दिगेन्द्र कुमार: कारगिल जंग के हीरो, जिनकी बहादुरी की ज़मीन पर भारत ने जीत का झंडा गाड़ा था
भारत की भूमि हमेशा से वीरों की भूमि रही है इस भूमी से एक से बढ़कर एक वीर उत्पन्न हुए हैं। जब कभी भी बाहरी ताकतो ने हमारे देश पर हमला किया है तो उस समय हमारे वीर सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन को मार भगाया है,और अपनी वीरता का लोहा मनवाया है,आज हम बात करने वाले है एक ऐसे ही वीर ,,,नहीं वीर नहीं महावीर की ,महावीर कहना सही होगा इनके लिए,
आ चीर मेरी छाती और देख!
क्या जूनून रखता हूँ।
जिस्म पर बस वर्दी नहीं,
दिल में वतन रखता हूँ।
देश के लिए कुर्बान हो जाना नसीब से मिलता है,
इसलिए संग में थोड़ी मिट्टी और कफ़न रखता हूँ।
जय हिंद 🇮🇳🙏🇮🇳
इनका नाम है Digendra Kumar। ,नायक दिगेंद्र कुमार ने 1999 के कारगिल युद्ध में तोलो लिंग पहाड़ी को पाकिस्तानी सेना से आजाद कराने के अभियान में असीम शौर्य का प्रदर्शन किया था,और 13 जून 1999 को सुबह के चार बजे तोलो लिंग पर भारतीय झंडा फहराते हुए भारत की जीत पक्की की थी।इस अभियान में नायक दिगेंद्र कुमार ने निस्वार्थ देश प्रेम और असीम शौर्य का प्रदर्शन किया!
जिसके लिए भारत सरकार द्वारा इनको वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था!
Digendra Kumar ने अपने साथियों के साथ मिलकर बड़ी ही सूझबूझ के साथ इस अभियान को सफल बनाया था दिगेंद्र कुमार ने आतंकी कमांडर को मार गिराया और बाकी बचे हुए आतंकवादियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। दिगेंद्र कुमार को इस अभियान में बहादुरी का प्रशंसा पत्र दिया गया था
ऑपरेशन पवन के दौरान ही श्रीलंका में एक घटनाक्रम में तमिल आतंकवादियों द्वारा भारतीय सेना के 36 सैनिकों को बंदी बना लिया गया था । यह सभी सैनिक भारतीय सेना के विशेष दल के थे और उनको बंधक बने हुए 72 घंटे से ऊपर हो चुके थे, बंधक सैनिकों को बचाने के लिए कमांडो देवेंद्र कुमार और उनके साथियों ने एक विशेष अभियान चलाया। कमांडो देवेंद्र कुमार ने अपनी पीठ पर 40 किलो गोला बारूद और अपने बंधक साथियों के लिए बिस्कुट के पैकेट लेकर अभियान पर निकल पड़े, अपने बंधक सैनिकों को बचाने के लिए भारतीय सैनिकों को एक नदी को पार करना था इस नदी में आतंकियों द्वारा विद्युत करंट भी लगाया गया था ताकि कोई नदी को पार न कर सके, लेकिन कमांडो देवेंद्र कुमार ने अपने साथियों को बचाने के लिए अपनी जान की बिल्कुल भी परवाह ना करते हुए नदी में कूद गए और विद्युत तारों को काटकर नदी को पार कर लिया उसके बाद उनके बाकी साथी भी उनके पीछे-पीछे नदी के पार आ गए और वहां उन्होंने तमिल आतंकियों पर धावा बोल दिया और अपने 36 साथियों को आजाद कराया इस अभियान में तकरीबन 40 आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया, इस अभियान में दिगेंद्र कुमार की बहादुरी से प्रसन्न होकर जनरल कल कट ने दिगेंद्र कुमार को अपनी बाहों में भर लिया और उनको रोज दाढ़ी बनाने के नियम से छूट दे दी गई।
