सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल,परमवीर चक्र
अरुण खेतरपाल जीवनी - Biography of Arun Khetarpal in Hindi Jivani
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,भारत की भूमि वीरों की भूमि रहीं हैं,मैंने कहीं पढ़ा था कि बहादुरी किसी उम्र की मोहताज नहीं होती, सैकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल की वीर गाथा पढ़ कर सच में लगता है कि बहादुरी का उम्र से कोई लेना देना नही है, किसी को अगर अपने आप को साबित करना हो तो वो अपनी उम्र नहीं देखता ,वो अपनी इच्छा शक्ति से कुछ भी कर सकता है ,जी हां नही होने वाला काम भी मजबूत इच्छा शक्ति के सामने छोटा लगता है । सैकंड लेफ्टिनेंट अरूण ने 19 साल की उम्र में वो साहसिक,और गौरवशाली कार्य किया जिससे पूरे देश को तो उनपे गर्व हुआ ही,साथ ही दुश्मन भी उनकी वीरता का कायल हो गया, सैकंड लेफ्टिनेंट अरुण सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र (मरणोपरांत)हासिल करने वाले सैनिक हैं,तो चलिए पढ़ते हैं इस महान सैनिक की जिंदगी की छोटी मगर दमदार कहानी,,,,,,शुरुवाती जीवन...............
Second Lieutenant Arun Khetarpalका जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे में हुआ था, इनके पिता का नाम एम एल खेतरपाल था ,वे भारतीय सेना में कोर ऑफ इंजीनियर में सेवारत थे,जो बाद में ब्रिगेडियर के पद पर पहुंचे,अरुण की शुरवाती शिक्षा लॉरंस स्कूल, सनावर, हिमाचल प्रदेश में हुई. अरुण बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे,अरुण की खेल खुद में भी बहुत रुचि थी,अरुणतैराकी और स्नूकर के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे,अरुण के दादा भी ब्रिटिश इंडियन फ़ौज में थे,अरुण को बचपन से
घर में ही सेना का माहौल मिला ,इसलिए अरुण भी सेना में जाने की लिए उत्साहित थे,सन 1967 में अरुण ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा पास की और भारतीय सैन्य अकादमी(आई एम ए) में शामिल हो गए,अपनी ट्रेनिंग में अरुण ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया ,वे अपने कोर्स के कैप्टेन भी रहे, जून 1971में अरुण भारतीय सैन्य अकादमी(आई एम ए) से अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद पासआउट हुए,और उनको 17 पूना हार्स में बतौर सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट तैनात किया गया,अब वे अरुण खेत्रपाल से
सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल हो गए थे, उनको एक बहुत ही गौरवशाली इतिहास वाली रेजीमेंट में पहली पोस्टिंग मिली थी,इस रेजीमेंट(17पुना हॉर्स) के पास टैंक थे,और इसका इतिहास बाजीराव पेशवा द्वितीय से जुड़ा हुआ था ,17 पुना हॉर्स ने देश को एक से एक बढकर बहादुर ऑफिसर और जवान दिए थे,सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल 17 पुना हॉर्स को ज्वाइन करने के बाद उनको यूनिट ट्रेनिंग के लिए भेजा गया ,
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बसंतर की जंग की कहानी...............
16 दिसंबर 1971 शकरगढ़ सेक्टर पंजाब में 17पुना हॉर्स को फॉरवर्ड में कूच करने का आदेश मिल गया था,17 हॉर्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल हनूत सिंह,(हंटी) अपने ऑफिसर , जे सी ओ ,जवानों और अपने सजो सामान को लेकर फॉरवर्ड की तरफ कूच कर गए थे,इस देशप्रेमियों की टोली में एक 21 साल का सैनिक जिसे वहा पर नहीं होना चाहिए था क्युकी उसकी यूनिट की ट्रेनिंग बाकी थी लेकिन उसके देशप्रेम,और मात्रभूमि के प्रति समर्पण ,परिवार की सैनिक पृष्ठभूमि,और कुछ कर गुजरने की इच्छा से उनसे अपने कामंडर से युद्ध में जाने की अनुमति मागी,और उसके जोश और जज्बे को देख कर उनको युद्ध में जाने कि अनुमति मिल गई थी,उस सैनिक का नाम था Second Lieutenant Arun Khetarpal,और यही से शुरू हुई इनकी वीरता की कभी ना भूलने वाली कहानी,
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16 दिसम्बर को 17 पुना हॉर्स को बसंतर नदी को पार करके दुश्मन के इलाके में कूच कर दिया, दुश्मन ने इनके स्वागत के लिए माइन फील्ड बिछा रखा था,और वहा पर टैंको का भयानक युद्ध शुरू हो गया था, 17 पुना हॉर्स के सामने पाकिस्तान कि 13 लांसर पैटन टैंक्स के कर खड़ी थी,पाकिस्तान के पास पैटन टैंक थे इसलिए उनका पलड़ा भारी लग रहा था,
Second Lieutenant Arun Khetarpal 03 टैंक लेकर सामने से आ रही 13 लांसर के पैटर्न टैंको की कतार से भीड़ गया,
और सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, ने ऐसा साहस दिखाया कि पाकिस्तानी सेना के नाको में दम कर दिया,13 लांसर के 10 टैंक बर्बाद हो गए थे,पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूट गया था ,उनका आगे बढना रुक गया था,
उनका मनोबल इतना टूट गया था कि उनको आगे बढने से पहले दूसरी बटालियन की मदद लेनी पड़ी,l
Second Lieutenant Arun Khetarpal ने जो आखरी टैंक बर्बाद किया वो उनसे केवल 100 मीटर की दूरी पर था ,उनके टैंक में भी आग लग गई थी,अरुण खेतरपाल को टैंक छोड़ने का आदेश मिल गया था,परंतु सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल ने टैंक को नहीं छोड़ा उनका आखरी संदेश था""मेरी मशीन गन अभी फायर कर रही हैं,जब तक ये फायर करती रहेगी मैं फायर करता रहूगा, उनके टैंक में आग लग गई थी ,उनके टैंक के ड्राइवर नत्थू सिंह ने उनको बाहर निकाला,अरुण ने उनसे पानी मागा जब तक नत्थू सिंह पानी ले कर आए तब तक सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल वीरगति को प्राप्त हो गए थे
Second Lieutenant Arun Khetarpal की शहादत बेकार नहीं गई,भारत ने पाकिस्तान को करारी मात दे दी थी,
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Second LIEUTENANT Arun Khetarpal को युद्ध में उनके अदम्य साहस,कुशल नेतृत्व,और गजब की इच्छाशक्ति के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया,
कर्नल हनूत सिंह,(हंटी) को भी महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया,
अरुण खेत्रपाल के सम्मान में इंडियन मिलिट्री अकादमी(आईएमए) के स्टेडियम को अरुण खेतरपाल नाम दिया गया है.
इस प्रकार भारत माता के इस लाल ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया
सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल की ये शौर्य गाथा पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाएगी,और इसको सुनकर हमारी आने वाली पीढ़ी भी खुद को गौरान्वित महसूस करेगी
जय हिन्द,,
'""सैनिक कभी मरते नहीं ,वो अमर हो जाते है'"
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