लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी गढ़वाल राइफल के संस्थापक
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बढे चलो गढ़वालियो,बढ़े चलो', बढे चलो गढ़वालियो""
बढ़े चलो!! सिंह की दहाड़ पर बढ़े चलो!
ज़ुल्म के पहाड़ पर, दुश्मनों के सीने से
चढ़े चलो,पत्थर जो आए सामने ठोकर से हटा दो,
पहाड़ आए सामने सीने से हटा दो,ये आंधियां अगर
बढ़े करे मुक़ाबला ,तुम आग बन कर आंधियों के पंख जला दो, पंख जला दो,पंख जला दो,बढे चलो गढ़वालियो,बढ़े चलो', बढे चलो गढ़वालियो""
बढ़े चलो!!दिल में जिगर , आंख में ज्वाला भी चाहिए,
तलवार चाहिए,ना कोई ढाल चाहिए,गढ़्वालियो के खून में उबाल चाहिए,उबाल चाहिए,उबाल चाहिए!!.
बढे चलो गढ़वालियो,बढ़े चलो', बढे चलो गढ़वालियो""
बढ़े चलो!!हमको अमर बद्री विशाल लाल की कसम,
निज पूर्वजों कि आन, मान शान की कसम, जननी धरा ,वसुंधरा गढ़वाल की कसम, गढ़वाल की कसम, गढ़वाल की कसम,बढे चलो गढ़वालियो,बढ़े चलो', बढे चलो गढ़वालियो, बढ़े चलो!सिंह की दहाड़ पर बढ़े चलो!
ज़ुल्म के पहाड़ पर, दुश्मनों के सीने से
चढ़े चलो,बढे चलो गढ़वालियो,बढ़े चलो', बढे चलो गढ़वालियो""
बढ़े चलो!!
यह किसी हिंदी फिल्म गीत नही है ;यह वीर गढ़वाल रायफल का REGIMENTAL SONG का है ;और इस गीत को बोलकर ,सुनकर ही इस रेजिमेंट के वीर जवानों ने पुरे विश्व में अपना लोहा मनवाया है
आज बात करेंगे""" द रॉयल गढ़वाल राइफल की ""गढ़वाल राइफल भारतीय सेना की एक बहुत ही सम्मानित और बहादुर रेजिमेंटों में से एक है ,इसका इतिहास शौर्य , पराक्रम,और बहुत ही बहादुरी से भरा हुआ है ,पहले विश्व युद्ध से ही गढ़वाली सैनिकों ने अपनी मेहनत,ईमानदारी और बहादुरी से भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में नाम कमाया है,गढ़वाल राइफल के सैनिकों ने सैकड़ों वीरता पुरस्कार प्राप्त किए है।
उत्तराखंड देवभूमि होने के साथ साथ वीर भूमि भी है ,इस पावन देवो की भूमि से एक से बढ़कर एक वीर जवानों ने जन्म लिया है ,और समय आने पर भारत देश और उत्तराखंड का नाम रोशन किया है,आज आपको गढ़वाल राइफल के इतिहास के बारे में जानकारी दूंगा, कि कहा से जन्म हुआ है इस रेजिमेंट का???
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GARHWAL REGIMENT का नाम आते ही सबसे पहले लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी के बारे में जानना बहुत जरूरी है,आप सोच रहे होंगे कौन है ये लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी,!! तो जान लीजिए , लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी,जी के अथक प्रयासों से ही गढ़वाल राइफल का जन्म हुआ ,असल में लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी ही गढ़वाल राइफल के संस्थापक है,।
इनके बारे में ब्रिटिश ऑफिसर
जंगी लाट फ. एस. रॉबर्ट ने बिट्रिश भारत के तत्कालीन वायसरॉय लार्ड डफरिन से कहा था" a nation which can prduce men like "balbhadra singh negi" must have a separate battalion of their own
अर्थात""""""( देश में कोई ऐसी जाती जहां पर बलभद्र सिंह नेगी जैसे पुरुष पैदा हो सकते है, उनके पास अपनी खुद की एक अलग बटालियन होनी चाहिए)
शुरुवाती जीवन
लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी का जन्म सन् 1829 में पौड़ी गढ़वाल की असवालस्यूं पट्टी के हेढाखोली गांव में हुआ था, इनके पिता श्री धन सिंह नेगी एक साधारण किसान थे, मात्र 12 वर्ष की आयु में ही इनके पिता का साया इनके सर से उट्ट गया, इसलिए बलबद्र सिंह नेगी का बचपन संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में बीता ,वे घर का सब काम करते थे,खेती बाड़ी से ले कर हर कार्य वे स्वयं ही करते थे,वे बचपन से ही मेहनती और बहादुर थे,उस समय तक गढ़वलियो की कोई अलग पलटन नहीं थी ,गढ़वलियो को गोरखा पलटन में भर्ती होना पड़ता था ,सन् 1847 ईसवी में लाट सूबेदार बलभद्र सिंह कई दिनों की पैदल यात्रा करने के बाद एबटाबाद पहुंचे,एबटाबाद 5 गोरखा राइफल्स का ट्रेनिंग सेंटर था,और वहा पहुंचने के बाद बलभद्र सिंह नेगी 5 गोरखा राइफल्स में भर्ती हो गए,इसके बाद शुरू हुई वीरता और देश प्रेम की एक ऐसी कहानी जो इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गई!ट्रेनिग पूरी होने के बाद उनकी राइफल मैन के पद पर नियुक्ति किया गया,
