फौज में महिलाएं भी पुरषों के साथ कन्धा मिला कर चल रही है indian army
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स्क्वाड्रन लीडर गुंजन सक्सेना
स्क्वाड्रन लीडर गुंजन सक्सेना एक ऐसा नाम है जो भारत में सभी महिलाओ के लिए गर्व का विषय है,
शुरुवाती जीवन.........
स्क्वाड्रन लीडर गुंजन सक्सेना (फ्लाइट लेफ्टिनेंट) का जन्म सन् 1975 में लखनऊ में हुआ था, इनके पिता का नाम लेफ्टिनेंट कर्नल अशोक कुमार सक्सेना है ,इनके पिता भी भारतीय सेना से सेवानिवृत है ,और गुंजन सक्सेना का एक भाई भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहा है,गुंजन सक्सेना ने अपनी शुरुवाती पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के हंसराज कॉलेज से अपनी bachelor of science की पढ़ाई पूरी करी, उसके बाद उन्होंने भारतीय वायु सेना में शामिल होने का मन बनाया,क्युकी वे बचपन से ही सैनिक माहौल में पली बढ़ी थी,,और उन्होंने उसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी,आखिरकार सितम्बर 1994 में वे उन 25 महिलाओं के दल में शामिल थी जिनको भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था,ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इनको ऊधमपुर (जम्मू) में पहली पोस्टिंग मिली, और फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली.!
1999 कारगिल का युद्ध.....
1999 के कारगिल के युद्ध में फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना को श्री नगर एयर बेस पर तैनात किया गया था और वह भी ऑपरेशन विजय का हिस्सा थी,उनको अपने चीता हेलीकॉप्टर से युद्ध में घायल और जख्मी हुए जवानों को रेस्क्यू करने का कार्य दिया गया था,रेस्क्यू का कार्य सुनने में तो बहुत आसान लग रहा है,परन्तु पाकिस्तानी सेना की भारी गोला बारी के बीच अपने सैनिकों को वहां से सुरक्षित बाहर निकालना बहुत ही मुश्किल कार्य था,लेकिन फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना के हौसलों के सामने ये मुश्किल कार्य भी आसान हो गया था,उन्होंने बहुत ही बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए युद्ध क्षेत्र से अपनी घायल सैनिक और ऑफिसरों को रेस्क्यू किया ,उन्होंने पाकिस्तान की भारी गोला बारी के बीच 13000 फीट से लेकर 19000 फीट पर स्थित भारतीय जवानों के लिए खाने पीने के सामान से लेकर गोला बारूद भी पहुंचाया,इस अभियान में कई बार उनका चीता हेलीकॉप्टर पाकिस्तान की फायरिंग से बाल बाल बचा,,उनके साथ एक और महिला पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट विद्या राजन भी थी, इन दोनों महिला पायलटो ने ऑपरेशन विजय में बहुत ही बहादुरी के साथ कार्य किया , सन 2004 में वें स्क्वाड्रन लीडर के पद से सेवनिवृत्त ही गई ,क्युकी उस समय तक भारतीय सेनाओं में महिलाओ के लिए स्थाई कमीशन का विकल्प नहीं था,स्क्वाड्रन लीडर गुंजन सक्सेना ने विपरीत माहौल में अपने आप को साबित किया है जो हमारे देश की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा दायक है,उन्होंने आत्म विश्वास और अपनी मेहनत से नहीं होने वाले कार्य को भी आसानी से कर दिया,और वे महिला शक्ति के रूप में उभर कर सामने आई ,इस महिला शक्ति को बार बार नमस्कार,
