इस कमांडो से कांपते थे आतंकी: पढ़ें शहीद की शौर्यगाथा

 लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी(अशोक चक्र) की जीवनी, इस कमांडो से कांपते थे आतंकी

लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी(अशोक चक्र)
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हे शूरवीर ,तुझ पर क्या लिखू ;

मेरी कलम में इतनी सयाही नही ;

चंद शब्दों में तेरी कुर्बानी लिखू '

ऐसा तू सिपाई नही ;;;;    



वैसे तो indian army के सभी सैनिक विशेष होते है लेकिन इन विशेष सैनिकों में भी जो विशेष होता है वह शामिल होता है पैराशूट रेजीमेंट में ,और इन पैरा कमांडो में से भी जो सैनिक विशेष होते है वह हिस्सा होते है पैराशूट रेजीमेंट(विशेष बल) के!!
indian army में पैराशूट रेजीमेंट के जवानों का महत्वपूर्ण योगदान है,पैराशूट रेजीमेंट के कमांडोस ने समय समय पर अपनी वीरता का परिचय दिया है,आज बात करेंगे ऐसे ही एक कमांडो लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी की जिन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए,आतंक वादियों के  खिलाफ एक अभियान में अपनी वीरता और देश प्रेम का परिचय दिया और वीर गति को प्राप्त हुए।
 
लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी(अशोक चक्र)
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    लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी(अशोक चक्र) की जीवनी 

शुरुवाती जीवन.............

                                    लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी का जन्म उत्तराखंड में नैनीताल जिले के हल्द्वानी के  लालकुआ गांव में हुआ था,उनके पिता भी भारतीय सेना में थे,शुरुवाती पढ़ाई पूरी करने के बाद मोहन नाथ गोस्वामी सेना में सामिल होने का प्रयास करने लगे, सन् 2000 में वे भारतीय सेना भर्ती हो गए,ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वे विशेषो में विशेष(Elites of Elite) 9 पैराशूट रेजिमेंट(विषेश बल) का हिस्सा बने,9 पैराशूट रेजिमेंट भारतीय सेना एक बहुत ही सम्मानित रेजिमेंट है,जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है,


सैनिक जीवन.................:

                                      एक कमांडो के रूप में मोहन नाथ गोस्वामी ने अगल अगल जगहों पर रह कर अपनी सेवाएं दी,वह एक बहादुर अनुशासित और नियमों का पालन करने वाले सैनिक थे,उनकी साथी और अधिकारी भी उनकी वीरता से प्रभावित थे,वो हर कार्य को निडर होकर करते थे और साथ ही अपने साथियों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे,मोहन नाथ गोस्वामी हमेशा मुश्किल अभियान में जाने के लिए volunteer रहते,थे,उन्होंने कई आतंकवादी विरोधी अभियानों में हिस्सा लिया,।उन्होंने सितम्बर 2015 में 11आतंकवादी विरोधी अभियानों में हिस्सा लिया जिसमें तकरीबन 10 आतंकी मारे गए।

  22 अगस्त 2015............

                                       21 अगस्त 2015 को 9 पैरा(विशेष बल) के एक दल को खुफिया जानकारी मिली कि कश्मीर के हंदवाड़ा जिले के खुरमुर गांव में लगभग 6 से 9 आतंकी मिलने वाले है ।,9 पैरा(विशेष बल) का एक दल कैप्टन दीपेश मेहरा की अगुवाई में खुरमुर गांव में घात लगाकर बैठ गए,।22 अगस्त 2015 की रात कैप्टन मेहरा के दल का सामना आतंकवादियों से हो गया,और दोनों तरह से भारी मात्रा में गोला बारी शुरू हो गई,।इस गोला बारी में कैप्टन मेहरा घायल हो गए,उनके दल ने इसकी खबर हेडक्वार्टर में दे दी.
                          वहीं दूसरी तरफ लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी अपने दल के साथ किसी दूसरे अभियान में जा रहे थे,इनके दल को हेडक्वार्टर से संदेश प्राप्त होता है कि वह कैप्टन मेहरा की मदद के लिए पहुंचे, लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी अपने दल के साथ तुरन्त खुरमुर गांव में पहुंचते है,और कैप्टन मेहरा जो घायल हो गए थे उनको बाहर निकालने में मदद की,यह अभियान 23 अगस्त तक चला जिसमें सभी आतंकियों को मार गिराया गया,

26 अगस्त 2015........:

