ऑपरेशन कैक्ट्स INDIAN PARA COMMANDOES द्वारा मालवीद में किया गया एक सफल ऑपरेशन,

indian army  ऑपरेशन कैक्ट्स INDIAN PARA COMMANDOES द्वारा मालवीद में किया गया एक सफल ऑपरेशन,ऑपरेशन कैक्ट्स 


ऑपरेशन कैक्ट्स
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 INDIAN PARA COMMANDOES द्वारा मालवीद में किया गया एक सफल ऑपरेशन,

"" कुछ बात है कि हस्‍ती मिटती नहीं हमारी।
    सदियों रहा है दुश्‍मन दौरे-ज़मां हमारा।।

    

 जी हां ये लाइन बिलकुल सही है ,भारत की मिट्टी में ऐसी क्या बात कि सदियों से दुश्मन रहा है जमाना हमारा,लेकिन जो हस्ती है मेरे देश की वो मिटती नहीं , क्यू की इस देश के सैनिकों के अंदर देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जो जज्बा है,वह इस देश की हस्ती को मिटने नहीं देता, भगत सिंह,राजगुरु सुखदेव, आजद,सुभाष चन्द्र बोस,मंगल पांडेय ,महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी,जैसे वीरों का खून है इस मिट्टी में,साहस और त्याग तो खून में है,फिर कोई कैसे मिटा सकता है हस्ती मेरे देश की,

 हमारे देश ने हमेशा पड़ोसी देश चाए वह कोई भी हो, जब जब उसको जरूरत पड़ी है ,भारत  ने अपना दिल खोलकर उस देश की मदद कि है,आज एक ऐसे ही सैनिक अभियान के बारे में जानकारी देना चाहता हुं, जिसमें हमारे देश की special forces ने दूसरे देश की राष्ट्रपति को बचाया,और वहां पर तख्ता पलट की कोशिश की नाकाम कर दिया था,

ऑपरेशन कैक्ट्स
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 बात सन 1988 की है MAALDIV के एक व्यापारी  अब्दुल्ला लूथफी  ने कुछ लोकल लोगो के समूह और श्रीलंका के पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम की मदद से मालदीव का तख्ता पलट करने की साज़िश रची गई थी, उस समय मालदीव के राष्ट्रपति श्री मौमून अब्दुल गयूम थे,इससे पहले भी 2 बार 1980और 1983 में श्री

मौमून अब्दुल गयूम का तख्ता पलटने की साज़िश रची गई थी,मगर दोनों बार वह साजिश नाकाम रही,लेकिन इस बार 

श्रीलंका के पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम का साथ मिल जाने से विद्रोही कुछ बड़ा करने की कोशिश में थे, 

             नवंबर 1988 में विद्रोहियों ने अब्दुल्ला लूथफी के नेतृत्व में पानी के रास्ते  से आकर मालदीव के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था,मालदीव एक छोटा सा टापू है हर तरफ से पानी से घिरा हुआ है,परन्तु राष्ट्रपति  श्री मौमून अब्दुल गयूम विद्रोहियों कि पकड़ से दूर थे,मालदीव की राष्ट्रपति महोदय ने टेलीफोन के माध्यम से अमेरिका,ब्रिटेन पाकिस्तान,और श्री लंका से मदद मांगी, श्री लंका और पाकिस्तान ने तो बिलकुल मना कर दिया कि हम ये कार्य नहीं कर सकते ,बाकी देशों ने भी दूरी का हवाला देते हुए भारत से मदद मांगने की बात कही,उसके बाद राष्ट्रपति महोदय ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जी से मदद का आग्रह किया,प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी उस समय कलकत्ता में थे,उन्होंने माल दीव के राष्ट्रपति जी को मदद का आश्वासन दिया और कहा भारत देश इस मुश्किल समय में आपके साथ खड़ा है ,हम जल्द ही आपके पास सैन्य मदद भेजते है,।  तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी जी  तुरंत दिल्ली आए और वहां पर उन्होंने एक एमरजैंसी मीटिंग बुलाई,जिसमें अपने पड़ोसी देश की मदद करने का फैसला लिया गया,

