मशीनगन छीन दुश्मन पर टूट पड़े थे, परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की जांबाजी की कहानी

राइफलमैन संजय कुमार(परमवीर चक्र) की जीवनी ,कहानी ,बायोग्राफी इन हिंदी 

  



  "" गुमनाम हैं,आज भी वतन की खातिर सीने पर गोली खाने  वाले,,कुछ लोग तो थप्पड़ खाकर ही मशहूर हुए जा रहे है,



परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार
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               अगर इंसान कोई सपना देखता है और सच्चे मन से उस सपने के लिए मेहनत करता है ,तो एक दिन वो सपना जरूर पूरा होता है,वो कहते है न जहा चाह वहा राह ,
आज एक ऐसे ही सैनिक की कहानी बताने जा रहा हूं जिन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए खूब मेहनत की ,उन्होंने दिल्ली में टैक्सी ड्राइवर का कार्य किया ,और तीन बार सेना की भर्ती प्रक्रिया से बाहर भी हुए ,परन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपने को पूरा करने के लिए एक बार फिर से प्रयास किया और इस प्रयास में वो सफल हो गए,कौन जानता था कि दिल्ली की सड़कों में टैक्सी चलाने वाला एक ड्राइवर भारतीय सेना में शामिल होने के बाद वीरता की एक अदभुत मिशाल पेश करेगा,और इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखवा देगा,तो चलते है पढ़ते हैं निस्वार्थ देश प्रेम और वीरता की राइफल मैंन(अब सूबेदार) संजय कुमार की कहानी,,



शुरुवाती जीवन

                       संजय कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश में बिलासपुर जिले के कलोल बल्किन गांव में 03 मार्च 1976 हुआ था,इनके पिता का नाम श्री दुर्गा राम और माता का नाम श्रीमती भाग देवी था,शुरवाती शिक्षा पूरी करने के बाद संजय कुमार भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रयास करने लगे,उन्होंने कुछ समय तक दिल्ली में टैक्सी ड्राइवर का कार्य भी किया,और उसके साथ साथ वे सेना में शामिल होने के लिए मेहनत भी करते थे, लगतार तीन बार असफल होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चोथे प्रयास में  1996 में वे भारतीय सेना में भर्ती हो गए,ट्रेनिंग पूरी करने के बाद संजय कुमार को 13 जम्मू कश्मीर राइफल में बतौर राइफल मैन तैनात किया गया,, यहां से उनके सैनिक जीवन की शुरुआत हो गई थी,13 जम्मू कश्मीर रायफल्स में ड्यूटी के दौरान वे एक बहादुर और अनुशासित सैनिक के रूप में निखर कर सामने आये,जैसे जैसे उनकी सर्विस बढ़ रही थी वे और ज्यादा निखर कर सामने आ रहे थे ,उनको जल्द ही अपने को साबित करने का मौका मिलने वाला था ,कौन जनता था की दिल्ली की सडको पर टैक्सी चलाने वाला ये लड़का एक दिन परमवीर चक्र विजेता बनेगा .

1999 कारगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय)

                                                      19 फरवरी  1999 में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी शांति की पहल करते हुए शांति बस के कर लाहौर गए थे लेकिन पाकिस्तान को शांति कहा मंजूर थी,पाकिस्तान तो हमेशा से पीढ पर वार करता आया है, पाक ने इस शांति वार्ता के बदले मई 1999 में कारगिल की जंग भारत को तोहफे में दी थी,पाकिस्तानी सेना ने कारगिल की उच्चतम चौकियों पर चोरी चुप कर कब्ज़ा कर लिया था,,परन्तु भारतीय सेना ने भी दुश्मन  को अपनी जमीन से बाहर खदेड़ने के लिए कमर कस ली थी,भारतीय सेना ने इस अभियान को ऑपरेशन विजय का नाम दिया,
             राइफल मैन संजय कुमार की रेजिमेंट 13 जम्मू कश्मीर राइफल को भी द्रास सेक्टर में मूव करने का हुक्म मिल चुका था,राइफल मैन संजय कुमार अपनी रेजिमेंट के साथ निकल पड़े थे एक सुनहरा  इतिहास लिखने के लिए,