सैनिक जीवन
राइफल मैन बलभद्र सिंह नेगी की कार्य कुशलता, बहादुरी,और अदभुत प्रतिभा को देखते हुए इनको केवल 13 महीने में लांस नायक के पद पर पदोन्नत किया गया,उसके बाद कुछ ही दिनों में वे नायक,और उसके बाद हवलदार के पद पर पदोन्नत किए गए,, सन् 1857 में ये कंपनी हवलदार मेजर के पद तक पहुंच गए थे, सन् 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार को अफगानों से युद्ध करना पड़ा ,इस युद्ध में बलभद्र सिंह नेगी की पलटन भी भाग ले रही थी और इस युद्ध का नेतृव प्रसिद्ध सेनानायक जंगी लाट फ. एस. रॉबर्ट कर रहे थे,अफगान लड़ाके पहाड़ियों में छुप कर छापामार युद्ध कर रहे थे ,जिससे अंग्रेजो को भारी क्षति उठानी पड़ रही थी,सेना नायक फ. एस. रॉबर्ट काफी चिंतित थे उनको जीत की कोई भी संभावना नजर नहीं आ रही थी,सेना नायक फ. एस. रॉबर्ट बलभद्र सिंह नेगी जी की कार्य कुशलता और बहादुरी से अच्छी तरह से वाकिफ थे,उन्होंने बलभद्र सिंह जी को बुलाया और उनसे खुफिया भेष में अफगानों के शिविरों में जाने को कहा, और अफगानों की योजनाओं के बारे में जानकारी हासिल करने को कहा,
उसके बाद सीएचएम (उस समय)बलभद्र सिंह ने एक पठान साधु का भेष बनाया और अफगानों के शिविरों में युद्ध में मेरे हुए पठान सैनिकों के बीच लेट गए, और बिना कुछ खाए पिए सात दिन और सात रात वहा पड़े रहे,पठान सैनिकों ने इनको भी मरा हुआ समझा,वे रात को वहा पर अपनी युद्ध की योजनाओं के बारे में बात करते,बलभद्र सिंह नेगी ने पूरी गुप्त सूचनाएं एकत्रित की उसके बाद रात्रि के अंधेरे का फायदा उठाकर वे अपने शिविरों में वापस आ गए,और उन्होंने अफगान सैनिकों की पूरी युद्ध की योजनाएं सेना नायक फ. एस. रॉबर्ट को बता दी,जिससे उसके हिसाब से ही ब्रिटिश सेना ने अपनी रणनीति बनाई और उस युद्ध में अफगानों को हार का सामना करना पड़ा,बलभद्र सिंह नेगी के इस कार्य से सेना नायक फ. एस. रॉबर्ट इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सीएचएम बलभद्र सिंह को जमादार ( junior commissioned officer) के पद पर पदोन्नत कर दिया,
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फ. एस. रॉबर्ट साहब ने सेवानिवृति के बाद इंग्लैंड जाने पर अपने द्वारा लिखी गई एक किताब में इस बात का वर्णन किया है। उसके बाद सन् 1879 में कंधार के युद्ध में जमादार बलभद्र सिंह नेगी अपनी प्लाटून के साथ मिलकर एक किले पर कब्जा किया ,इस युद्ध में वे घायल भी हुए,उन्होंने इस युद्ध में असीम साहस,और कुशल नेतृत्व ,अदभुत युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया,जिसके लिए इनको"" ऑर्डर ऑफ मेरिट "" युद्ध स्मान से सम्मानित किया गया,और सूबेदार बनाया गया,इसके बाद सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी ने काबुल के युद्ध में भी असीम वीरता और शौर्य का प्रदर्शन किया,जिसके लिए एक बार फिर से इनको
"" ऑर्डर ऑफ मेरिट "" और सर्वोत्तम सैनिक पदक से सम्मानित किया गया और सूबेदार से सूबेदार मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया,
सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की कार्यकुशलता,अदभुत युद्ध कौशल,नेतृव क्षमता,और असीम शौर्य से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार द्वारा इनको""" ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया "" का पदक भी दिया गया और सरदार बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया गया,
जब सेना नायक जंगी लाट फ. एस. रॉबर्ट भारतीय ब्रिटिश सेना के सर्वोच्च सेना नायक बनाए तो उस समय सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी को उनका एडीसी(ADC) नियुक्त किया गया ,और सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह जंगी लाट के अंगरक्षक यानी ""लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी कहलाने लगे,।लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी पांच वर्ष तक इस पद पर निष्ठा पूर्वक कार्य किया,और उसके बाद सन् 1885 में वे सेवा निवृत हो गए, सेवानिवृति की समय इनको कोटद्वार भाभर के खोसी खता गांव में 1600 एकड जमीन दी गई,