                                  26 अगस्त 2015 को उड़ी सेक्टर में 5 आतंकियों ने लाइन ऑफ कंट्रोल को पार कर लिया था,35 राष्ट्रीय राइफल के जवानों ने इन आतंकियों को पकड़ने के लिए अभियान चलाया जिसमें से एक आतंकी मारा गया और बाकी 04 आतंकी अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकलने में कामयाब रहे,अब उन 4 आतंकियों को पकड़ने की जिम्मेदारी ) 9 पैराशूट रेजिमेंट(विषेश बल) को दे दी गई।,9पैराशूट (विषेश बल) ने अपने 12 कमांडोज को हेलीकॉप्टर की मदद से उस इलाके में भेजा ,उस इलाके को ड्रोन के मदद से निगरानी पे रखा गया था, लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी भी इन 12कमांडोज के दल का हिस्सा थे,ड्रोन के द्वारा आतंकियों के ठिकाने का पता लगने पर कमांडोज के दल द्वारा उन पर कार्यवाही की गई जिसमें 03 आतंकी मारे गए एक आतंकी को जिंदा पकड़ लिया गया,
इस अभियान में भी लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी ने बहुत बहादुरी से अपने कार्य को अंजाम दिया,।

2 सितम्बर 2015............

                                      02 सितम्बर 2015 को एक खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक कुछ आतंकी कुपवाड़ा के पास   
सुत्सल्यार नामक जंगल में देखे गए थे,सुत्सल्यार जंगल एक बहुत ही घना जंगल था ,जिसमें छोटी छोटी झाड़ियां थी जिसके कारण सामने दिखाई देना बहुत मुश्किल था,,और यह सुरक्षा बलो के लिए चिंता का विषय था,  इस मुश्किल अभियान के लिए 36 कमांडोज को 6 टुकड़ियों में नियुक्त  किया गया,और सभी दल सुत्सल्यार जंगल के लिए निकल पड़े ,और सुत्सल्यार जंगल की चारो तरफ से घेराबंदी के ली, रात की 11.30 बजे लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी के दल के साथ आतंकवादियों का आमना सामना हो गया,
लांस नायक मोहन ने बडी ही बहादुरी से आतंकियों के दल पर फायर किया जिसमें एक आतंकी जख्मी हो गया,बारिश शुरू होने के कारण गोला बारी कुछ देर के लिए बन्द हो गई आधी रात बीत जाने आतंकवादियों ने ग्रेनेड लांचर से कमांडो दल के ऊपर फायर किया जिसके कारण लांस नायक मोहन के दो साथी जख्मी हो गए,वे अपने साथियों को बचाने के लिए आगे बढ़े,अपनी जान की परवाह ना करते हुए उन्होंने भारी गोला बारी के बीच अपने साथियों को वहां से बाहर निकाला,इस कार्यवाही के दौरान लांस नायक मोहन को दो गोलियां लग गई जिसके कारण वे बुरी तरह जख्मी हो गए,लेकिन जख्मी होने के बावजूद उनकी आतंकियों पर गोला बारी जारी रखी जिसमें 2 आतंकी ढेर हो गए, लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी भी अत्यधिक मात्रा में रक्त बह जाने के कारण वीरगति को प्राप्त हो गए,
लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी(अशोक चक्र)
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              इस प्रकार एक और भारतीय सैनिक ने इस देश और देश के नागरिकों के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया,वह अपने कर्म की राह पर ""इस देश के हम है रखवाले""के आदर्श वाक्य को पूरा कर चुके थे
          लांस नायक  मोहन नाथ गोस्वामी ने इस अभियान में भारतीय सेना की ऊंचे इतिहास को कायम रखा और अदभुत साहस,टीम वर्क ,और वीरता का परिचय दिया जिसके लिए लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी को भारत सरकार ने शांति काल के दौरान दिए जाने वाले सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया, यह पुरस्कार उनकी धर्मपत्नी श्रीमती भावना गोस्वामी ने महामहिम राष्ट्रपति के हाथों प्राप्त किया,
          लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी अपने पीछे अपनी मां,पिता,पत्नी और एक 07 साल की बेटी को छोड़ गए है।
         
लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी(अशोक चक्र)
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  ये देश और इस देश के नागरिक ऋणी है और हमेशा ऋणी रहेंगे ऐसे वीर सपूतों के,!!!!!
         "" आ चीर मेरी छाती और देख!
            क्या जूनून रखता हूँ।
            जिस्म पर बस वर्दी नहीं,
             दिल में वतन रखता हूँ।
             देश के लिए कुर्बान हो जाना
              नसीब से मिलता है,इसलिए
               संग में थोड़ी मिट्टी और कफ़न
                रखता हूँ।जय हिंद 🇮🇳🙏""

 नायक मंगत भंडारी

,यूं तो उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है,लेकिन जब जब इस मात्रभूमि पर संकट आया है तब तब उत्तराखंड के जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर,देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है,और उत्तराखंड को वीर भूमि होने का गौरव भी दिया है
"" तन समर्पित , मन समर्पित ,और यह मेरा जीवन समर्पित,लेकिन फिर भी सोचता हूं मेरे देश तुझे और कुछ भी दू,""" सैनिक मरते नहीं ,वे अमर हो जाते है ,देश के इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए आज एक ऐसे ही सैनिक की वीर गाथा बताने जा रहा हूं जिसने अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर इस देश के लिए अपने अमूल्य प्राणों का बलिदान दिया, आज बात कर रहा हूं
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नायक मंगत भंडारी के बारे में,जो 18 गढ़वाल राइफल का हिस्सा थे,और कारगिल युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए थे,तो चलते है जानते है इनके समर्पण की कहानी ,,,,


शुरुवाती जीवन...........

