वीर क्रांतिकारी खुदी राम बोस की जीवनगाथा,जीवनी ,बायोग्राफी
IMAGE SOURCE AMAZON |
गुमनाम है आज़ादी की खातिर जान देने वाले हमारे देश में कुछ लोग थप्पड़ खा कर मशहूर हुए जा रहे है
आजादी कितना छोटा सा शब्द है ,लेकिन इसके पीछे अगर देखा जाए तो इसको प्राप्त करने के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है, हजारों युवा फांसी पर चढ़े है,कई लोगो ने गोलियां खाई है, लाठीया खाई है,,कई लोग है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ दे दिया ,लेकिन उनके त्याग और देश प्रेम का किसी को कोई पता नहीं,आज आपको इतिहास के पन्नों की तरफ ले जा रहा हु और एक ऐसे वीर क्रांतिकारी के बारे में जानकारी दूंगा ,,जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दब कर रह गया,
उनका नाम है खुदी राम बोस,। खुदी राम बोस को केवल 19 वर्ष की आयु में फांसी पर लटका दिया गया था, आजादी की लड़ाई में वे सबसे कम उम्र में फांसी पर चढ़े थे।
"" हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पर कफ़न,।
जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
दिल में तूफानों की टोली और नसों में है इंकलाब।
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें ना रोको आज
दूर रह पाए जो हमसे दम कहा मंजिल में है,।।
शुरुवाती जीवन:::::::::::::
खुदी राम बोस का जन्म पश्चिम बंगाल के मदिनापुर जिले के बहुवैनी गांव में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था।इनके पिता का नाम बाबू त्रिलोकनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था,खुदी राम बोस के दिल में भारत देश की आजादी को लेकर एक चिंगारी दबी हुई थी,,वे बचपन से निर्भीक और देशप्रेमी थी ,उनका मन पढ़ाई में नही लगता था इसलिए उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई नही की,वे स्कूल छोड़ कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे,स्कूल के बाद खुदी राम बोस रेवोल्युलूशनरी पार्टी में शामिल हो गए,
आजादी की लड़ाई:::::::::::
1995 में बंगाल के विभाजन ( बंग भंग ) के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी खुदी राम बोस ने अग्रणी भूमिका निभाई, सन 1906 में मदिनपापुर में एक औद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी,प्रदर्शनी को देखने के लिए आस पास के गावों से बहुत सारे लोग आए हुए थे, खुदी राम बोस ने ""सोनार बांग्ला"" नाम की प्रतिका इस प्रदर्शनी में बाटी ,सोनार बांग्ला बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी सतेयेंद्रनाथ द्वारा लिखा गया एक ज्वलंत प्रतिका थी,जब पुलिस ने खुदी राम बोस को प्रतिका बाटने से रोका तो वो पुलिस वाले को पीट कर वहा से भाग निकले,इनके इस कार्य के उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया, उनको गिरफ्तार किया गया लेकिन वे जेल से भाग निकले,उनको फिर से गिरफ्तार कर लिया गया,और केस चलाया गया,। लेकिन कोई भी सबूत न मिलने पर खुदी राम बोस छूट गए,
06 दिसंबर 1907 में खुदी राम बोस ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की ट्रेन पर हमला बोल दिया लेकिन गवर्नर की किस्मत अच्छी थी वो इस हमले से बच गया।खुदी राम बोस एक उग्र किस्म के क्रांति कारी थे,वो अहिंसा पर नही हिंसा पर विश्वास करते थे,उनके अनुसार बिना रक्त बहाए भारत को आजादी मिलना नामुमकिन था,
सन 1908 में खुदी राम बोस ने 2 अंग्रेज अधिकारियों वाटसन,और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला कर दिया,
वो हमेशा किसी न किसी अंग्रेज को मारने का प्लान बनाते रहते थे,
सन 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल के दो टुकड़े कर दिए उसके विरोध में जब लोग सड़कों पर उतर आए,तो उस समय कोलकाता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने कही भारतीयों को क्रूर दंड दिया था,
