मेजर रामास्वामी परमेश्वरन परमवीर चक्र (मरणोपरांत) जीवनी

 मेजर रामास्वामी परमेश्वरन परमवीर चक्र (मरणोपरांत)

मेजर रामास्वामी परमेश्वरन परमवीर चक्र (मरणोपरांत)
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भारतीय सैनिकों को जब कभी भी मौका मिला है ,उन्होंने अपनी वीरता,और शौर्य से यह साबित किया है,भारतीय सेना विश्व की सबसे दृढ़ और मजबूत सेना है,भारतीय सेना ने समय समय पर अपनी सरजमीं पर ही नहीं बल्कि विदेशी जमीन पर भी अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है,आज आप सब को एक ऐसे ही वीर सैनिक से रूबरू करवाने जा रहा हूं ,जिसने श्रीलंका कि जमीन पर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, इसलिए ताकि हमारे देश,और भारतीय। सेना का नाम गर्व से ऊंचा रहे,
                                         तो चलिए पढ़ते हैं मेजर रामास्वामी परमेश्वरन की गौरवशाली गाथा,-----------
             
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन को 25 नवंबर 1987 श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान  एलटीटीई विद्रोहियों के खिलाफ असीम शौर्य, कुशल नेतृत्व ,और भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा को जारी रखने के लिए , वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था,             

मेजर रामास्वामी परमेश्वरन का जन्म बम्बई  महाराष्ट्र में 13 सितम्बर 1946 को हुआ था,इनके पिता का नाम श्री के एस रामास्वामी और माता का नाम श्रीमती जानकी था,
मेजर रामास्वामी ने अपनी शिक्षा साउथ इंडियन एजुकेशन सोसाइटी, हाई स्कूल(1963), मुंबई से पूरी करी,इसके बाद मेजर  रामास्वामी ने 1968 में अपने स्नातक की डिग्री विज्ञान विषय में  हासिल की,,स्नातक करने के बाद मेजर  रामास्वामी ने ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी(OTA) में प्रवेश ले लिया और 16 जून 1972 को ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी से वह पासआउट हुए,और महार रेजिमेंट में बतौर सैकंड लेफ्टिनेंट नियुक्त हुए,उनको 15 महार रेजिमेंट में सामिल किया गया,, कुछ साल 15 महार रेजिमेंट में सेवा देने के बाद इनको सन 1983 में 5 महार रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया,इस दौरान मेजर रामास्वामी ने जम्मू कश्मीर और  कई अन्य जगहों पर आतंकवाद विरोधी अभियान में भाग लिया ,इस दौरान मेजर एक कुशल नेतृत्व वाले अधिकारी के रूप में उभर रहे थे,अपने साथियों के बीच में वह एक बहादुर और निष्ठावान ऑफिसर के रूप  में जाने जाते थे,उनके साथी उनको ""पैरी साहिब"" के नाम से पुकारते थे,मेजर परमेस्वरन किसी भी मुश्किल घड़ी से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहते थे,वे हमेशा अपने दल की अगुवाई करते थे,

इस बीच 1981 में मेजर ने श्रीमती  उमा से विवाह कर लिया,और अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत की, उनकी पत्नी एक लेखिका और कवि थी,


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हवलदार हंगपन दादा,(अशोक चक्र)
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ऑपरेशन पवन