नायक मंगत भंडारी का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में 10 जुलाई 1968 में हुआ था,शुरवाती पढ़ाई करने के बाद 26 मई 1986 को वे गढ़वाल राइफल में भर्ती हो गए,और नायक मंगत भंडारी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 18 गढ़वाल राइफल का हिस्सा बने,18 गढ़वाल राइफल अपने गौरवशाली इतिहास और कई युद्ध पुरस्कारों के लिए जानी जाती है,18 गढ़वाल में सेवा के दौरान नायक मंगत भंडारी जी ने भारत के अलग अलग स्थानों पर ड्यूटी की ,वे एक मेहनती ,ईमानदार ,कर्तव्य को पूरा करने वाले और बहादुर सैनिक थे,वे हर दिए हुए कार्य को उत्साहित होकर करते थे,
इस दौरान उन्होंने श्रीमती राधा जी के साथ विवाह कर लिया,और उनकी 2 बेटियां और एक बेटा हुआ,

1999 ओ पी विजय(कारगिल युद्ध)........

सन 1999 me कारगिल युद्ध में 18 गढ़वाल राइफल्स को द्रास सेक्टर में हमलावरों को पीछे खदेड़ने की जिम्मेदारी दी गई थी,प्वाइंट 4700 पर 18 गढ़वाल राइफल को कब्जा करना था,प्वाइंट 4700 बहुत ही मुश्किल चोटी थी जिस पर कब्ज़ा करना indian army के लिए बहुत ही जरूरी था,क्युकी प्वाइंट 4700 से दुश्मन नेशनल हाइवे NH 1 पर आसानी से नजर रख रहा था,29 जून 1999 की सुबह तक 18 गढ़वाल को प्वाइंट 4700 पर कब्ज़ा करने का टास्क दिया गया था,28 जून 1999 किं रात के लगभग 11 बजे 18 गढ़वाल का एक दल प्वाइंट 4700 की तरफ बढ़ रहा था,नायक मंगत भंडारी भी इस दल का हिस्सा थे ,रात का घुप्प अंधेरा,और शत्रु की पैनी नजर के बीच यह दल आगे बढ रहा था,शत्रु ने बड़े पैमाने पर भारी हथियार लगा रखे थे,शत्रु की नजर इस टोली पर थी लेकिन वह चुप चाप इनके पास आने का इंतजार कर रहे थे,ताकि 18 गढ़वाल का यह दल उनके फायर की रेंज में आ सके,जैसे ही नायक मंगत भंडारी और उनके साथी दुश्मन की नजर में आए ,पाकिस्तानी सैनिकों ने उनके दल पर भारी हथियारों से गोला बारी शुरू कर दी,,लेकिन 18 गढ़वाल राइफल्स का यह दल अपनी जान की परवाह करे बिना बस भारत माता के मिट्टी के कर्ज को चुकाने के लिए आगे ही बढ़ता जा रहा था,और नायक मगत भंडारी भी अपने दल के आगे बढ़ रहे थे,दुश्मन की भारी गोला बारी के बीच ये दल प्वाइंट 4700 के बिलकुल करीब पहुंच गया था,और दुश्मन सैनिकों के साथ आमने सामने की लड़ाई में 18 गढ़वाल राइफल्स के दल ने 29 जून 1999 की सुबह के 004 बजे प्वाइंट 4700 पर अपना कब्जा कर लिया ,इस आमने सामने की लड़ाई में नायक मंगत भंडारी ने बहादुरी और साहस से शत्रु का मुकाबला किया ,इस अभियान में नायक मंगत भंडारी भी बुरी तरह जख्मी हो गए,लेकिन वे डटे रहे और शत्रु का मुकाबला करते रहे,अंत में अपने ज़ख्मों के कारण नायक मंगत भंडारी ने दम तोड़ दिया और वे वीरगति को प्राप्त हो गए,इस प्रकार नायक मंगत भंडारी ने भारतीय सेना और 18 गढ़वाल राइफल्स के गौरव शाली इतिहास को जारी रखा और अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया,
नायक मंगत भंडारी अपने पीछे अपनी पत्नी ,दो बेटियां और एक बेटा छोड़ गए है,ऐसे वीर सैनिक को मेरा सत सत नमन!!!!!

जय हिन्द वन्दे मातरम्!!!!!

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