हवलदार गिरीश गुरुंग कीर्ति चक्र, मरणोपरांत INDIAN ARMY

आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे गिरीश गुरुंग


हवलदार गिरीश गुरुंग कीर्ति चक्र
image source googal
अगर कोई इंसान ये कहता है की वो मौत से नहीं डरता तो या तो वो इंसान झूठ बोल रहा है या फिर वो गोरखा है, ये बात मैं नहीं कह रहा हु ये बात कही है भारतीय सेना के फील्ड मार्शल माने शां ने ,जी हा गोरखा ही एक ऐसी जाती है जो कभी भी गुलाम नहीं हुई ,,और गोरखा ही एक ऐसी जाती है जो अलग अलग देशों की सेना में अपनी सेवाएं दे रही है,,क्युकी गोरखा सैनिक की वीरता की भी परिचय की मोहताज नहीं है,कोई भी युद्ध हो गोरखा सैनिकों ने अपनी वीरता और ईमानदारी ,देश प्रेम का लोहा मनवाया है ,आज मैं ऐसे ही एक गोरखा सैनिक की वीर गाथा ले कर आया हु

""""कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो"ये गोरखा रेजिमेट का मोटो है जिसका मतलब है की कायर होने से तो मरना अच्छा है!


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शुरुवाती जीवन............

गिरीश गुरुंग का जन्म 25 फरवरी 1979 को नेपाल में काशी जिला के नागिधर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दुर्गा बहादुर गुरुंग था। वह 19 साल की उम्र में 27 जुलाई 1998 को सेना में शामिल हो गए। उन्होंने 1 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट सेन्टर सुबाथू, हिमाचल प्रदेश में ट्रेनिंग हासिल की और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इनकी पोस्टिंग4/1 गोरखा राइफल्स में हो गई।इनको राइफल मैन के पद पर नियुक्त किया गया। गोरखा राइफल्स के जवान अपनी बहादुरी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं।कुछ समय बाद इन्होने कुमारी पंचमाया जी से शादी कर ली ,जिससे इनको २ बच्चे हुए

सैनिक जीवन..............

ट्रेनिंग खत्म करने के बाद गुरुंग ने अलग अलग स्थानों पर अपनी सेवाए दी। हवलदार गुरुंग ने अधिकतर जम्मू-कश्मीर में अपनी सेवाएं दीं और एक अनुशासित, कठोर और प्रतिबद्ध सैनिक के रूप में विकसित हुए।गुरुंग शुरू से ही एक अच्छे और नियम को मानने वाले सैनिक थे। वो हर काम, खेल खुद ,ट्रेनिंग,फायरिंग सब में बढ चढ कर हिस्सा लेते थे। इस दौरान उनका नियमित प्रमोशन भी होता रहा,
अब वो कंपनी में हवलदार के पद पर तैनात थे।
2015 में 4/1 गोरखा रेजिमेंट जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में तैनात थी जिसे जम्मू-कश्मीर में LOC के साथ तैनात किया गया था। यहां पर यूनिट को लाइन ऑफ कंट्रोल की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था,सीमा पार से अनियमित गोला बारी और आतंकियों की घुसपैठ की कोशिश लगातार चलती रहती थी,जिसके लिए यूनिट के सैनिक रोज छोटे छोटे दलों में अलग अलग गांव में सर्च अभियान चला के रखते थे,


कुपवाड़ा ऑपरेशन: 20 मई 2017,,

20 मई 2017 को खबर मिली कि आतंकवादियों का एक दल कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा के नौगाम सेक्टर में घुसपैठ करने की फिराक में है।हवलदार गुरुंग को अपनी टीम के साथ आतंकवादियों को खोजने का कार्य दिया गया।हवलदार गुरुंग अपने कुछ साथियों को लेकर आतंकियों को खोजने निकल पड़े,
हवलदार गुरुंग अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे थे। जब वे अपने साथी सैनिकों के साथ घने जंगल में एक ढलान से निकल रहे थे,तो वहा पर छुपे आतंकवादियो ने इनके दल पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।जिसमे एक गोली गुरुंग की जांघ में आकर लगी और उनके शरीर से काफी मात्रा में खून बहने लगा। हवलदार गुरुंग ने अपने घाव कि परवाह ना करते हुए और अपनी टीम पर आए हुए खतरे को देखते हुए अपनी ए, के,47 राइफल से फायर करते हुए एक अतंकवादी को मार गिराया। उसके बाद उन्होंने एक अन्य आतंकवादी जो छुप कर उनके दल के ऊपर फायर कर रहा था,इन्होंने अपनी बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए,अपनी जान के परवाह किए बिना उस आंतकवादी की तरफ एक हथगोला फेका और बेहद करीब जा कर उस आतंकवादी को मार गिराया।
परंतु अपने गंभीर जख्मों और अत्यधिक मात्रा में रक्त बह जाने के कारण हवलदार गिरीश गुरुंग वीरगति को प्राप्त हो गए।इस प्रकार हवलदार गिरीश गुरुंग ने सर्वोच्च बलिदान
देने से पहले गोलाबारी के दौरान अदभुत साहस का
प्रदर्शन किया।
हवलदार गुरुंग को उनके अदम्य साहस, शौर्य, कर्तव्य के प्रति समर्पण और सर्वोच्च बलिदान के लिए देश का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, "कीर्ति चक्र"(मरणोपरांत) दिया गया।

इस ऑपरेशन के दौरान, हवलदार गुरुंग के साथ 2 अन्य सैनिक, हवलदार डमर बहादुर और राइफलमैन रॉबिन शर्मा
भी शहीद हो गए।
इस प्रकार भारत देश के लिए 3 और सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया,

"" मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

जय हिन्द,


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