14 घंटे लगातार खड़ी चट्टानों पर रस्सियों के सहारे चलकर यह दल तोलोलिंग के करीब पहुंचा।वहा पर पाकिस्तानी सेना ने 11 बनकर बना रखे थे, नायक दिगेंद्र कुमार ने पहला बंकर उड़ाने की कसम खाई उसके बाद उनके बाकी नौ साथियों ने भी एक एक बक़र उड़ाने की कसम खाई, नायक दिगेंद्र कुमार ने 11 वे बंकर को भी उड़ाने की कसम खाई। जब दल आगे बढ़ा तो पाकिस्तानी सेना ने भारी हथियारों से उन पर फायर शुरू कर दिया,
NAIK Digendra Kumar आगे बढे मौसम खराब होने के कारण कुछ साफ साफ नहीं दिख रहा था,जब नायक दिगेंद्र कुमार ने आगे बढ़ने के लिए अपना हाथ एक पत्थर के बीच डाला तो दुश्मन की फायर करती मशीन गन की बैरल उनके हाथों में आ गई,नायक दिगेंद्र कुमार ने बैरल को पकड़कर बाहर खींच लिया,और एक ग्रेनेड निकालकर बंकर के अंदर फेक दिया जिससे पहला बंकर बर्बाद हो गया था ,लेकिन दुश्मन सतर्क हो गया था दुश्मन ने नायक दिगेंद्र कुमार और उनके दल पर भारी हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी थी,इस गोलाबारी में मेजर विवेक गुप्ता और बाकी 08 जावन भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे नायक दिगेंद्र कुमार भी बुरी तरह से घायल हो गए थे,NAIK Digendra Kumar को पांच गोलियां लग गई थी।
उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथियों का बदला लेने के लिए वे एक बार फिर से हिम्मत जुटा कर आगे बढ़े उन्होंने लगातार ग्रेनेड निकालकर बंकरों पर फेंके,तभी पाकिस्तानी सेना के मेजर अनवर खान उनके सामने आ गए ,नायक दिगेंद्र कुमार ने अनवर खान को पकड़ने की कोशिश की परन्तु अनवर खान भागने कि कोशिश में था,नायक दिगेंद्र कुमार ने छलांग लगाकर अनवर खान को पकड़ लिया,और अपने डीगर से अनवर खान की गर्दन काट दी।नायक दिगेंद्र कुमार ने 13 जून 1999 को सुबह के चार बजे तोलोलिंग पहाड़ी पर भारतीय झंडा फहराह दिया था! ऑपरेशन विजय में यह भारत की पहली जीत थी
नायक दिगेंद्र कुमार ने इस अभियान में असीम शौर्य का प्रदर्शन किया जिसके लिए भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1999 को वीरता पुरस्कार Mahavir Chakra से सम्मानित किया गया।
नमन है ऐसे वीर जवानों को जिन्होंने अपने फर्ज को पूरा करने के लिए एक बार भी अपने बारे में नहीं सोचा,।
जय हिन्द जय भारत!!!
आ चीर मेरी छाती और देख!
क्या जूनून रखता हूँ।
जिस्म पर बस वर्दी नहीं,
दिल में वतन रखता हूँ।
देश के लिए कुर्बान हो जाना नसीब से मिलता है,
इसलिए संग में थोड़ी मिट्टी और कफ़न रखता हूँ।
जय हिंद 🇮🇳🙏🇮🇳
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इनका नाम है Digendra Kumar। ,नायक दिगेंद्र कुमार ने 1999 के कारगिल युद्ध में तोलो लिंग पहाड़ी को पाकिस्तानी सेना से आजाद कराने के अभियान में असीम शौर्य का प्रदर्शन किया था,और 13 जून 1999 को सुबह के चार बजे तोलो लिंग पर भारतीय झंडा फहराते हुए भारत की जीत पक्की की थी।इस अभियान में नायक दिगेंद्र कुमार ने निस्वार्थ देश प्रेम और असीम शौर्य का प्रदर्शन किया!
जिसके लिए भारत सरकार द्वारा इनको वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था!
