्ते का समय लग गया, ट्रांजिट कैंप में मेडिकल फिट होने के बाद मैं आगे के सफर के लिए तैयार था,लेकिन अभी मंजिल दूर थी,,,,अगले दिन हम आगे के लिए निकल गए, यहां पर हमारी ट्रेनिंग होनी थी,लेकिन उससे पहले एक बार फिर से मेडिकल और क्लाइमेट होना था,3 दिन के मेडिकल के बाद  हमें स्पेशल कपड़े दिए गए, यहां पर खाफी ठंड थी ,अक्टूबर  महीने में ही बर्फ गिर रही थी ऊंचाई तकरीबन13000 फिट,, मुझे यहां पर एक कड़े दौर से गुजरना था, यहां पर सियाचिन ग्लेशियर जाने वाले सैनिकों को training de जाती थी ,इतवार के दिन शाम के समय हमको बुलाया गया , वहां पर सभी जवान मौजूद थे जिनकी सोमवार से ट्रेनिंग शुरू होनी थी ,यह ट्रेनिंग तकरीबन 1 माह की थी ,,मेरे मन में इसको के कर काफी उत्सुकता थी ,क्युकी अपनी 14 सालो की सर्विस के दौरान मैं इतनी ऊंचाई पर कभी नहीं गया था,बर्फ ही बर्फ जिधर भी नजर घुमाओ वही बर्फ,सफ़ेद चादर से लिपटे हुए पहाड़ ,और कड़ाके कि ठंड,,लेकिन अब सपनो से बाहर आने का समय आ गया था ,शाम को हमें अगली सुबह की कार्यवाही के बारे में बता दिया गया था ,जिसको सुन कर मेरे आंखो से बर्फ वाले सपने गायब हो गए थे,अगली सुबह मुझे और बाकी सभी  जवानों की अपनी पीठ पर 16 किलो का वजन भर कर 5:30 पर रनिंग करने के लिए रिपोर्ट करनी थी,और पूरे दिन 1 बजे तक वह 16 किलो का पिट्टू मेरे साथ ही रहने वाला था,मेरा गला सुख रहा था ,काफी दिन हो गए थे ट्रेनिंग करे हुए ,खैर अगली सुबह हम दिए हुए समय पर 16 किलो का बैग खंधे में भरकर पहुंच गए,ठंड बहुत थी , ऑक्सिजन भी कम थी ,रिपोर्ट होने के बाद हमारा ग्रुप जो कि नया था उस ग्रुप का वेलकम करने के लिए उस्ताद इंतजार कर रहे थे, वहां पर ट्रेनिंग देने वाले उस्तादों को सियाचिन डेविल्स के नाम से पुकारा जाता था,हमे कुछ ही देर में पता चलने वाला था कि उनको सियाचिन डेविल्स क्यों कहते थे,रिपोर्ट हो जाने के बाद 4 उस्ताद हमारे पास आए ,और हमारा ऐसा वेलकम किया ,की 30 मिनट में हमारी हालत खराब होनी लगी थी ,ठंड में भी हमारे पसीने छूट रहे थे,खैर जैसे तैसे हमने वो 30 मिनट निकाले,उसके बाद हमको रनिंग करने के लिए ले जाया गया,ऑक्सिजन की कमी से रनिंग करने में काफी दिक्कत हो रही थी,ठंड इतनी थी कि बहती हुई नाक को भी साफ करने का मन नहीं कर रहा था,

जैसे तैसे पहला दिन पूरा हुआ,अभी तो ट्रेनिंग की शुरुवात थी और मंजिल भी दूर थी,सुबह 06 बजे से 01 बजे तक थका देने वाले ट्रेनिंग,शाम को बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई,पता ही नहीं चला,पहला दिन बहुत थकान वाला था ,अगले दिन सुबह 5,30 पर रिपोर्ट करनी थी

फिर वही रोज का रूटीन ,,इस ट्रेनिंग में हमे बहुत कुछ सिखाया गया,,बर्फ  पर चलना,,रेस्क्यू ऑपरेशन करना,,क्लाइंबिंग करना,,और भी बहुत कुछ जो हमारे ऊपर पोस्ट पर जाकर काम आने वाला था,, इस ट्रेनिंग का मुख्य उद्देश्य जवानों को इतना मजबूत करना था की उपर पोस्ट पर जाकर वे अपने 3 महीने का टर्न ओवर आराम से निकाल सके ,

