करतार सिंह सराभा एक क्रांतिकारी,जब तक मेरा देश आजाद नहीं हो जाता, तब तक मैं बार बार जन्म लेता रहूं "


करतार सिंह सराभा

""""""" गुमनाम हैं,,आज भी वतन की खातिर सीने पर गोली खाने वाले,,कुछ लोग तो थप्पड़ खाकर ही मशहूर हुए जा रहे है,


करतार सिंह सराभा
Image source wikipedia


भगत सिंह का नाम तो आप सब लोगों ने सुना ही है और सब इस महान क्रांतिकारी को सलाम भी करते हैं परंतु क्या आपको पता है कि भगत सिंह किसको अपना गुरु मानते थे,वे किससे प्रभावित थे, एक महान क्रांतिकारी की फोटो वे हमेशा अपने जेब में रखते थे,  एक ऐसे क्रांतिकारी जिन्होंने केवल 19 वर्ष की आयु में भारत देश को आजाद कराने के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति दी थी,एक बार भगत सिंह ने अपनी माता जी को करतार सिंह सराभा की फोटो 
दिखाई और कहा माता ये मेरा हीरो हैं,
करतार सिंह सराभा को जब  19  वर्ष  की आयु में फासी दी जा रही थी,तब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई,इस 19 साल के नौजवान ने सर ऊंचा करके कहा कि""""  जब तक  मेरा देश आजाद नहीं हो जाता, तब तक मैं  बार बार जन्म लेता रहूं ""
करतार सिंह चाहते तो अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सकते थे परंतु उन्होंने आराम और आलीशान जीवन को छोड़कर,इस देश को आजाद कराने के लिए अपना जीवन दे दिया,
करतार सिंह सराभा का जन्म  24 मई 1896 को पंजाब के लुधियाना जिले के सराभा गांव में हुआ था, करतार सिंह के पिता का बचपन में ही निधन हो गया था ,करतार सिंह सराभा की परवरिश उनके दादाजी श्री बदन सिंह जी ने की। करतार सिंह सराभा की शुरुआती शिक्षा लुधियाना में ही हुई, शुरुआती शिक्षा के बाद दादाजी ने करतार सिंह को इनके चाचा के पास उड़ीसा भेज दिया, जहां से इन्होंने अपनी हाईस्कूल की  परीक्षा पास की, करतार सिंह सराभा का परिवार बहुत संपन्न था इसकी वजह से उनको भारत में रहकर कभी गुलामी का एहसास नहीं हुआ, सन 1912 करतार सिंह सराभा को आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा गया,जब करतार सिंह सराभा हवाई जहाज से अमेरिका पहुंचे तो एयरपोर्ट पर उनके सामान की तलाशी ली गई,जब करतार सिंह ने इसकी वजह पूछी तो उनको कहा गया की तुम भारत से आए हो जो एक गुलाम देश है,
तब करतार सिंह सराभा को अपनी व अपने देश की गुलामी
का एहसास हुआ,इसके बाद करतार सिंह सराभा ने भारत की आजादी के लिए काम करना शुरू किया,वे अमेरिका में
लाला हरदयाल जी से मिले,और  उनके साथ मिलकर अमेरिका में बसे भारतीयों को भारत की आजादी के लिए प्रोत्‍साहित करने लगे,करतार सिंह सराभा ने लाला हरदयाल जी के साथ मिलकर अमेरिका में पढ़ने या काम करने वाले भारतीय युवाओं को एकजुट किया और उनके मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह कि चिंगारी पैदा की
करतार सिंह सराभा ने  अपने साथियों के साथ मिलकर पहले विश्व युद्ध के समय पूरे देश में एक साथ क्रांति करने की योजना बनाई,  करतार सिंह सराभा ने अपने साथियों के साथ मिलकर सन 1913 में गदर पार्टी की स्थापना की ,गदर पार्टी का मकसद 1857 की क्रांति की तरह एक और बड़ी  क्रांति कर भारत देश को आजाद कराना था
उन्होंने गदर नाम से एक अख़बार भी शुरू किया,जिसके टाइटल हेड पर लिखा था""अंग्रेजी राज्य के दुश्मन"
इस अखबार को कई भाषाओं में छापा गया था,
