बाबा हरभजन सिंह,(भारतीय सैनिक की अद्भुत कहानी
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ये कहानी है विश्वास और श्रद्धा की,कहानी एक सैनिक की जो ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए ,मगर उनके देश प्रेम का जज्बा आज भी जीवित है वो शहीद होने के कई साल बाद भी ड्यूटी कर रहे हैं,ये सिर्फ एक मान्यता है,आज के वैज्ञानिक युग में इस बात को मानना बहुत मुश्किल है,लेकिन भारतीय सेना का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसको मानता है ।क्युकी सेना ऐसे इलाको में ड्यूटी करती है जहां पर जीवन मुश्किल ही नहीं अपितु,जिंदा रहना ही मुश्किल होता है। ,देखा जाय तो ये मान्यता हमे एक पॉजिटिव एनर्जी की तरफ ले कर जाती हैं,जब हम सोचते हैं की कोई ऐसी एनर्जी हमारे साथ है तो हम मुश्किल से मुश्किल रास्तों को हस कर पार कर जाते हैं।
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हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) हुआ था।
हरभजन सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई। उन्होंने डीएवी हाई स्कूल, पट्टी से दसवीं कक्षा पास की। और उसके बाद जून1966 में भारतीय सेना में भर्ती ही गए और पंजाब रेजिमेंट का हिस्सा बने।
कुछ समय बाद उनकी तैनाती सिक्किम के नाथू ला में हुई। 1968 में एक दिन वे खच्चर पर सवार होकर पहाड़ी रास्ते पर जा रहे थे।अचानक उनका पैर फिसल जाने के कारण वे खाई में गिर गए और नदी में उनका शव बह गया।उनके शव को बहुत खोजा गया परन्तु उनके साथी उनके शव को नहीं खोज सके उसके बाद उनको लापता घोषित किया गया।उसके बाद कुछ दिनों बाद बाबा अपने एक फौजी दोस्त(प्रीतम सिंह) के सपने में आए। उन्होंने अपने दोस्त को उनका शव पड़ा होने की जगह के बारे में बताया। प्रीतम सिंह ने इस बारे में अपने अधिकारियों को जानकारी दी। प्रीतम सिंह के सपने के आधार पर उस जगह पर जाकर हरभजन के शव की तलाश की गई, तब सेना को वहां पर बाबा हरभजन का शव पड़ा मिला।उसके बाद बाबा ने एक बार फिर अपने दोस्त प्रीतम सिंह के सपने में आकर उन्हें बताया कि उनके शव के साथ आगे क्या करना है। उन्होंने सपने में निर्देश दिया कि शव का अंतिम संस्कार नाथू ला में ही किया जाए और इस जगह पर उनकी याद में एक मंदिर बनवा दिया जाए। उसके बाद बाबा की याद में सिक्किम की राजधानी गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच एक छोटे से बंकर को मंदिर का रूप से दिया गया बाद में जब स्थानीय लोगो और सैनिकों की आस्था और विश्वास बढ़ा तो बाबा जी के मंदिर को सेना ने बड़ा बना दिया। ऐसा विश्वास है कि बाबा आज भी भारत चीन सीमा की चौकसी कर रहे है।वो रोज रात को ड्यूटी पर जाते हैं।बाबा जी खुद्द तो ड्यूटी करते ही है,लेकिन अगर कोई सैनिक ड्यूटी के दौरान सो जाता है तो उसको थप्पड़ भी लगता है बाबा जी का।चीन की सेना का भी मानना है कि उन्होंने भी रात को भारतीय सीमा में किसी को लगातार घोड़े पर घूमता देखा है
और स्थानीय लोगो का मानना है कि बाबा हर तकलीफ को दूर करते हैं,मंदिर में एक डायरी रखी है अगर उसमे कोई भक्त अपनी समस्या को लिखता है तो बाबा उस समस्या को जरूर हल करते हैं। मान्यता है कि यहां रखे पानी की बोतल में चमत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते है।
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बाबा हरभजन सिंह को बाकायदा तनख्वाह भी दी जाती थी उनको सेना में प्रमोशन भी दिया जाता रहा। यहां तक कि उन्हें कुछ साल पहले तक 2 महीने की छुट्टी पर गांव भी भेजा गया था। इसके लिए ट्रेन में सीट रिजर्व की जाती थी, तीन सैनिकों के साथ उनका सारा सामान उनके गांव भेजा जाता था तथा दो महीने पूरे होने पर फिर वापस सिक्किम लाया जाता था। बाद में ये मामला कोर्ट में गया और ये सब सेना को बन्द करना पड़ा। क्योंकि कुछ लोग इस आयोजान को अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला मानते थे, इसलिए उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, सेना में किसी भी प्रकार के अंधविश्वास की मनाही होती है। लिहाज़ा सेना ने बाबा हरभजन सिंह को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया।
नाथुला में जब भी भारत और चीन के बीच फ्लैग मीटिंग होती है तो चीन की सेना बाबा हरभजन के लिए एक अलग से कुर्सी भी लगाती हैं। आज यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए भी आते हैं। सेना के जवानों सहित यहां से गुजरनेवाला हर व्यक्ति बाबा हरभजन की समाधि पर रुकता है,और उनका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ता है
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मंदिर में बाबा हरभजन सिंह के जूते ,वर्दी,और बाकी का सामन रखा गया है। भारतीय सेना के जवान इस मंदिर की देखरेख करते हैं और उनके रोज उनके जूतों को पॉलिश भी करते हैं। वहां पर तैनात सिपाहियों का कहना है कि रोज उनके जूतों पर धूल लगी होती है और उनके बिस्तर पर सलवटें पर दिखाई पड़ती है
बाबा जी को सन 2006 में सेना से रिटायर कर दिया गया।इस दौरान उनका लगातार प्रमोशन भी हुआ है।बाबा जी ऑनरेरी कप्तान से रिटायर हुए हैं।
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आज के वैज्ञानिक युग में इस बात पर यकीन करना बहुत मुश्किल है।परन्तु लोगो और सैनिकों की माने तो आस्था और विश्वास का ये रूप बिलकुल सही है।
''"जय हिन्द"""""
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