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लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी सेवा निवृत्त तो ही गए थे लेकिन उनका गढ़वाल की अलग बटालियन बनाने का सपना अभी पूरा नहीं हुआ था उन्होंने अपनी कोशिश और भी तेज कर दी थी,
गढ़वालीयो की अलग बटालियन को लेकर वे ब्रिटिश भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ जंगी लाट फ. एस. रॉबर्ट से बात कर चुके थे ,और
चीफ जंगी लाट फ. एस. रॉबर्ट भी गढ़वालीयो की प्रतिभा से अच्छी तरह वाकिफ थे,उन्होंने इस बात का पक्का आश्वासन दिया था लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी को की अपने चीफ रहते हुए वह अलग गढ़वाल राइफल्स की स्थापना करेंगे,
कमांडर इन चीफ जंगी लाट फ. एस. रॉबर्ट ने तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन के सामने यह बात रखी,उन्होंने कहा,""कि इस समय कई गढ़वाली सैनिक गोरखा राइफल्स में अपनी सेवाएं दे रहे हैं,गढ़वाली सैनिकों ने समय समय पर अपनी वीरता को साबित किया है, इसलिए उनकी एक अलग बटालियन होनी ही चाहिए,"""
वायसराय लार्ड डफरिन इस बात से सहमत थे लेकिन उन्होंने कहा कि इतने छोटे गढ़वाल से एक बटालियन की नफरी कैसे पूरी हो जाएगी,,
तब लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी ने उनसे कहा था कि अगर गढवाल में ही छावनी बनाई जाय तो आराम से एक बटालियन के लिए सैनिक मिल जायेगी,
लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी के अथक प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने गढ़वाल राइफल्स की स्थापना करने का फैसला किया और गढ़वाल में छावनी बनाने के लिए एक रैकी पार्टी को भेजा गया ,रैकी पार्टी कालू डंडा (लैंस डाउन) पहुंची और इस स्थान को छावनी के लिए चुन लिया,
05 मई 1887 को गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन की स्थापना लेफ्टिनेंट कर्नल ई. पी.मैनवरिग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में हुई,
,इस अवसर पर लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी के बड़े पुत्र श्री अमर सिंह नेगी जी को सबसे पहले वायसराय कमीशन दिया गया,उनको घर पर ही सम्मान के साथ जमादार( नायब सूबेदार) की वर्दी और करीच भेजी गई और कहा गया इस पहन कर वे पलटन में आये,
अल्मोड़ा से पैदल चलकर 04 नम्बर1887 को गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन कालू डांडा (लैंस डाउन) पहुंची,कालू डांडा का नाम 1890 में लैंस डाउन रखा गया,इस प्रकार लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी के महान प्रयासों से गढ़वाल राइफल की स्थापना हुई,जो आज के समय में कई गढ़वाली परिवारों के लिए जीविका के साधन के साथ साथ एक सम्मान से भरा रोजगार है,
लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी एक महान योद्धा थे,अंग्रेजी हुकूमत भी उनकी वीरता की कायल थी
उन्होंने सेवानिवृति के बाद अपना जीवन शांति और साधु-संतों के सेवा में बिताया ,उनका निधन 1893 में हुआ था,,
उनके बड़े बेटे जमादार अमर सिंह को एक बार बर्मा युद्ध मे जांघ में गोली लग गई ,उन्होंने अपने पिता को एक टेलीग्राम लिखा ,"" जिसमें लिखा था आपके बेटे को गोली लग गई है ,लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी ने तुरन्त इस पत्र का जवाब भेजा उन्होंने लिखा "तुम अपना कार्य करते रहो,अगर तुम वहा से वापस आते हो तो तुमको बहुत नाम (प्रसिद्धि) मिलेगा ,अगर वापस नहीं आए तो वह (प्रसिद्धि) तो आपकी है ही,!!!!
तो ऐसी थी लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जी वीरता से भरी जीवनी,हम सबको इनके ऊपर गर्व होना चाहिए,इनकी जीवनी को जितना हो सके आगे बताए,
जय हिन्द जय बद्री विशाल !!!!!!!
जय उत्तराखंड!!
बढे चलो गढ़वालियो,बढ़े चलो', बढे चलो गढ़वालियो""
बढ़े चलो!! सिंह की दहाड़ पर बढ़े चलो!
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