शुरुवाती जीवन
Digendra Kumarका जन्म 3 जुलाई 1969 में राजस्थान के सीकर जिले के झालरा गांव में हुआ था इनके पिता का नाम श्री शिवदान सिंह परसवाल और माता का नाम श्रीमती राजकोर देवी था। देवेंद्र कुमार के पिता श्री शिवदान सिंह आर्य समाज के सदस्य थे और वह देश की स्वतंत्रता और जन जागृति के लिए उस समय घर-घर जाकर प्रचार करते थे, इनके नाना श्री बुजन शेरावत सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाही थे। वह द्वितीय विश्व युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। देश प्रेम और वीरता देवेंद्र को विरासत में ही मिली थी, अपने पिता से प्रेरित होकर दिगेंद्र कुमार ने भी भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा करने का निश्चय किया शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद 03 सितम्बर 1985 में दिगेंद्र कुमार भारतीय सेना में भर्ती हो गए।अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वे 2 राज राइफल का हिस्सा बने,दिगेंद्र कुमार सेना की हर गतिविधि में आगे रहते थे उन्होंने कमांडो कोर्स भी किया और उस में अव्वल स्थान हासिल किया। उनके साथी उनको कमांडो के नाम से जानती थी, दिगेंद्र कुमार को भारतीय सेना के सर्वश्रेष्ठ कमांडो के रूप में भी जाना जाता है।JAMMU KASHMIR की सेवा के दौरान सन 1993 में Digendra Kumar जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनात थे। उस समय जम्मू कश्मीर में आतंकवाद चरम सीमा पर था। मजीद खान नाम नाम एक कुख्यात आतंकवादी जिसका बोलबाला पूरे दक्षिण कश्मीर में था। आतंकी मजीद खान एक दिन कंपनी कमांडर के पास आया,और उसने कंपनी कमांडर को धमकाया कि हमारे खिलाफ कोई कार्यवाही की तो उसके परिणाम सेना को भुगतने होंगे, जब यह बात देवेंद्र कुमार को पता चली तो उन्होंने मजीद खान का पीछा किया और अपनी पिस्टल से गोली चला कर मजीद खान को ढेर कर दिया, तत्पश्चात उसके मृत शरीर को कंधे पर उठाकर लाए और कंपनी कमांडर के सामने रखा, दिगेंद्र कुमार की इस बहादुरी और निडरता के लिए भारतीय सेना द्वारा वीरता पुरस्कार सेना मेडल से सम्मानित किया गया।
ऐसी ही एक और घटना में जम्मू कश्मीर की मस्जिद हजरत बल दरगाह पर आतंकवादियों ने कब्जा कर लिया था। आतंकवादियों ने मस्जिद में हथियारों का जखीरा जमा कर लिया था और काफी मात्रा में आतंकी वहां पर इकट्ठे हो गए थे, आतंकवादियों के खात्मे के लिए भारतीय सेना ने एक विशेष अभियान चलाया था। दिगेंद्र कुमार इस विशेष दल का हिस्सा थे,Digendra Kumar ने अपने साथियों के साथ मिलकर बड़ी ही सूझबूझ के साथ इस अभियान को सफल बनाया था दिगेंद्र कुमार ने आतंकी कमांडर को मार गिराया और बाकी बचे हुए आतंकवादियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। दिगेंद्र कुमार को इस अभियान में बहादुरी का प्रशंसा पत्र दिया गया था
श्रीलंका में शांति अभियान ऑपरेशन पवन
1987 में श्रीलंका में जब आतंकवादियों का कहर बढ़ गया तब श्रीलंका ने आतंकवादियों से से निपटने के लिए भारत से मदद मांगी। भारत सरकार ने भारतीय सेना की एक टुकड़ी को श्रीलंका भेजने का निश्चय किया और इस अभियान को ऑपरेशन पवन का नाम दिया गया। दिगेंद्र कुमार भी इस अभियान का हिस्सा थे। श्रीलंका में इस अभियान के दौरान धीरेंद्र कुमार अपने साथियों के साथ तमिल आतंकी एरिया में पेट्रोलिंग कर रहे थे तभी अचानक तमिल आतंकवादियों ने उनके दल पर भारी गोलाबारी शुरू कर दी जिससे उनके दल के 5 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए उसके बाद आतंकी भागकर एक विधायक के घर में घुस गए। देवेंद्र कुमार ने बाकी साथियों के साथ तमिल आतंकियों का पीछा किया और विधायक के घर को चारों तरफ से घेर लिया लिट्टे समर्थक विधायक ने इसका विरोध किया, देवेंद्र कुमार और उनके दल ने विधायक सहित सभी आतंकियों को इस घटना में मार गिराया,, इस प्रकार दिगेंद्र कुमार ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक बार फिर से अपनी बहादुरी बहादुरी का परिचय दिया था,ऑपरेशन पवन के दौरान ही श्रीलंका में एक घटनाक्रम में तमिल आतंकवादियों द्वारा भारतीय सेना के 36 सैनिकों को बंदी बना लिया गया था । यह सभी सैनिक भारतीय सेना के विशेष दल के थे और उनको बंधक बने हुए 72 घंटे से ऊपर हो चुके थे, बंधक सैनिकों को बचाने के लिए कमांडो