परमवीर सूबेदार जोगिंदर सिंह: जो बिना हथियार 200 चीनी सैनिकों से लड़े
सूबेदार जोगिंदर सिंह,(परम वीर चक्र)
भारत देश हमेशा से वीरों कि भूमि रही हैं,और भारत की भूमि ने हमेशा इस देश को एक से एक वीर दिए हैं,जब जब हमारे देश पर दुश्मन की बुरी नजर पड़ी ,है तब तब इस देश के जवानों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए,असीम शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन के दांत खट्टे किए हैं,आज एक ऐसे ही भारत माता के लाल की गौरव गाथा लिखने जा रहा हूं,जिन्होंने 1962 के भारत चीन के युद्ध में अपना सर्वोच्च बलिदान इस देश के लिए दिया था,तो आईए पढ़ते हैं सूबेदार जोगिंदर सिंह की गौरशाली गाथा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सूबेदार जोगिंदर सिंह का जन्म पंजाब के मोगा जिले के मेहाकलन गांव में 26 सितम्बर 1929 को हुआ था,इनके पिता का नाम श्री शेर सिंह और माता का नाम किशन कौर था ,वे एक किसान थे ,जोगिंदर सिंह की शुरुवाती शिक्षा अपने गांव में ही हुई,पारिवारिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं होने के कारण वे ज्यादा दिन स्कूल नहीं जा सके ,और जोगिंदर सिंह ने सेना में भर्ती होने का फैसला किया, सन् 1936में जोगिंदर सिंह ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद जोगिंदर सिंह को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में नियुक्त किया गया,सेना में भर्ती होने के बाद उनकी प्रतिभा का विकास हुआ ,जोगिंदर सिंह ने सेना में पढ़ाई जारी रखी और,उन्होंने सेना की कई परीक्षाएं उत्तीर्ण की, और सूबेदार जोगिंदर सिंह को यूनिट शिक्षा प्रशिक्षक नियुक्त किया गया,समय समय पर उनको पदोन्नति भी मिलती रही,और इस बीच वे एक अनुशासित,और बहादुर सैनिक के रूप में उभर कर सामने आ गए थे,
सूबेदार जोगिंदर सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध तथा 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया,और अपनी वीरता का परिचय दिया,
1962 भारत चीन का युद्ध
हिमालय क्षेत्र में चीन की लगातारबढ़ रही घुसपैठ के कारण तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने ""फॉरवर्ड पॉलिसी '' नाम की एक योजना बनाई थी,जिसके अन्तर्गत भारतीय सेना को अपनी
स्थिति को मजबूत करने के लिए छोटी छोटी पोस्टों का निर्माण करना था,प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने ये मान लिया था कि चीन हमला नहीं करेगा ,परन्तु चीन ने युद्ध की शुरुवात कर दी थी,
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हवलदार अनिल कुमार तोमर शौर्य चक्र |
हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र) |
मेजर शैतान सिंह मराठी माहिती |
हाइफा का युद्ध |
बाना सिंह |
हरियाणा में कौन परमवीर चक्र विजेता है |
बूमला की लड़ाई
1962 में जब चीन ने भारत पर युद्ध थोप दिया था तब भारतीय सेना भी उनका मुकाबला करने के लिए चीन बॉर्डर की तरफ निकल पड़े थे,उस समय भारतीय सेना के पास सीमित साधन थे,गोला बारूद की कमी होने के साथ साथ ,कपड़ों और राशन कि कमी भी थी,परन्तु भारतीय सेना के जवान जोश ,और बहादुरी की मिशाल थे,भारतीय सेना के जवानों ने इस युद्ध में ऐसी वीरता का प्रदर्शन किया कि दुश्मन की सेना ने भी उनकी वीरता का लोहा माना,चीनी सेना मजबूत थी,मगर उनके इरादे भारतीय सेना से मजबूत नहीं थे,इसी कड़ी में सूबेदार जोगिंदर सिंह की बटालियन ""1 सिख रेजिमेंट ""को भी'' नामका चू" जाने का आदेश मिला गया था,नामका चू में चीनी सेना बहुत मजबूत स्थिति बनाए हुए थी,वो यहां पर बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे,चीनी सेना ने थगला रिज़ पर अपना कब्जा कर लिया था,और लद्दाख समेत कई हिस्सोंपर एक साथ हमले शुरू कर दिए थे,अब चीनी सेना तवांग पर कब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ रही थी ।चीनी सेना को रोकने का काम भारतीय सेना की 1 सिख रेजिमेंट को दिया गया, 1 सिख रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी को आई बी रिज पर तैनात किया गया , यहां पर सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अपने जवानों के साथ मोर्चा संभाल लिया था, 20 अक्टूबर 1962 को जब आसाम राइफल के जवानों ने बामला आउटपोस्ट से देखा कि बॉर्डर के उस तरफ चीनी सेना बहुत बड़ी संख्या में जमा हो रही हैं तो उन्होंने सूबेदार जोगिंदर सिंह की प्लाटून को यह खबर दे दी
सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अपना एक सेक्शन बामला पोस्ट कि तरफ भेज दिया,और दुश्मन पर नजर रखने का आदेश दिया,और साथ ही यूनिट को गोला बारूद मुहैया करवाने का संदेश दिया,सूबेदार जोगिंदर सिंह ने वहां की भौगोलिक स्थिति को अच्छी तरह से समझ लिया था,