                     
                             श्रीलंका में कुछ अल्पसंख्यक भी रहते थे,
ये अल्पसंख्यक तमिल भाषी थे,श्रीलंका के बहुसंख्यक समाज का इन अल्पसंख्यक लोगो के लिए रवैया बहुत खराब था,,अल्पसंख्यक समाज के लोगो के हितों,की अनदेखी की जाती थी,उनका शोषण हो रहा था,श्रीलंका की सरकार भी इस विषय में कुछ नहीं कर पा रही थी
उनके इस व्यवहार के कारण अल्पसंख्यक समाज के लोगो में सरकार के लिए गुस्से का माहौल था,और अंदर ही अंदर,वे एक बड़े विद्रोह की तैयारी कर रहे थे,अल्पसंख्यक समाज के लोगो ने एक उग्र आंदोलन शुरू कर दिया था,उनकी एक अगल तमिल राज्य की मांग थी,तमिल राज्य की मांग जोर पकड़ती जा रही थी,और इसके बीच ही कुछ गरम दल के तमिलों ने एक आतंकवादी संगठन बना दिया था, जिसका नाम था "" लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) ,"""
                    एलटीटीई ने अगल तमिल राज्य की मांग के लिए सशस्त्र आंदोलन शुरू कर दिया था,जिसके कारण श्रीलंका सरकार ने तमिल लोगो को निशाना  बनाना शुरू कर दिया था,श्रीलंका में विद्रोह चरम पर था,वहा पर जो आम तमिल लोग थे वे वहा से भागकर भारत,आने लगे,
और तमिलनाडु में शरणार्थी के तौर पर बसने लगे,ये भारत सरकार के लिए एक चिंता का विषय था,इससे निपटने के लिए भारत और श्रीलंका में एक समझौता हुआ,इस समझौते के मुताबिक भारत को अपनी सेना श्रीलंका भेजनी थी,ताकि वहा पर शांति स्थापित हो सके,और तमिल
शरणार्थियों का भारत आना रुक जाए,

इसके बाद भारतीय सेना ने श्रीलंका में अपनी सेना भेजी और इस ऑपरेशन का नाम  ऑपरेशन पवन रखा गया
इस समय मेजर रामास्वामी परमेश्वरन 8 महार रेजीमेंट का हिस्सा थे,8महार को ऑपरेशन पवन के लिए नियुक्त किया गया था,
            24 नवंबर 1987 की देर रात मेजर रामास्वामी को  जाफना में उडुविल के पास कंथारोडाई नामक जगह पर  एक खोजी अभियान शुरू करने का आदेश मिला था,
सेना को खबर मिली थी कि जाफना के एक घर में एलटीटीई आतंकियों द्वारा भारी मात्रा में गोला बारूद  जमा किया जा रहा है,
मेजर अपने 30 सैनिकों को लेकर इस अभियान को पूरा करने के लिए निकल पड़े थे,जब मेजर रामास्वामी परमेश्वरन और उनका दल जाफना में निर्धारित स्थान पर पहुंचा तो लिट्टे संगठन के हथियारों से लैस आतंकवादियों ने उनके दल के ताबड़तोड़ गोलाबारी शुरू कर दी,एलटीटीई के लोग भारी मात्रा में बड़े हथियारों से फायरिंग कर रहे थे,
मेजर परमेस्वरन ने अपने दल के साथ मिलकर इस गोलाबारी का मुंहतोड़ जबाव दिया,और अपनी जान कि बिलकुल भी परवाह ना करते हुए,अपने 10 जवानों के साथ भी रेगते हुए,उस दिशा में आगे बढ़ गए , जहां से एलटीटीई आतंकवादी गोला बारी कर रहे थे,,और बाकी बचे हुए सैनिकों को आतंकियों पर फायर करके उनका ध्यान भटकाने का  आदेश दिया
इसी बीच मेजर के हाथ और सीने में गोली लग गई,
घायल होने के बाद भी वे अपने दल का नेतृत्व करते रहे, और मेजर  ने एक आतंकी की राइफल छीन कर उसको मौत के घाट उतार दिया,,मेजर रामास्वामी परमेश्वरन बुरी तरह घायल होने के बाद भी अपने दल का नेतृत्व कर रहे थे,उनके दल ने 06 आतंकियों को मार गिराया,लेकिन अत्यधिक मात्रा में रक्त बह जाने के कारण मेजर रामास्वामी परमेश्वरन वीरगति को प्राप्त हुए,

 मेजर रामास्वामी परमेश्वरन को operation Pawan में  उनके असीम शौर्य,कुशल नेतृत्व,और निस्वार्थ देश प्रेम के लिए 1988 में वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र (मरणोपरांत) सम्मानित किया गया,

इस प्रकार भारत माता का एक और लाल हमेशा के लिए अमर हो गया,और साथ ही अमर हो गई उनकी वीरता की कहानी,जो भारत के लोगो के लिए प्रेणास्रोत हैं,
हम और हमारी आने वाली पीढ़ी मेजर रामास्वामी परमेश्वरन के वीरता की इस कहानी सुनकर हमेशा गौरवान्वित महसूस करेंगे,
                      जय हिंद






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