जय हिन्द वन्दे मातरम्
राइफलमैन शिशिर मल्ल,लेफ्टिनेंट संगीता मल्ल
उत्तराखंड की भूमि ने भारत देश को हमेशा वीर सपूत दिए हैं।और दी है वीर नारिया , उत्तराखंड के जवानों ने हमेशा से ही अपनी वीरता का लोहा मनवाया हैं,लेकिन उत्तराखंड की बेटियां नहीं किसी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं है ।आज आपको एक ऐसे ही जोड़ी के बारे में बताने जा रहा हूं।जिसमे एक बेटे ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया ,मगर बात यही रुकी नहीं ,बात तो शुरु हुई जब ,शहीद जवान की पत्नी ने भी सेना को ज्वाइन करने का फैसला लिया, जी हां आप लोग सही पढ़ रहे हैं जिस परिस्थिति में लोग टूट जाते हैं ,उनको समझ नहीं आता कि अब आगे क्या होगा ,उनकी आंखो से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे होते है./जिंदगी में उस परिस्थिति में एक शहीद सैनिक की पत्नी, फ़ैसला करती है ""कि वो भी भारतीय सेना को ज्वाइन करेगी""तो साथियों आपको बताता हूं आज ऐसे बहादुर सैनिक और उनसे भी बहादुर उनकी धर्मपत्नी की कहानी ,ऐसे लोग इस धरती में विरले ही पैदा होते हैं ।
ये कहानी है,""""""""""""""""'"'''''''''''""""
"राइफलमैन शिशिर मल्ल और उनकी पत्नी लेफ्टिनेंट संगीता मल्ल""
राइफलमैन शिशिर मल्ल का जन्म उत्तराखंड में देहरादून जिले के चंद्रबनी गांव में हुआ था ,इनके पिता भी 3/9 गोरखा रेजीमेंट से सूबेदार मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।राइफलमैन शिशिर मल्ल की शिक्षा राजा राममोहन राय स्कूल में हुई।संगीता मल्ल भी उनके साथ ही उसी स्कूल में पढ़ते थे।संगीता एक गढ़वाली परिवार से तालुक रखते थे। शिशिर सन 2005 में indian armyमें भर्ती हो गए,और वे भी 3/9 गोरखा रेजमेंट का हिस्सा बने।और संगीता मल्ल भी स्कूल में टीचर बनकर बच्चो को पढ़ाने लगी,वे दोनों एक दूसरे को पसन्द करते थे ,सन 2013 में शिशिर और संगीता ने विवाह कर लिया शादी के बाद संगीता मल्ल ने स्कूल टीचर की जॉब छोड़ दी।
सन 2015 में राइफलमैन शिशिर मल्ल के पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हो गई ।वे इस समय 32 राष्ट्रीय राइफल में तैनात थे।वे 02 सितम्बर 2015 को कश्मीर के बारामूला में एक सर्च अभियान दल का हिस्सा थे,अचानक आंतकवादीयो से मुद्धभेड होने पर राइफलमैन शिशिर मल्ल ने एक आतंकी को मार गिराया ,और दूसरे आतंकी को घायल कर दिया,परन्तु इस गोला बारी में इनको भी एक गोली लग गई और अत्याधिक मात्रा में रक्त बह जाने के कारण में वीर गति को प्राप्त हो गए।राइफलमैन शिशिर मल्ल को इस अदम्य साहस, कर्तव्यप्रायणता,और निस्वार्थ देश प्रेम के लिए 2016 में सेना मेडल(मरणोपरांत ) दिया गया। इस बलिदान से राइफलमैन शिशिर मल्ल तो सदा सदा के लिए अमर हो गए लेकिन यहां से एक नई कहानी भी शुरू हुई।जब उनके घर में उनकी शहादत की खबर आई तो मानो जैसे दुखो का पहाड़ गिर पड़ा हो ।