                                             और भारतीय सेना के विशेष दल(specail forces) को वहा भेजने का निर्णय लिया गया ,पहले चरण में 6 पैराशूट रेजीमेंट और 3 पैराशूट रेजीमेंट के तकरीबन 500 पैराट्रूपर  मालदीव भेजे गए। ब्रिगेडियर बलसारा और कर्नल  जोशी इस दल का नेतृत्व कर रहे थे, भारतीय वायु सेना की मदद से भारतीय सेना ये कमांडो दल थोड़ी ही देर में मालदीव की वायु सीमा में प्रवेश कर चुके थे,एक अनजान जगह पर सिर्फ एक टूरिस्ट मैप के जरिए जाना आसान नहीं होता ,रात के अंधेरे में भारतीय सेना के ये कमांडो मालदीव की राजधानी माले में उतर गए,

            माले एयरपोर्ट पर उतरने के बाद विशेष दल के सैनिक अलग अलग स्थानों पर छोटी छोटी टुकड़ियों में फ़ैल गए,उनमें से एक टुकड़ी (जिसका नेतृत्व मेजर आर. जे.स. ढिल्लो ( बाद ने ब्रिगेडियर R.J.S. DHILLO) कर रहे थे )  को मालदीव के राष्ट्रपति जी की सुरक्षा के लिए भेजा गया,मेजर ढिल्लो का यह दल कुछ ही देर में रक्षा मंत्री के पास पहुंच गया और वहा से  मालदीव के राष्ट्रपति श्री मौमून अब्दुल गयूम जी के पास पहुंच गए , वहां पहुंचने पर मेजर ढिल्लो ने राष्ट्रपति जी को आश्वासन दिया कि अब वे सुरक्षित है ,सब कुछ नियंत्रण में है,राष्ट्रपति जी भारतीय सेना को देखकर बहुत खुश हुए ,और उन्होंने चैन कि सांस ली,

      भारतीय सेना के बाकी सैनिक भी अपनी कार्यवाही को अंजाम से रहे थे,भारतीय सेना के आने से अब्दुल्ला लूथफी और तमिल विद्रोहियों में खलबली मच गई थी,।इस बीच मालदीव के शिक्षा मंत्री और उनकी सास को विद्रोहियों ने बंधक बना लिया था, और वे वहां से भाग निकलने की कोशिश करने लगे, भारतीय सैनिकों ने विद्रोहियों के जहाज पर गोला बारी की जिससे उनका जहाज क्षतिग्रस्त हो गया,विद्रोही हिन्द महा सागर में आगे बढ़ रहे थे,भारतीय नो सेना को सूचित किया गया,हिन्द महसागर में पहले से ही तैनात आईएनएस गोदावरी और आईएनएस बेतवा ने विद्रोहियों के जहाज का पीछा किया,अब्दुल्ला लूथफी भी उसी जहाज पर मौजूद था वह भागने कि कोशिश में था,लेकिन अब अब्दुल्ला लूथफी भारतीय नौसेना की नजर था ,और उसका बचना असंभव था,भारतीय सैनिकों ने अब्दुल्ला लूथफी को आत्म समर्पण करने को कहा,परन्तु  अब्दुल्ला लूथफी नहीं माना उसने जहाज पर मौजूद कुछ बंधको को गोली मार दी,इसके बाद भारतीय नौसेना सेना ने  फायर करके उसके जहाज को क्षतिग्रस्त कर दिया,और कुछ ही समय बाद मालदीव के शिक्षा मंत्री और उनकी सास को विद्रोहियों के चुंगल से  सही सलामत छुडा लिया 

      और विद्रोहियों का सरगना लूथफी को पकड़ लिया गया था,और उसकी मालदीव में तख्ता पलट की कोशिश को भारतीय सैनिकों ने नाकाम कर दिया था,भारतीय सेना ने अनजान इलाके में जकार शानदार कार्य किया, भारतीय सैनिकों के इस बहादुरी से भरे कारनामे की विश्व भर में भुरी भुरी प्रशंसा हुई, मालदीव के राष्ट्रपति ने श्री राजीव गांधी जी का फोन के माध्यम से आभार व्यक्त किया और भारतीय सैनिकों की प्रशंसा की,

            तो इस प्रकार हमारे देश की तीनों सेनाओं ने मिल कर  दूसरी जमीन पर अद्भुत वीरता का परिचय दिया,

            उनके कार्य से पड़ोसी देश मालदीव से भारत के रिश्ते और मजबूत हुए,

            ऐसे वीर सैनिकों को मेरा शत शत नमन,!!!

           

आखरी में फिर कहना चाहूंगा,


कुछ बात है कि हस्‍ती मिटती नहीं हमारी।
    सदियों रहा है दुश्‍मन दौरे-ज़मां हमारा,
    हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्ता हमारा,
 जय हिन्द वन्दमातरम!!!



      

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