खुदी राम बोस मिदना पुर में युगान्तर नाम के क्रान्तिकारी दल के सदस्य थे , इस दल ने मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड को जान से मारने की योजना बनाई,मॅजिस्ट्रेट को मारने के लिए खुदी राम बोस और प्रफुल्लकुमार का चयन किया गया, दोनो को एक एक पिस्तौल और एक एक बम दिया गया,
दोनो ने मिलकर मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड को मारने की प्लानिंग की ,और उन्होंने बम से एक बग्घी को उड़ा भी दिया लिकन us दिन मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड उस बग्घी में नहीं था,जिसके कारण वो बच गया ,बम धमाके के बाद खुदी राम बोस और
प्रफुल्लकुमार के पीछे पुलिस लग गई थी , उस बम धमाके में 2 अंग्रेजी महिलाए मारी गई थी, अंग्रेजो ने उनको पकड़ लिया था,अंग्रेजी पुलिस नि वैनी रेलवे स्टेशन पर खुदी राम बोस और प्रफुल्लकुमार चाकी को घेर लिया ,प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मार ली और अपनी शहादत दे दी,खुदी राम बोस को पुलिस ने पकड़ लिया और जेल में डाल दिया इसके बाद उन पर केस चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई ,11 अगस्त 1908 को इनको मुजफरपुर जेल में फांसी दे दी |,फांसी के समय उनकी आयु केवल 19 साल थी,
वे इस छोटी सी आयु में फांसी पर चढ़ने से बिलकुल भी नहीं डरे , वे गीता हाथ में लिए हंसते हंसते फांसी पर चढ़ गए। खुदी राम बोस की फांसी की सजा से बंगाल और पूरे भारत के युवा उनसे प्रेरित हुए,|और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े,फांसी के बाद खुदी राम बोस बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गए,। बंगाल के जुलाहे (कपड़े बनाने वाले) उनके नाम की एक धोती बनाने लगे,|इस प्रकार एक 18 साल के युवा ने अपनी प्राणों की आहुति दी,|ताकि देश की आजादी की लड़ाई आगे बढ़ सके,
वीर क्रांतिकारी खुदी राम बोस को मेरा सत सत नमन !!!!!
जय हिंद जय भारत!!!!
आजादी कितना छोटा सा शब्द है ,लेकिन इसके पीछे अगर देखा जाए तो इसको प्राप्त करने के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है, हजारों युवा फांसी पर चढ़े है,कई लोगो ने गोलियां खाई है, लाठीया खाई है,,कई लोग है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ दे दिया ,लेकिन उनके त्याग और देश प्रेम का किसी को कोई पता नहीं,आज आपको इतिहास के पन्नों की तरफ ले जा रहा हु और एक ऐसे वीर क्रांतिकारी के बारे में जानकारी दूंगा ,,जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दब कर रह गया,
]
उनका नाम है खुदी राम बोस,। खुदी राम बोस को केवल 19 वर्ष की आयु में फांसी पर लटका दिया गया था, आजादी की लड़ाई में वे सबसे कम उम्र में फांसी पर चढ़े थे।
"" हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पर कफ़न,।
जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
दिल में तूफानों की टोली और नसों में है इंकलाब।
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें ना रोको आज
दूर रह पाए जो हमसे दम कहा मंजिल में है,।।
शुरुवाती जीवन:::::::::::::
खुदी राम बोस का जन्म पश्चिम बंगाल के मदिनापुर जिले के बहुवैनी गांव में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था।इनके पिता का नाम बाबू त्रिलोकनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था,खुदी राम बोस के दिल में भारत देश की आजादी को लेकर एक चिंगारी दबी हुई थी,,वे बचपन से निर्भीक और देशप्रेमी थी ,उनका मन पढ़ाई में नही लगता था इसलिए उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई नही की,वे स्कूल छोड़ कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे,स्कूल के बाद खुदी राम बोस रेवोल्युलूशनरी पार्टी में शामिल हो गए,
