लांसनायक करम सिंह जीवनी- Biography of Karam Singh
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लांस नायक करम सिंह परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले पहले जीवित भारतीय सैनिक थे, लांस नायक करम सिंह ने 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध में जम्मू कश्मीर के टिथवाल के दक्षिण में स्थित एक फॉरवर्ड चौकी को बचाने में अहम भूमिका निभाई थी , लांस नायक करम सिंह के इस साहसिक कार्य,और युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए भारत सरकार ने सन 1948 में इनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया था,
1947 में आजादी के बाद पहली बार भारतीय झंडे को उठाने वाले 05 सैनिकों में एक लांस नायक करम सिंह भी थे,
करम सिंह का जन्म पंजाब के बरनाला जिले के शेहना गांव में एक जाट सिख परिवार में 05 सितम्बर 1915 में हुआ था,करम सिंह के पिता का नाम सरदार उत्तम सिंह था
वे खेती बाड़ी का कार्य करके अपना एवम् अपने परिवार का पालन करते थे,करम सिंह भी उनके साथ मदद करते थे
अपने गांव के सैनिकों कि कहानियां सुनकर वे भी सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित हो गए,और शुरुवाती शिक्षा पूरी करने के बाद सन् 1941 में करम सिंह ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गए,
15 सितंबर 1941 में करम सिंह को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में नियुक्त किया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध में लांस नायक करम सिंह ने ब्रमा अभियान में हिस्सा लिया ,एडमिन बॉक्स की लड़ाई में लांस नायक करम सिंह को उनके साहस और अच्छे आचरण के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया, लांस नायक करम सिंह एक बहादुर और अनुशासित सैनिक थे,।
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947
।आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर रियासत को पाने के लिए युद्ध कियायुद्ध के शुरुवाती दिनों में पाकिस्तानी सेना ने टिथवाल सहित कई जगहों पर कब्जा कर लिया था,।कुपवाड़ा सेक्टर में स्थित यह गांव भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण था । 23 मई 1948 को भारतीय सैनिको ने टिथवाल पर कब्जा वापस ले लिया था, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने टिथवाल को वापस लेने के लिए फिर से हमले तेज कर दिए थे, पाकिस्तानी सेना के लगातार हमलों के कारण भारतीय सेना जो उस हमले का सामना करने में असमर्थ थी वापस अपनी स्थिति टिथवाल रिज तक चली गई और सही समय का इंतजार करने लगी,
टिथवाल का युद्ध बहुत लबे समय तक चला था, पाकिस्तानी सेना ने 13 अक्टूबर 1948 को पूरे बल के साथ भारतीय सेना पर धावा बोल दिया था,उनका मकसद भारतीय सेना को पीछे खदेड़ना था,और टिथवाल के पूर्व में एक दर्रे पर कब्जा करना था जिसका नाम नस्तचूर दरा् था और साथ ही टिथवाल के दक्छिन में स्थित रीछमार गली पर कब्जा करना था,
रीछमार गली में लांस नायक करम सिंह अपने जवानों के साथ मोर्चा संभाले हुए थे,वे पहली सिख रेजिमेंट की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे।
13 अक्टूबर की रात पाकिस्तानी सेना ने बहुत बड़े बल के साथ रीछमार गली में हमला बोल दिया था,लेकिन वहा पर उनको रोकने के लिए लांस नायक करम सिंह अपने दल के साथ बहादुरी के साथ डटे हुए थे,पाकिस्तानी सेना ने मोर्टारों से भारी गोलाबारी शुरू कर दी थी,जिससे भारतीय पोस्ट के सभी बंकर बर्बाद हो गए थे,भारी गोलाबारी के बीच लांस नायक करम सिंह भी घायल हो गए थे,घायल होने के बावजूद करम सिंह ने अपने साथियों का उत्साह बढ़ाया,रीछमार गली को बचाने के लिए लांस नायक करम सिंह और उनके साथी दुश्मनों पर "" जो बोले सो निहाल , सत श्री अकाल" की युद्ध गर्जना ;के साथ टूट पड़े,और कई पाकिस्तानी जवानों को गुत्थम-गुत्था की लड़ाई में अपनी संगीन से ही मार गिराया, लांस नायक करम सिंह ने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया ,उनके कुशल नेतृत्व और गजब के शौर्य को देखकर पाकिस्तानी सेना के जवानों का मानो बल टूट गया,और वे पीछे हटने पर मजबूर हो गए।और पाकिस्तानी सेना मोर्चा छोड़ने पर विवश हो गए,
टिथवाल के इस युद्ध में लांस नायक करम सिंह को अदभुत युद्ध कौशल , अदम्य साहस,कुशल नेतृत्व के लिए 26 जनवरी 1950 को वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया,
इसके बाद लांस नायक करम सिंह ने अपनी सेवा जारी रखी और 1969 में वे मानद कप्तान( honorary captain) के पद से सेवनिवृत्त हुए,
20 जनवरी 1993 को इस भारत माता के वीर सपूत ने अपनी आंखे मुद ली,परन्तु वे अपना नाम भारत देश के इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर कर गए,,उनकी बहादुरी की कहानियां आने वाली पीढ़ी को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाएगी,। हम और हमारी आने वाली पीढ़ी उनकी बहादुरी,और देशभक्ति से प्रेरणा लेते रहेंगे,और इस देश को आगे बढाते रहगें,
''' जय हिन्द'
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