Lieutenant General Nathu Singh Rathod
जनरल नाथू सिंह: जिनकी वजह से स्वतंत्र भारत का आर्मी चीफ़ अंग्रेज़ नहीं, बल्कि एक भारतीय बना था
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आज आपको एक ऐसे ही जनरल के बारे में जानकारी दूंगा जिनको भारतीय सेना का पहला सेनाध्यक्ष बनने का मौका मिला था लेकिन उन्होंने अपने से सीनियर अधिकारी का नाम लिया और कहा कि ये मुझसे वरिष्ठ है और इस पद के लिए बिलकुल सही भी,बात भारत के आजादी के समय की है, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद सभी वरिष्ठ नेताओं और सेना अधिकारियों की एक विशेष बैठक बुलाई उस बैठक में कई विषयों पर चर्चा होनी थी इसमें से एक विषय यह भी था की आजाद भारत का पहला सेना अध्यक्ष कौन हो ,बैठक के दौरान श्री नेहरू जी ने सेना अध्यक्ष के पद को लेकर कहा की हमारे पास अनुभवी और कुशल सेना अध्यक्ष नहीं है जिसके कारण हमें किसी ब्रिटिश सेना अधिकारी को ही भारतीय सेना का सेना अध्यक्ष बना लेना चाहिए, मीटिंग में बैठे सभी लोगों ने पंडित जवाहरलाल नेहरू का समर्थन किया लेकिन वहां पर मौजूद लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर इस बात से बहुत नाराज हुए और उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू की बात का खंडन करते हुए कहा महोदय मैं भी कुछ कहना चाहता हूं , हमारा देश अभी-अभी आजाद हुआ है और हमें देश चलाने के लिए किसी अनुभवी प्रधानमंत्री की आवश्यकता होगी क्योंकि हमारे पास कोई अनुभवी प्रधानमंत्री नहीं है तो क्यों ना हम किसी ब्रिटिश को ही प्रधानमंत्री बना दें????! लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौड़ इस बात से श्री नेहरू हैरान थे उन्होंने जनरल राज नाथू सिंह से कहा की आप ही commander-in-chief बन जाओ लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर ने कहा श्रीमान हमारे पास एक नहीं कई प्रतिभाशाली और अनुभवी, वीर सैनिक अफसर हैं जो मुझसे सीनियर भी है उनके होते हुए मैं इस पद पर विराजमान नहीं हो सकता, तब उन्होंने उस सभा में अपने से सीनियर जनरल केएम करिअप्पा का नाम आजाद भारत के पहले सेना अध्यक्ष के रूप में सामने रखा और जनरल केएम करिअप्पा को भारत के पहले सेना अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ।
नाथू सिंह राठौड़ का जन्म राजस्थान के डुगर पुर के गुमानपुरा में सन् 1902 के लगभग हुआ था,वे मेवाड़ के महान शूरवीर जयमल राठौर के वंशज थे ,बचपन में माता पिता का साया इनके सर से उठ गया था .इनके माता पिता के बाद डुगर पुर के महारावल श्री विजय सिंह जी ने इनकी पढाई लिखाई का जिम्मा उठाया ,नाथू सिंग राठौर बचपन से ही तेज तर्रार थे ,शुरवाती पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने ब्रेटन के रायल सैंड हर्स्ट मिलिर्टी अकादमी में एडमिसन लिया और वहा से पास आउट होने वाले वे दुसरे भारतीय थे ,
वहा से पास आउट होने के बाद उनको
1/7 राजपूत रायफल्स में बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया ;वे राजस्थान के राजपूत घराने से तालुक रखते थे ;उन्होंने एक बार अंग्रेजो के साथ मेस में भोजन करने से भी माना कर दिया था ;जिसके कारण उनके कोर्ट मार्शल तक की नोबत आ गई थी ;लेकिन उनके रिकॉर्ड को देखते हुए उनको दूसरा मौका दिया गया ; नाथू सिंह कभी भी आर्मी कैप नही पहनते थे 'वे हमेशा राजस्थानी साफा ही पहनते थे ;वे अपने कठोर और कड़क अंदाज के लिये हमेशा चर्चा में रहते थे ;वे निर्भीक और निडर थे अपनी बात कहने के लिये वे किसी का सहारा नही लेते थे 'वे एक कुशल सैन्य अधिकारी थे ;15 मई 1974 को इस महान सेना नायक ने अपनी अंतिम साँस ली ;
लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौड़ को उनके साथी " फ़ौजी गाँधी "के नाम से बुलाते थे 'उनके कारण ही भारतीय सेना को भारतीय से जनरल मिला ''
ऐसे महान और वीर सेना नायक को मेरा सत सत नमन्
"""""""""""""""" जय हिंद जय भारत
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