,लेकिन वो 3 महीने ऐसे लगते है जैसे 3 साल,,एक एक पल काटना मुस्कील होता है ,कुछ पता नहीं कब आपकी सांसे बंद हो जाए,कब एवलांच आ जाए,,ट्रेनिंग के 3 हफ्ते खत्म होने को थे और हमारे टेस्ट नजदीक थे,,टेस्ट पास होने पर ही आपको पास का सर्टिफिकेट दिया जाता था,,उसके बाद ही आप आगे की कार्यवाही के लिए रेडी हो सकते थे,,और जो सैनिक टेस्ट में फेल हो जाते थे उनको तब तक ट्रेनिंग करनी पड़ती थी जब तक वे पास nhi ho जाते, खैर मैं तो पास हो गया था,,और उसके बाद मुझे फिर से क्लाइमेट के लिए जाना था ,,इस बार 6 दिन का क्लाइमेट करना था ,जिसमे दिन में  बार 2 ब्लड प्रेशर का चेक अप किया जाता था, पहले दिन तो मेरा बीपी 150 था,,क्युकी हम  समुंदर तल से 13000 फीट की ऊंचाई पर थे,फिर दूसरे दिन 140 ,,और इस तरह आखरी दिन तक नॉर्मल 128 तक आ गया था,लास्ट दिन वहा से मेडिकल फिट सर्टिफिकेट लेकर हम वापस बेस कैंप में आ गए,,जिसके बाद 24 घंटे के अंदर हमको ऊपर पोस्ट पर क्लाइंब करना था,,अगर 24 घंटे में हमने अपनी अगली जर्नी शुरू nhi ki तो फिर से 6 दिन का क्लाइमेट करना होता,लेकिन उसी दिन शाम को 6 बजे हमको  आगे के लिए मार्च करना था,5 बजे हमको op baba ke मंदिर में आने को कहा गया,op बाबा एक सैनिक थे ,जो सियाचिन में शहीद हो गए थे,,उसके बाद उनका मंदिर बनाया गया था,,हम op baba ke मंदिर में गए और उनका आशीर्वाद लिया,जिसके बाद हमारे दल के सीनियर ने उनको रिपोर्ट दी ,

इसके बाद हम आगे जाने के लिए रेडी थे,,हमारे कैप में एक टॉर्च लगी थी ,जिससे हमे अंधेरे में रास्ता दिख सके,, ,,भारत माता की जय, ओपी बाबा की जय के जयकारे लगा कर हम आगे की तरफ बढ़ चले,,

हमारी पीठ पर एक बड़ा बैग,,हाथ में आइस एक्स ,, आंखो में बर्फ वाला sun glaas , हाथो में ग्लब्स ,,और पैरों में बड़े बड़े बूट,,कुछ देर चलने के मुझे ये एहसास होने लगा था की सांस लेने में दिक्कत हो रही है,,ठंड अचानक बढ़ गई थी,बर्फ ही बर्फ ,, दिख रही थी ,, पहाड़ियां खत्म हो चुकी थी,,सिर्फ सफेद बर्फ,,अंधेरा हो चुका था,,हमारे सर पर लगी टार्च हमे रस्ता दिखा रही थी,,मैंने हाथों पर छोटे दस्ताने पहने थे, थोड़ी देर चलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरे हाथ बहुत ठंडे हो गए है,,मैं रुक गया ताकि पीठ वाले बैग से बड़े दस्ताने निकाल कर पहन सकू,


इंडियन आर्मी  इन सियाचिन
image source my gallary

 मैने बैग की रस्सी खोलने की kosis की ,,लेकिन मेरे हाथ इतने ठंडे हो गए थे की मुझसे रस्सी nhi खुल रही थी,,ये जो अनुभव था ,,दिल को झकझोर देने वाला था,,मैं कोशिश कर रहा था,लेकिन हाथ बिलकुल काम nhi कर रहे थे,,कुछ समझ नहीं आ रहा था ,,क्या करू,,अचानक मैंने अपने दांतो का प्रयोग करते हुए रस्सी को खोल दिया ,और बड़े वाले दस्ताने un दस्तानों के ऊपर पहन लिए,,तब जाकर सांस में सांस आई,,और हाथों में थोड़ी एनर्जी महसूस हुई,,फिर मैने अपना पिट्ठू डाला और आगे चल दिया,,अभी मंजिल दूर थी ,,अभी हमारा पहला पड़ाव काफी दूर था जहा पर हमने फिर से कलाईमेट करना था,/लेकिन वह तक पहुंचते, पहुंचते हमारी आफत आने वाली थी,, इसके बाद की कहानी दूसरे भाग में ,


मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित फिर भी सोचता हु मेरे देश तुझे और क्या दु ;;;

  ;;जय हिन्द ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;




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