आजादी की लड़ाई:::::::::::
1995 में बंगाल के विभाजन ( बंग भंग ) के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी खुदी राम बोस ने अग्रणी भूमिका निभाई, सन 1906 में मदिनपापुर में एक औद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी,प्रदर्शनी को देखने के लिए आस पास के गावों से बहुत सारे लोग आए हुए थे, खुदी राम बोस ने ""सोनार बांग्ला"" नाम की प्रतिका इस प्रदर्शनी में बाटी ,सोनार बांग्ला बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी सतेयेंद्रनाथ द्वारा लिखा गया एक ज्वलंत प्रतिका थी,जब पुलिस ने खुदी राम बोस को प्रतिका बाटने से रोका तो वो पुलिस वाले को पीट कर वहा से भाग निकले,इनके इस कार्य के उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया, उनको गिरफ्तार किया गया लेकिन वे जेल से भाग निकले,उनको फिर से गिरफ्तार कर लिया गया,और केस चलाया गया,। लेकिन कोई भी सबूत न मिलने पर खुदी राम बोस छूट गए,
06 दिसंबर 1907 में खुदी राम बोस ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की ट्रेन पर हमला बोल दिया लेकिन गवर्नर की किस्मत अच्छी थी वो इस हमले से बच गया।खुदी राम बोस एक उग्र किस्म के क्रांति कारी थे,वो अहिंसा पर नही हिंसा पर विश्वास करते थे,उनके अनुसार बिना रक्त बहाए भारत को आजादी मिलना नामुमकिन था,
सन 1908 में खुदी राम बोस ने 2 अंग्रेज अधिकारियों वाटसन,और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला कर दिया,
वो हमेशा किसी न किसी अंग्रेज को मारने का प्लान बनाते रहते थे,
सन 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल के दो टुकड़े कर दिए उसके विरोध में जब लोग सड़कों पर उतर आए,तो उस समय कोलकाता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने कही भारतीयों को क्रूर दंड दिया था,
खुदी राम बोस मिदना पुर में युगान्तर नाम के क्रान्तिकारी दल के सदस्य थे , इस दल ने मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड को जान से मारने की योजना बनाई,मॅजिस्ट्रेट को मारने के लिए खुदी राम बोस और प्रफुल्लकुमार का चयन किया गया, दोनो को एक एक पिस्तौल और एक एक बम दिया गया,
दोनो ने मिलकर मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड को मारने की प्लानिंग की ,और उन्होंने बम से एक बग्घी को उड़ा भी दिया लिकन us दिन मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड उस बग्घी में नहीं था,जिसके कारण वो बच गया ,बम धमाके के बाद खुदी राम बोस और
प्रफुल्लकुमार के पीछे पुलिस लग गई थी , उस बम धमाके में 2 अंग्रेजी महिलाए मारी गई थी, अंग्रेजो ने उनको पकड़ लिया था,अंग्रेजी पुलिस नि वैनी रेलवे स्टेशन पर खुदी राम बोस और प्रफुल्लकुमार चाकी को घेर लिया ,प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मार ली और अपनी शहादत दे दी,खुदी राम बोस को पुलिस ने पकड़ लिया और जेल में डाल दिया इसके बाद उन पर केस चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई ,11 अगस्त 1908 को इनको मुजफरपुर जेल में फांसी दे दी |,फांसी के समय उनकी आयु केवल 19 साल थी,
वे इस छोटी सी आयु में फांसी पर चढ़ने से बिलकुल भी नहीं डरे , वे गीता हाथ में लिए हंसते हंसते फांसी पर चढ़ गए। खुदी राम बोस की फांसी की सजा से बंगाल और पूरे भारत के युवा उनसे प्रेरित हुए,|और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े,फांसी के बाद खुदी राम बोस बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गए,। बंगाल के जुलाहे (कपड़े बनाने वाले) उनके नाम की एक धोती बनाने लगे,|इस प्रकार एक 18 साल के युवा ने अपनी प्राणों की आहुति दी,|ताकि देश की आजादी की लड़ाई आगे बढ़ सके,
वीर क्रांतिकारी खुदी राम बोस को मेरा सत सत नमन !!!!!
जय हिंद जय भारत!!!!
0 टिप्पणियाँ