सूबेदार जोगिंदर सिंह ने वहा पर बंकर और मोर्चे बनवा दिए थे ,ताकि दुश्मन के फायर से बचा जा सके,और उन पर सटीक गोला बारी हो सके,23 अक्टूबर 1962 की पहली किरण के साथ ही चीनी सेना ने भारतीय सेना पर हमला बोल दिया था,जब चीनी सेना ऊपर की तरह आ रही थी तब सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अपनी जवानों को उनके ऊपर सटीक फायर करने का आदेश दिया,उन्होंने अपने जवानों से कहा कि एक एक गोली का हिसाब लिया जाएगा,जब तक दुश्मन हथियार की रेंज में ना आए तब तक कोई गोली ना चलाए,उनके कुशल नेतृत्व में 1 सिख रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी ने चीनी सेना का पहला हमला नाकाम कर दिया था,
सूबेदार जोगिंदर सिंह और उनके साथियों ने चीनी सेना को मसल कर रख दिया था, और पहले हमले में चीनी सेना को जान बचाकर पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा,इसमें कुछ भारतीय जवान भी घायल हो गए थे,और साथ ही गोलियां भी खत्म हो रही थी,
चीनी सेना ने फिर से अपने जवानों को इकट्ठा किया और तकरीबन 200 की नफरी ने एक बार फिर से हमला बोल दिया,भयानक गोला बारी शुरू हो गई,इसी बीच चीनी सेना एक दल भारतीय सेना की नजरों से छुप कर ऊपर चढ़ गया,और एक आमने सामने की लड़ाई शुरू ही गई ,इस बीच सूबेदार जोगिंदर सिंह की जांघ में गोली लग गई,गोली लगने के बाद उन्होंने अपनी जांघ में फील्ड पट्टी लगाई और मुश्किल हालात में भी उन्होंने अपने जवानों का हौसला बढ़ाने का कार्य किया,वे चिल्लाकर अपने जवानों को जोश बढ़ा रहे थे,जब उनकी प्लाटून का
गनर शहीद हो गया तो सूबेदार जोगिंदर सिंह जी ने खुद
मोर्टार ले ली और दुश्मन पर कई राउंड फायर किए,सूबेदार
जोगिंदर सिंह और उनके साथियों ने कई चीनी सैनिकों को मार गिराया था,इस आमने सामने की लड़ाई में कई भारतीय सैनिक भी वीर गति को प्राप्त हो गए थे,और कई बुरी तरह से घायल हो गए थे,चीनी सैनिकों की संख्या बढ़ती जा रही थी,वे नीचे की तरफ से बड़ी संख्या में ऊपर आ रहे थे,सूबेदार जोगिंदर सिंह को जब रेडियो पर ये संदेश मिला ,तो उनका जवाब था ,जी साब""
उनके पास गोलियां,और अन्य युद्ध सामग्री खत्म होने वाली थी,सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अपने बचे हुए सैनिकों को एकजुट किया और उनकी हौसला अफजाई की,इस के बाद 1 सिख रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी के बचे हुए जवानों ने सूबेदार जोगिंदर सिंह के नेतृत्व में अपनी अपनी राइफलों में बेयोनेट(बंदूक में लगने वाला चाकू) लगा लिया और ,""""जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल"" के जयकारे के साथ उन्होंने चीनी सैनिकों पर धावा बोल दिया,और कई चीनी सैनिकों को मार गिराया,
चीनी सैनिक आते जा रहे थे,सूबेदार जोगिंदर सिंह बुरी तरह से घायल हो गए थे,,उनको चीनी सेना ने बंदी बना लिया, वहां से तीन भारतीय सैनिक भाग निकले,उन्होंने अपनी पलटन में जा कर कई देर तक इस युद्ध की कहानी को सुनाया,बंदी बनाए जाने के कुछ समय बाद ही वे वीरगति को प्राप्त हो गए,23 अक्टूबर 1962 को सूबेदार जोगिंदर सिंह के नेतृत्व में 1 सिख रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी के जवानों ने बूमला अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना के दो हमलों को नाकाम कर दिया था,और दुश्मन को भारी क्षति
पहुंचाई
सूबेदार जोगिंदर सिंह को इस युद्ध में असीम शौर्य, प्रेरणादायी नेतृत्व, अद्भुत साहस और सर्वोच्च बलिदान का प्रदर्शन करने के लिए परम वीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया ।
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जब युद्ध विराम हो गया और चीनी सेना को पता चला कि सूबेदार जोगिंदर सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है,तब चीनी सेना ने 17 मई 1963 को पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनकी अस्थियां उनकी रेजिमेंट की सौंपी,
उसके बाद उनका अस्थि कलश सिख रेजिमेंट के सेन्टर लाया गया,और एक सैरेमनी आयोजन के बाद वो कलश उनकी पत्नी गुरदयाल कौर जी और बेटे को सौंपा गया,
इस प्रकार सूबेदार जोगिंदर सिंह ने इस देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया,और हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गए,
जय हिंद,
तन समर्पित , मन समर्पित,और यह जीवन समर्पित,लेकिन फिर भी सोचता हूं मेरे देश तुझे और कुछ भी दू,,,,, जय हिंद ,सैनिक मरते नहीं वो अमर हो जाते है ,
jai hind
2 टिप्पणियाँ
Jai hind
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