मेजर सोमनाथ शर्मा - प्रथम परम वीर चक्र विजेता | जीवनी

मेजर सोमनाथ शर्मा - प्रथम परम वीर चक्र विजेता | जीवनी

Major Somnath Sharma of Kumaon Regiment who received the first Param Vir Chakra Indian Army


मेजर सोमनाथ शर्मा
image source wikipedia


कुमाऊं रेजिमेंट के वीर सैनिक जिनको पहला PARAMVIR CHAKRA DEYA गया था,फौजी नामा की इस कड़ी में Major Somnath Sharma की कहानी लिखने जा रहा हु,
मेजर सोमनाथ शर्मा परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले पहले सैनिक थे, उस समय मेजर सोमनाथ शर्मा चौथी कुमाऊँ रेजीमेंट की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर के पद पर तैनात थे,Major Somnath Sharma ने 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में असीम शौर्य और बहादुरी और कुशल नेतृत्व का परिचय दिया था, मेजर सोमनाथ शर्मा श्रीनगर हवाई अड्डे में घुसपैठयो के खिलाफ लड़ते हुए 3 नवंबर 1947 को वीरगति को प्राप्त हुए थे, उस समय मेजर सोमनाथ शर्मा केवल 24 वर्ष के थे ,इस संघर्ष में मेजर सोमनाथ शर्मा के बलिदान और कर्तव्य परायणता को देखते हुए भारत सरकार ने उनको परमवीर चक्र(मरणोपरांत) से सम्मानित किया था,

Major Somnath Sharma का जन्म 31 जनवरी 1923 में कांगड़ा पंजाब प्रांत में हुआ था, जो अभी हिमाचल प्रदेश में है, इनके पिता का नाम अमरनाथ शर्मा था वह भी ब्रिटिश भारतीय सेना में एक अधिकारी थे , मेजर सोमनाथ शर्मा की शुरुआती शिक्षा शेरवुड कॉलेज नैनीताल में हुई, उसके बाद उन्होंने आगे की शिक्षा देहरादून स्थित मिलिट्री कॉलेज में की , 22 फरवरी 1942 को रॉयल मिलिट्री कॉलेज से स्नातक की डिग्री पाने के बाद सोमनाथ शर्मा ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए, सोमनाथ शर्मा को 19वी हैदराबाद रेजिमेंट की आठवीं बटालियन में तैनात किया गया, (उनकी इस रेजिमेंट को आजादी के बादKUMAOU REGIMENT की चौथी बटालियन के नाम से जाना जाने लगा, (4 KUMAOU)

Major Somnath Sharma ने द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया वह बर्मा में जापानी सेना के खिलाफ लड़े, द्वितीय विश्व युद्ध में उनके योगदान के लिए उनको मेंशन इन डिस्पैचैस में स्थान मिला,1942में उन्होंने एक पत्र लिखा था अपने घरवालों के नाम जो इस प्रकार हैं,'""मैं अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हूं इस जगह पर मृत्यु का थोड़ा डर तो जरूर है लेकिन जब भी मैं गीता में भगवान श्री कृष्ण के वाक्य को याद करता हूं की आत्मा तो अमर है फिर क्या फर्क पड़ता है शरीर है या नष्ट हो गया, तो वह डर खत्म हो जाता है और मैं फिर से तरोताजा और अपने अंदर एक जोश महसूस करता हूं, वह आगे लिखते हैं कि पिताजी मैं आपको डरा नहीं रहा हूं लेकिन अगर मैं मर गया तो मैं आपको यह यकीन दिलाता हूं कि मैं एक बहादुर सैनिक की मौत मरूंगा , इस देश पर अपने प्राण निछावर करते समय मुझे कोई दुख नहीं होगा बल्कि गर्व होगा और इस पर आपको भी गर्व होना चाहिए ईश्वर आप सब पर अपनी कृपा बनाए रखें""

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1947 INDIA PAK WAR ;;;;;;

22अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में आक्रमण कर दिया ,31 अक्टूबर 1947को 4 कुमाऊ रेजीमेंट की डेल्टा कंपनी को श्रीनगर भेजा गया,मेजर सोमनाथ शर्मा के बाएं हाथ में एक फ्रैक्चर हो रखा था,जो कि एक हॉकी मैच में चोट लगने के कारण हुआ था,मेजर सोमनाथ को चोट के कारण कंपनी के साथ जाने से मना किया गया लेकिन मेजर ने कहा कि वो अपनी कंपनी के साथ जाना चाहते हैं,तब उनको कंपनी के साथ भेजा गया,उनकी कंपनी को बड़गाम में तैनात किया गया, 03 नवम्बर को सुबह ही तकरीबन 500 पाकिस्तानी घुसपैठियों ने मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी पर तीनों तरफ से हमला कर दिया, सोमनाथ शर्मा ने अपनी टुकड़ी के साथ मिलकर उनका बहुत ही बहादुरी के साथ मुकाबला किया,उनके हाथ में चोट थी फिर भी वह भाग भाग कर अपने सैनिको को मैगजीन देने का काम कर रहे थे,वह मैगजीन में गोलियां भर रहे थे,और साथ ही अपनी टुकड़ी का हौसला भी बढ़ा रहे थे
इस दौरान मेजर सोमनाथ शर्मा के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे ,इसी बीच एक मोटार का गोला ठीक उनके पास आकर गिरा,और भारत माता का यह वीर सपूत वीरगति को प्राप्त हो गया,वीरगति को प्राप्त होने से पहले Major Somnath Sharma ने अपनी सैनिकों को ललकार कहा
:: दुश्मन केवल कुछ ही दूरी पर है,हम नफरी में बहुत कम है, दुश्मन हम पर भारी गोलाबारी कर रहा है लेकिन फिर भी मैं और मेरे सैनिक 1 इंच भी पीछे नहीं हटेंगे मैं अपनी आ़खरी गोली और जब तक मेरा आखरी सैनिक जिंदा है हम मुकाबला करेंगे,उनको अपनी जमीन नहीं लेने देंगे,
मेजर सोमनाथ शर्मा की शहादत ने उनकी सैनिकों को प्रेरित किया और वे पूरे जोश के साथ तब तक लड़ते रहे जब तक उनके शरीर में जान थी,

मेजर का शरीर मोर्टार के गोले विस्फोट के कारण क्षत विक्षत हो गया था,मेजर सोमनाथ शर्मा गीता से बहुत प्रभावित थे वह हमेशा अपनी जेब में गीता रखे थे, जेब में रखी गीता से उनके शव की पहचान हो सकी
मेजर सोमनाथ की इस वीरता और कुशल नेतृत्व के कारण पाकिस्तानी घुसपैठिए श्रीनगर एयरबेस में कब्जा करने में नाकाम रहे, मेजर सोमनाथ शर्मा को असाधारण वीरता युद्ध कौशल, कुशल नेतृत्व और निस्वार्थ सेवा के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार Param Vir Chakra (Posthumous) से सम्मानित किया गया जो उनके पिता श्री अमरनाथ शर्मा ने ग्रहण किया
Major Somnath Sharma को कहा गया था कि अगर आप को लगता है कि दुश्मन कि नफरी जायदा है और आप मुकाबला नहीं कर सकते तो आप पीछे हट सकते हैं,लेकिन मेजर ने पीछे हटने के विकल्प को नहीं चुना उन्होंने चुना की वो आखरी दम तक मुकाबला करेंगे, उनकी टुकड़ी की नफरी दुश्मन की नफरी से बहुत कम थी, दुश्मन तकरीबन 500 की नफरी में थे और मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी में तकरीबन 100 सैनिक थे, मेजर सोमनाथ शर्मा और उनकी कंपनी कि इस शौर्य गाथा को हमारा देश हमेशा याद रखेगा और उनकी शौर्य गाथा हमेशा सुनाई जाएंगी।
90 के दशक में डीडी नेशनल पर, परमवीर चक्र नाम का एक सीरियल शुरू हुआ जिसमें पहला एपिसोड मेजर सोमनाथ शर्मा का ही दिखाया गया था,


जय हिन्द, जय भारत

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