देवेंद्र कुमार और उनके साथियों ने एक विशेष अभियान चलाया। कमांडो देवेंद्र कुमार ने अपनी पीठ पर 40 किलो गोला बारूद और अपने बंधक साथियों के लिए बिस्कुट के पैकेट लेकर अभियान पर निकल पड़े, अपने बंधक सैनिकों को बचाने के लिए भारतीय सैनिकों को एक नदी को पार करना था इस नदी में आतंकियों द्वारा विद्युत करंट भी लगाया गया था ताकि कोई नदी को पार न कर सके, लेकिन कमांडो देवेंद्र कुमार ने अपने साथियों को बचाने के लिए अपनी जान की बिल्कुल भी परवाह ना करते हुए नदी में कूद गए और विद्युत तारों को काटकर नदी को पार कर लिया उसके बाद उनके बाकी साथी भी उनके पीछे-पीछे नदी के पार आ गए और वहां उन्होंने तमिल आतंकियों पर धावा बोल दिया और अपने 36 साथियों को आजाद कराया इस अभियान में तकरीबन 40 आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया, इस अभियान में दिगेंद्र कुमार की बहादुरी से प्रसन्न होकर जनरल कल कट ने दिगेंद्र कुमार को अपनी बाहों में भर लिया और उनको रोज दाढ़ी बनाने के नियम से छूट दे दी गई।
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1999 KARGIL WAR (ऑपरेशन विजय)
1999 में पाकिस्तानी सेना ने धोखे से कश्मीर की कुछ ऊंची चोटियों पर अपना कब्जा कर लिया था, अपनी जमीन को वापस प्राप्त करने के लिए भारतीय सेना ने भी कमर कस की थी भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय नाम से इस अभियान को शुरू किया, इसी अभियान को पूरा करने के लिए 02 राजपूताना राइफल्स को भी कारगिल जाने का आदेश दिया गया था, कारगिल युद्ध में तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करना बहुत मुश्किल था।तत्कालीन जनरल मलिक साहब ने 02 राजपूताना राइफल्स को यह काम सौंपा,02 राज राइफल का एक दल मेजर विवेक गुप्ता की अगुवाई में तोलोलिंग की तरफ बढ़ गया,जिसमें नायक दिगेंद्र कुमार भी शामिल थे।14 घंटे लगातार खड़ी चट्टानों पर रस्सियों के सहारे चलकर यह दल तोलोलिंग के करीब पहुंचा।वहा पर पाकिस्तानी सेना ने 11 बनकर बना रखे थे, नायक दिगेंद्र कुमार ने पहला बंकर उड़ाने की कसम खाई उसके बाद उनके बाकी नौ साथियों ने भी एक एक बक़र उड़ाने की कसम खाई, नायक दिगेंद्र कुमार ने 11 वे बंकर को भी उड़ाने की कसम खाई। जब दल आगे बढ़ा तो पाकिस्तानी सेना ने भारी हथियारों से उन पर फायर शुरू कर दिया,
NAIK Digendra Kumar आगे बढे मौसम खराब होने के कारण कुछ साफ साफ नहीं दिख रहा था,जब नायक दिगेंद्र कुमार ने आगे बढ़ने के लिए अपना हाथ एक पत्थर के बीच डाला तो दुश्मन की फायर करती मशीन गन की बैरल उनके हाथों में आ गई,नायक दिगेंद्र कुमार ने बैरल को पकड़कर बाहर खींच लिया,और एक ग्रेनेड निकालकर बंकर के अंदर फेक दिया जिससे पहला बंकर बर्बाद हो गया था ,लेकिन दुश्मन सतर्क हो गया था दुश्मन ने नायक दिगेंद्र कुमार और उनके दल पर भारी हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी थी,इस गोलाबारी में मेजर विवेक गुप्ता और बाकी 08 जावन भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे नायक दिगेंद्र कुमार भी बुरी तरह से घायल हो गए थे,NAIK Digendra Kumar को पांच गोलियां लग गई थी।
उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथियों का बदला लेने के लिए वे एक बार फिर से हिम्मत जुटा कर आगे बढ़े उन्होंने लगातार ग्रेनेड निकालकर बंकरों पर फेंके,तभी पाकिस्तानी सेना के मेजर अनवर खान उनके सामने आ गए ,नायक दिगेंद्र कुमार ने अनवर खान को पकड़ने की कोशिश की परन्तु अनवर खान भागने कि कोशिश में था,नायक दिगेंद्र कुमार ने छलांग लगाकर अनवर खान को पकड़ लिया,और अपने डीगर से अनवर खान की गर्दन काट दी।नायक दिगेंद्र कुमार ने 13 जून 1999 को सुबह के चार बजे तोलोलिंग पहाड़ी पर भारतीय झंडा फहराह दिया था! ऑपरेशन विजय में यह भारत की पहली जीत थी
नायक दिगेंद्र कुमार ने इस अभियान में असीम शौर्य का प्रदर्शन किया जिसके लिए भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1999 को वीरता पुरस्कार Mahavir Chakra से सम्मानित किया गया।
नमन है ऐसे वीर जवानों को जिन्होंने अपने फर्ज को पूरा करने के लिए एक बार भी अपने बारे में नहीं सोचा,।
जय हिन्द जय भारत!!!
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JAI HIND
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