परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे के आख़िरी शब्द थे, ‘ना छोड़नूँ …

 कैप्टन मनोज कुमार पांडेय,जीवनी,निबंध ,
       

जानिए परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडे की कहानी



हे!!!!! शूरवीर ,तुझ पर क्या लिखू ??????

मेरी कलम में इतनी सयाही नही ;

चंद शब्दों में तेरी कुर्बानी लिखू '

ऐसा तू सिपाई नही ;;;; 

तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर,,
सरफरोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर,


कैप्टन मनोज कुमार पांडेय
Image source Google
'वैसे तो जिंदगी सभी जीते हैं,और मरते भी एक दिन सभी है लेकिन कुछ लोग अपनी जिंदगी में ऐसा काम कर जाते हैं जिससे वो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं,आज कुछ ऐसे ही वीर सैनिकों के बारे में लिखने जा रहा हूं जिन्होंने इस देश के लिए अपने जीवन तक की परवाह नहीं की,जब तक उनके शरीर में खून की एक बूंद भी बाकी थी तब तक वे लड़ते रहे,और आम भावना से ऊपर उठकर इस मात्रभूमि के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे गए,उनके इस निस्वार्थ  देश प्रेम और वीरता के लिए ये देश उनको हमेशा याद रखेगा,,,,,,किसी से सच ही कहा है,सैनिक मरते नहीं,वो तो देश की मिट्टी में , देश की हवाओं में,फिजाओं में सदा के लिए मिल जाते हैं,और अमर हो जाते हैं,और साथ ही अमर हो जाती है उनकी वीरता की कहानियां,
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'मेरा फर्ज पूरा करने से पहले , मुझे मृत्यु आती हैं तो मैं कसम खाता हूं कि मैं मृत्यु को भी मार दूंगा""ये शब्द किसी हिन्दी फिल्म के डायलॉग नहीं ,ये शब्द है परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडेय के,
मरना तो सब को है एक दिन लेकिन कुछ लोग अपने जीवन में कुछ ऐसा काम कर जाते हैं,जिसके कारण वो हमेशा की लिए अमर हो जाते हैं,तो चलते हैं एक योद्धा की कहानी जिस को पढ़कर आप सभी खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे,
जब मनोज कुमार पांडेय राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा दे रहे थे,  उनसे साक्षात्कार में पूछा गया कि आप भारतीय सेना को क्यों ज्वाइन करना चाहते है,तब मनोज कुमार पांडेय ने कहा था कि,वो सिर्फ और सिर्फ वीरता का सबसे बड़ा पुरस्कार परमवीर चक्र प्राप्त करना चाहते हैं और कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने अपनी कही हुई बात सच कर डाली,
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को कारगिल युद्ध (1999) में असाधारण वीरता वीरता के प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था,
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने केवल 24 वर्ष की आयु में देश के लिए  सर्वोच्च बलिदान दिया था,
                                                                                                                   

मनोज पाण्डेय का शुरुवाती जीवन 

                           

                                    कैप्टन मनोज कुमार का जन्म उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले के रुधा गांव में  25 जून 1975 में हुआ था,इनके पिता का नाम श्री गोपीचन्द्र पाण्डेय और माता का नाम श्रीमती मोहनी पांडेय था,मनोज कुमार की शुरुआती शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई थी,कैप्टन मनोज कुमार ने आगे की शिक्षा रानी लक्ष्मबाई  उच्च माध्यमिक विद्यालय से पूरी करी,कैप्टन मनोज कुमार को स्कूल के दिनों से ही खेल कूद,बॉक्सिंग ,और कुश्ती का बहुत शौक था,मनोज कुमार पांडेय को 1990 में  जुनियर डिवीजन एन सी सी  उत्तर प्रदेश में बेस्ट केडेट् से भी नवाजा गया था, ,बाद ने मनोज कुमार पांडेय ने National defence academy की प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लिया और उसमे सफल(1995) होने के बाद,खड़कवासला(पुणे) में  अपनी ट्रेनिंग पूरी की, ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मनोज कुमार पांडे को 1/11 गोरखा राइफल को बतौर लेफ्टिनेंट तैनात किया गया,