     04 जुलाई 1999 को 13 जम्मू कश्मीर राइफल,17 जाट और 2 नागा रेजिमेंट को मस्कोह वैली में हमला करना था,13 जम्मू कश्मीर राइफल को  प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर हमला करने का जिम्मा सौंपा गया था,राइफल मैन संजय कुमार भी उसी दल का हिस्सा थे ,वे अपने दल में  गाइड का कार्य कर रहे थे,रात के घुप अंधेरे में सभी टुकड़ियां अपने अपने टास्क को पूरा करने के लिए निकल पड़ी थी,पाकिस्तानी सेना ने पूरे इलाके की नाकाबंदी कर रखी थी,सुबह होते होते राइफल मैन संजय कुमार और उनके साथी दुश्मन से केवल 150 मीटर की दूरी पर आ गए थे ,दिन निकल आया था,अब हमला करना बहुत मुश्किल था ,कुछ देर दल एक पहाड़ी के पीछे छुप गया
   लेकिन दूसरी तरफ से दुश्मन ने इनके दल को देख लिया था,  दुश्मन ऊंचाई पर स्थित था,और वहा से वो भारतीय सेना के दल को आसानी से निशाना बना रहा था,प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना नहीं था ,,
     ,राइफल मैन संजय कुमार के दल के 02 साथी वीरगति को प्राप्त हो गए थे,और कुछ घायल हो गए थे,तब राइफल मैन संजय कुमार ने अपने कंपनी कमांडर के आदेश पर दिन के उजाले में ही फ्लैट प्वाइंट पर हमला करने का निश्चय किया,और आगे बढ़ गए।
     दुश्मन एक बंकर से मीडियम मशीन गन से लगातार भारी गोला बारी कर रहा था जिसके कारण भारतीय सेना का ये दल आगे नहीं बढ़ पा रहा था,राइफल मैन संजय कुमार मौके की नजाकत को समझते हुए, रेगते हुए उस बंकर के करीब  गए ,उनके एक साथी ने बंकर पर ग्रेनेड फेंक दिया,
     राइफल मैन संजय कुमार ने आग उगलती हुए मीडियम मशीन गन की बैरल पड़कर आगे की तरफ खींच दी,और गुत्मगुत्ता की लड़ाई में 03 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया इस दौरान राइफल मैन संजय कुमार को भी चार गोलियां लग थी लेकिन उन्होंने अपनी जान की बिलकुल भी परवाह ना करते हुए दुश्मन पर फायर जारी रखा और 02 पाकिस्तानी सैनिक जो वहा से भाग रहे थे ,उनको भी मार गिराया,इस जोरदार हमले से पाकिस्तानी सेना के पैर वहा से उखड़ गए और वो वहा से भागने के लिए मजबूर हो गए।और प्वाइं 4875 पर भारतीय सेना का कब्जा ही हो गया था,
   
परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार
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इस प्रकार राइफल मैन संजय कुमार ने अपनी जान की बिलकुल परवाह ना करते हुए ,इस अभियान में असीम शौर्य का प्रदर्शन किया,जिसके लिए राइफल मैन संजय कुमार को वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया,1999 के ऑपरेशन विजय में राइफल मैन संजय कुमार अकेले सैनिक थे जिन्होंने यह पुरस्कार (परमवीर चक्र)) अपने हाथो से लिया था,,
 तो दोस्तों ये जिन्दगी सबको एक बार मौका देती है ,बस हमको जरुरत होती है उस मौके को भुनाने की ,
                                       ''शौर्य साहस का तू चन्दन है ,,,,,,
                    हे!!!!!!मात्रभूमि के महावीर  तुम्हारा   वंदन है ,,,,
                               जय हिन्द जय भारत!
                                                     
                                                     

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