उनकी परिवार वाली पर ,संगीता को तो जिसे सदमा ही लग गया हो,अभी तो 2 साल ही बीते थे शादी को,इस सदमे से उनका गर्भपात भी हो गया था, इसके बाद तो जैसे संगीता जी अंदर से टूट ही गई,और उनका हौसला भी टूट गया था, टूटता भी क्यू नहीं मुसीबतों का पहाड़ जो टूट गया था उनके ऊपर,अगर कोई आम इंसान होता तो जिंदगी भर इस सदमे से बाहर नहीं आ पाता ,लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था,इनकी सास, देवर,और शिशिर के दोस्तो ने इनको प्रेरित किया कि वे सेना में शामिल हों। हालाकि उसके बाद कुछ समय इन्होंने बैंक में भी कार्य किया। संगीता के पिता भी सेना में थे,उनके प्रोत्साहन से संगीता जी भी तैयार हो गई,और उन्होंने सेना की वीर नारी केमटी कि मदद से तैयारी शुरू कर दी .सेना में एक ऑफिसर के रूप में शामिल होना कोई आसान काम नहीं था,संगीता जी ने कड़ी मेहनत और लगन के साथ तैयारी करी और 3 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने एसएसबी परीक्षा पास कर ली उसके बाद वे ओ टी ए अकादमी में ट्रेनिंग के लिए चली गई और पासआउट के बाद सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत हुई। तो देखा आपने कितना बड़ा दिल होगा ,जज्बा होगा ,इनके पीछे,इस घड़ी में मोटीवेट होना भी सबके बस की बात नहीं है,और कोई होता तो हार जाता और हारते भी है,लेकिन संगीता जी ने हार नहीं मानी परिवार की मदद से वो इस सदमे से बाहर ही नहीं निकली बल्कि संगीता जी ने अपने पति राइफलमैन शिशिर मल्ल को सच्ची श्रद्धांजलि दी है
जय हिन्द।
मेजर मिताली मधुमिता
मेजर मिताली मधुमिता भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी हैं जिनको वीरता के पुरस्कार ""सेना मेडल "" से सम्मानित किया गया है,
मेजर मधुमिता संन 2000 में शॉर्ट सर्विस कमीशन को पास करके भारतीय सेना में शामिल हुई थी, उनको सेना शिक्षा कोर में बतौर लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया था, सन् 2010 में मेजर मिताली मधुमिता को काबुल में नियुक्त किया गया था, 26 फरवरी 2010 में अफगानिस्तान में काबुल में आतंकवादियों ने भारतीय दूतावास पर हमला कर दिया था,आतंकवादियों ने भारतीय दूतावास में बम से हमले किए थे,जिसके कारण कई लोगों की मृत्यु हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे,जब इस हमले कि जानकारी मेजर मधुमिता को प्राप्त हुई तब वे ,अपनी जान की परवाह ना करते हुए,भारतीय दूतावास के अंदर गई, जहां पर हमला हुआ था,और कई घायल नागरिकों और घायल सैन्यकर्मियों को मलबे से बाहर निकला,जिसकी वजह से कई लोगो की जान बचाई जा सकी,मेजर मधुमिता को वहा जाने से रोका भी गया ,परन्तु मेजर ने ,घटना स्थल पर जा कर साहसिक कार्य को अंजाम दिया,दूतावास में हुए इस हमले में सात भारतीयों समेत कुल 19 लोगो ने अपनी जान गंवाई थी, मेजर मधुमिता को उनके अनुकरणीय साहस ,के लिए वीरता पुरस्कार सेना मेडल से सम्मानित किया, मेजर मधुमिता ने भारतीय सेना में महिलाओं के शॉर्ट सर्विस कमीशन को लेकर भी बहुत कानूनी लड़ाई लड़ी,उनके इस प्रयास से सेना में महिलाओ के लिए भारतीय सेना में स्थाई कमीशन के दरवाजे खुल गए, हमारे समाज को इन महिला शक्ति से प्ररेणा लेनी चाहिए ,आजकल के दौर में कोई ऐसा कार्य नहीं है जो महिलाएं नहीं कर रही है ,ये हमारे समाज और उन लोगो के मुंह पर एक करारा तमाचा है ,जो लड़कियों को लड़कों से कम समझते है,और साथ ही भारत की तमाम लड़कियों कि लिए प्ररेणा स्रोत है जो जीवन में इनके जैसे नाम कमाना चाहती है,,मात्र शक्ति और इनको मेरा सत सत नमन,
जय हिन्द वन्दे मातरम्
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