सैनिक जीवन ,,,,,,.-----


                        1/11गोरखा राइफल में तैनात होने के बाद  कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में हिस्सा लिया,वह एक निडर और बहादुर सैनिक के रूप में निखर रहे थे,और 1/11 गोरखा राइफल के गौरवशाली इतिहास को आगे बढ़ाने की राह में थे,
जम्मू कश्मीर की पोस्टिंग के बाद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को सियाचिन में तैनात किया गया,सियाचिन में मनोज कुमार पांडेय को 19700 फीट पर पहलवान चौकी पर तैनात किया गया था, वहा पर कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने अपना टर्न ओवर बहुत अच्छे,से पूरा किया था,
सियाचिन में अपना टर्न ओवर पूरा करने के बाद जब उनकी यूनिट वापस आ रही थी तब तक  कारगिल युद्ध का आगाज़ हो चुका था, कैप्टन मनोज कुमार ने छुट्टी लेने की अपेक्षा युद्ध में जाना उचित समझा,
1999 का कारगिल युद्ध
                                    पाकिस्तानी सेना के जवानों ने बर्फ का फायदा उठा कर  भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया था,पाकिस्तानी सेना ऊंचाई पर थी,भारतीय सेना ने उनको वापस खदेड़ने के लिए कमर कस ली थी,इस अभियान में 1/11 गोरखा राइफल भी कर्नल ललित राई के अगुवाई में आगे बढ़ रही थी, 1/11 गोरखा राइफल को
खालोबार टॉप पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था,
खालोबार टॉप एक बहुत ही ऊंची  चोटियों पर मौजूद भारतीय चौकी थी,जिस पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था,खालोबार टॉप पर कब्जा करना भारतीय सेना के लिए बहुत जरूरी था,1/11 गोरखा राइफल की दो कंपनी को आगे जाने का आदेश मिल चुका था,1/11 गोरखा राइफल के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल ललित राई भी उस दल का हिस्सा थे,रात के समय दुश्मन की तरफ एडवांस किया जाता है,।तभी दुश्मन को इनके आने की खबर लग जाती हैं,और वो इस दल पर मशीन गन से भारी गोला बारी शुरू कर देता हैं,भारतीय सेना के जवान गिर रहे थे,वो जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे,उनकी नफरी कम हो रही थे,जब वे दुश्मन के बंकरो के बिल्कुल नजदीक पहुंच गए,कर्नल ललित राई ने कैप्टेन मनोज कुमार पांडेय को अपनी पल्टून को लेकर आगे जाने और दुश्मन को खत्म करने का आदेश दिया था,कैप्टन मनोज ने निसंकोच आगे जाने का फैसला किया ,और वे "जय महाकाली, आयो गोरखाली” का युद्ध घोष करते हुए दुश्मनों पर काल बन कर टूट पड़े, दुश्मन के चार बंकर तबाह हो चुके थे, कैप्टन मनोज कुमार पांडेय रेंगकर  बचे हुए दो बंकरो के पास पहुंच गए थे,उन्होंने एक बंकर में हथगोला फेक दिया था,और वे दूसरे बंकर की तरफ बढ़ ही रहे थे कि अचानक दुश्मन ने उनके ऊपर  मशीन गन की गोलियों की बौछार  कर दी थी,वो गोलियां उनके हेलमेट की चीरते हुए उनके सर पर का लगी,और वे जमीन पर गिर पड़े ,परन्तु वीरगति को प्राप्त होने से पहले वे अपने जवानों को कहते हैं''ना छोड़नूँ " जिसका मतलब है छोड़ना मत, इस प्रकार कैप्टन मनोज कुमार पांडेय  और 1/11गोरखा राइफल के जवानों ने 03जुलाई 1999 को अपना सर्वोच्च बलिदान इस देश के लिए दिया,
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय के इस असाधारण शौर्य के लिए उनको 26 जनवरी 2000 में वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया
                                            जय हिन्द
                                                                                                                                '''''''आ चीर मेरी छाती और देख!

                          क्या जूनून रखता हूँ।

                              जिस्म पर बस वर्दी नहीं,

                            दिल में वतन रखता हूँ।

                             देश के लिए कुर्बान हो जाना नसीब से मिलता है,

                    इसलिए संग में थोड़ी मिट्टी और कफ़न रखता हूँ।;;;;;;;;


जय हिन्द 

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