लांस नायक अल्बर्ट एक्का (परमवीर चक्र)
"" गुमनाम हैं,आज भी वतन की खातिर सीने पर गोली खाने वाले,,कुछ लोग तो थप्पड़ खाकर ही मशहूर हुए जा रहे है,
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वैसे तो जिंदगी सभी जीते हैं,और मरते भी एक दिन सभी है लेकिन कुछ लोग अपनी जिंदगी में ऐसा काम कर जाते हैं जिससे वो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं,आज कुछ ऐसे ही वीर सैनिक के बारे में लिखने जा रहा हूं जिन्होंने इस देश के लिए अपने जीवन तक की परवाह नहीं की,जब तक उनके शरीर में खून की एक बूंद भी बाकी थी तब तक वे लड़ते रहे,और आम भावना से ऊपर उठकर इस मात्रभूमि के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे गए,उनके इस निस्वार्थ देश प्रेम और वीरता के लिए ये देश उनको हमेशा याद रखेगा,,,,,,किसी से सच ही कहा है,सैनिक मरते नहीं,वो तो देश की मिट्टी में , देश की हवाओं में,फिजाओं में सदा के लिए मिल जाते हैं,और अमर हो जाते हैं,और साथ ही अमर हो जाती है उनकी वीरता की कहानियां,
तो पढते हैं,, ऐसे ही वीर की एक सच्ची,और देश प्रेम की प्रेरणा देती कहानी,,,,,,
अलबर्ट एक्का ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में असीम शौर्य का प्रदर्शन किया था,जिसके लिए उनको वीरता का सबसे बड़ा पुरस्कार परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था,
अलबर्ट एक्का का जन्म झारखंड के गुमला जिले के जरी गांव में 28 सितम्बर 1942 को हुआ था,इनके पिता का नाम श्री जूलियस एक्का और माता का नाम श्रीमती मरियम एक्का था,अलबर्ट एक्का का जन्म एक आदिवासी इलाके में हुआ था, अपनी शुरुवाती शिक्षा पूरी करने के बाद,अलबर्ट एक्का सेना में भर्ती होना चाहते थे,
वो बचपन से ही एक अच्छे निशाने बाज,और हाकी के एक बेहतरीन खिलाडी थे,अलबर्ट एक्का की इच्छा सेना में जाने की थी ,दिसंबर 1962 में अलबर्ट एक्का भारतीय सेना में भर्ती हो गए,ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अलबर्ट एक्का बिहार रेजिमेंट का हिस्सा बने,और वे एक अनुशासित और अच्छे सैनिक के रूप में उभर कर आए,अलबर्ट एक्का हर एक कार्य को बहुत अच्छे से करते थे,
सन्1968 में जब 14 गार्ड रेजिमेंट का गठन हुआ तब अल्बर्ट एक्का और उनके कुछ साथियों को बिहार रेजिमेंट से 14 गार्ड रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया, इसके बाद अल्बर्ट एक्का ने 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया,और उनको लांस नायक के पद पर पदोन्नत किया गया,
1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध (गंगासागर का युद्ध)
1971 के युद्ध में लांस नायक अल्बर्ट एक्का की रेजिमेंट 14 गार्ड को गंगासागर में तैनात किया गया था,
इनकी रेजिमेंट को पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना को रोकना था, पाकिस्तानी सेना गंगासागर की तरफ से भारत में घुसना चाहती थी
पाकिस्तानी सेना अगरतला से भारी संख्या में भारत पर आक्रमण करना चाहती थी,क्युकी यहां से पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) की सीमा बहुत नजदीक थी,
3 दिसंबर को 14 गार्ड की बी कंपनी जब गंगासागर पहुंची,तब रेलवे स्टेशन पर ही भारी संख्या में गोला बारी शुरू हो गई थी,
लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने देखा कि दुश्मन की एक मशीन गन उनकी टीम पर भारी गोला बारी कर रही है , लांस नायक अल्बर्ट एक्का अपनी जान कि तनिक भी परवाह ना करते हुए मशीन गन के बिलकुल नजदीक पहुंच गए और दुश्मनो पर टूट पड़े,उन्होंने अपनी राइफल से दुश्मनों को मार गिराया और दुश्मन की मशीन गन को शांत
कर दिया,हालाकि इस गोलीबारी में वे भी बुरी तरह घायल हो गए,अपने घावों कि तनिक परवाह ना करते हुए लांस नायक अल्बर्ट भी अपनी कंपनी के साथ आगे बढ़ रहे थे,
आगे उनकी कंपनी के ऊपर दुश्मन की एक माध्यम मशीन-गन (MMG) एक दो मंजिला मकान से अंधाधुंध फायरिंग कर रही थी, जिसके कारण 14 गार्ड की बी कंपनी के कई जवान घायल हो गए और कुछ वीरगति को प्राप्त हो गए,लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने एक बार फिर से अपनी जान की परवाह ना करते हुए ,भिषण गोला बारी के बीच,दुश्मन के बिलकुल नजदीक पहुंच कर उनके बंकर में ग्रेनेड फ़ेक दिया,और दो दुश्मन सैनिकों को अपनी संगीन से मार गिराया,इसके बाद भी दुश्मन की माध्यम मशीन-गन (MMG) लगातार फायर कर रही थी,
लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने बुरी तरह घायल होने के बाद भी आगे बड़े,और बंकर की एक साइड की दीवार को तोड़ कर ,माध्यम मशीन-गन (MMG) चला रहे दुश्मन सैनिक को मार गिराया,परन्तु इस भारी गोलीबारी और नजदीकी लड़ाई में , लांस नायक अल्बर्ट एक्का भी वीरगति प्राप्त हो गए,
इस प्रकार , लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने अपनी यूनिट के आदर्श वाक्य पहला सदा पहला को पूरा करते हुए,इस देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी,
इस कार्रवाई में, लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने सबसे विशिष्ट वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया और सेना की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।जिसके लिए भारत सरकार द्वारा उनको वीरता का सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र (मरणोपरांत)दिया गया,और इनके नाम से एक डाक टिकट भी जारी किया गया,
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लांस नायक अल्बर्ट एक्का की इस वीरता से भरी सच्ची,और प्रेरणादायक कहानी को सुनकर हम और हमारी आने वाली पीढ़ी खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगी,
ऐसे महान लोगो की जीवनी भी स्कूल में पढ़ाई जानी चाहिए,ऐसा मेरा मानना है,
""हम भूल ना जाए उनको इसलिए लिखीं ये कहानी
थी खून से लथपथ काया,फिर भी बन्दूक हाथ में लेकर
एक ने दस दस को मारा,
वीर थे वो दीवाने,वीर थे वो अभिमानी,
हम भूल ना जाएं उनको इस लिए लिखी ये कहानी,
जय हिंद जय भारत,
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