प्रथम विश्व युद्ध के समय अग्रेजी सरकार युद्ध में  फंसे हुए थे,उस समय गदर पार्टी के सदस्यों ने सोचा कि , क्यू ना भारत में एक बड़ा विद्रोह किया जाए,जिससे भारत को आजादी मिल सकती हैं, करतार सिंह सराभा और लाला हरदयाल जी के प्रभाव से तकरीबन 4000, क्रांतिकारी  भारत के लिए निकल पड़े,
परंतु किसी ने अंग्रेजो को इसकी जानकारी दे दी और बिर्टिश सरकार ने सभी को भारत पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया,और बंदी बना लिया,करतार सिंह सराभा अपने कुछ साथियों के साथ वहां से बच निकले,
इसके बाद करतार सिंह अपने साथियों के साथ पंजाब पहुंचे और वहां उन्होंने अपनी मुहिम को जारी रखा,
उन्होंने सुरेंद्रनाथ बनर्जी, रासबिहारी बोस,शचीन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारियों से मुलाकात हुई और साथ में मिलकर कार्य किया, रासबिहारी बोस के साथ मिलकर इन्होंने एक दल बनाया और भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांति के लिए प्रेरित किया,
करतार सिंह ने सैनिक छावनियों में जा कर भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ तैयार किया और उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत लिए नफरत पैदा की,करतार सिंह 1857 जैसी क्रांति चाहते थे ,जो एक साथ हो ,पूरे देश में हो, करतार सिंह ने सभी क्रांतिकारियों और सैनिकों को 1857 की जैसी क्रांति के लिए प्रेरित किया,और 21 फरवरी 1915 को पूरे भारत में एक साथ विद्रोह करने का फैसला किया गया परंतु ब्रिटिश सरकार को पहले ही इसकी जानकारी हो गई उन्होंने बड़े पैमाने पर क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी शुरू की, राज बिहारी बोस वहां से बच निकले और कोलकाता होते हुए जापान चले गए, उन्होंने करतार सिंह को भी अफगानिस्तान जाने के लिए कहा लेकिन करतार सिंह  नहीं गए, और उन्होंने आजादी के लिए अपना संघर्ष जारी रखा,उन्होंने जगह-जगह जाकर सैनिकों को आजादी के लिए जागरूक किया, करतार सिंह ने लायलपुर में एक चौकी पर विद्रोह कराने की कोशिश की और वहां पर अंग्रेजो ने इनको गिरफ्तार कर लिया, करतार सिंह और उनके साथियों पर "लाहौर षड्यंत्र" नाम से केस चलाया गया, इन पर हत्या, डाका डालने, तख्तापलट की कोशिश के लिए मुकदमा चलाया गया, और आखिर में करतार सिंह
और उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई।
करतार सिंह को फांसी की सजा सुनाते समय ब्रिटिश जज ने कहा था कि इतनी कम उम्र में यह लड़का ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक बड़ा खतरा है,26 अप्रैल 1915 से
13 सितंबर 1915 तक ये केस चला ।लाहौर सेंट्रल जेल में 16 नवंबर 1915 को करतार सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी गई, करतार सिंह की यह शहादत भारत देश में भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों की पौध तैयार कर गई,
करतार सिंह सराभा का नाम हम में से कई लोग नहीं जानते , मैं भी नहीं जानता था,क्युकी हमको कभी बताया ही नहीं गया है, इन महान लोगो के बारे में,महात्मा गांधी ,नेहरू जैसे नाम तो सब जानते हैं ,लेकिन करतार सिंह सराभा जैसे कितने ही लोग गुमनाम हो गए ,जिन्होंने भारत देश को आजाद कराने के लिए अपना बलिदान दिया,अब हमारा काम है इनके बारे में सब को बताना ।
जय हिन्द वन्दे मातरम्,
"'"कोन कहता हैं, कि चरखे  से आजादी आई थी,अगर
   चरखे ने आजादी दिलाई तो 19 साल में हस कर फांसी
   चढ़ने वाले करतार कौन थे,

      "'"कौन कहता हैं , कि चरखे  से आजादी आई थी,
अगर चरखे ने आजादी दिलाई तो भगत सिंह,राजगुरु,सहदेव ,आजाद कौन थे,
।।।

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