लेफ्टिनेंट कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर (अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर ) परमवीर चक्र की जीवनी इन हिंदी
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प्रेम एक ऐसी भावना है , जो इंसान को कुछ भी करने पर मजबूर कर देती हैं,प्रेम में व्यक्ति बड़े से बड़ा कार्य भी कर जाता है,और ऐसे कदम उठा लेता है कि बाद में जब उसके कार्यों का पता चलता है तो सुनने वाला व्यक्ति सोचता है ऐसे कैसे किया होगा उसने , यहां पर बात कर रहा हूं देश प्रेम की ,!!! प्रेम तो प्रेम है,किसी से भी हो सकता है,और देश प्रेम में जो आनन्द है वो और कहा!!!!!,,
तो आज एक ऐसे ही वीर सैनिक की वीरता से भरी कहानी लिखने जा रहा हूं जिसने भारत की मिट्टी से प्यार किया ,और इस मिट्टी के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया!!:
लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर को 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में असीम वीरता ,कुशल नेतृत्व ,और निस्वार्थ देश प्रेम के लिए वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था,
शुरुवाती जीवन
कर्नल तारापोर का जन्म 18 अगस्त 1923 में बम्बई में हुआ था,इनके पिता का नाम श्री बी. पी. तारापोर था।
इनके दादा जी राजा शिवा जी महाराज की सेना में थे,इनके दादा जी को महाराज शिवा जी की तरफ से वीरता पुरस्कार 100 गांव दिए गए थे,इन गांवों में से एक मुख्य गांव था जिसका नाम तारा पोर था इसके कारण ही ये अपने नाम के आगे तारापोर लगाते थे,कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर का शुरुवाती शिक्षा पूना में हुई, वहीं से उन्होंने 10वी की परीक्षा उत्तीर्ण की, परिवार में सैनिक माहौल होने के कारण कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर ने भी सेना में जाने का मन बनाया और उन्होंने इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए,
सैनिक जीवन
सन् 1940 में वे सेना में भर्ती हो गए, गोलकुंडा में इनकी ट्रेनिंग शुरू हुई ,और 2 साल की कड़ी ट्रेनिग के बाद सन् 1942 में इनको हैदराबाद इंफेंट्री में बतौर सैकंड लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया,
हालाकि कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर किसी बख़्तरबंद रेजिमेंट में जाना चाहते थे,वे पैदल सेना में जाकर नाखुश थे,जब वे हैदराबाद सेना में थे उस समय एक बार हैदराबाद सेना के मेजर जनरल अल इदरुस उनकी बटालियन का दौरा कर रहे थे ,उस समय अचानक ग्रेनेड रेंज पर जीवित ग्रेनेड फेंकते समय वहीं पर गिर गया, ए॰ बी॰ तारापोर ने फुर्ती दिखाते हुए उस जीवित ग्रेनेड को उठा कर दूर फेंक दिया,हालाकि फेंकते समय ग्रेनेड फट गया और तारापोर जी घायल हो गए ,उस समय मेजर जनरल अल इदरुस वहीं पर मौजूद थे, वे तारापोर के अदभुत साहस से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने ए॰ बी॰ तारापोर को अपनी कार्यालय में बुलाया,और उनके इस कार्य के लिए उनको बधाई दी,इसी बीच ए॰ बी॰ तारापोर ने अपने दिल कि बात उनके सामने रख दी और किसी बख़्तरबंद रेजिमेंट में तबादले का निवेदन किया,जिसको मेजर जनरल अल इदरुस द्वारा मान लिया गया,ए॰ बी॰ तारापोर को पहली हैदराबाद इंपीरियल सर्विस लांसर में तैनात किया गया,
इसके बाद उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में भाग लिया,और पश्चिमी एशिया में अपनी सेना की साथ युद्ध के मैदान में बहुत वीरता से कार्य किया,
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1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध
सन् 1947 में आजादी के बाद हैदराबाद रियासत का भारत में विलय कर दिया गया, जिसके कारण हैदराबाद की सेना भी भारतीय सेना में शामिल हो गई,1951 में कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर को 17 पूना हॉर्स में स्थानांतरित कर दिया गया,17 पूना हॉर्स का अपना एक इतिहास था, जो वीरता और साहस से भरा हुआ था, वीरता के इस इतिहास में कई युद्ध लड़े और जीते थे पूना होर्स ने,
,1951 के बाद कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर ने पूना हॉर्स को अपनी सेवाएं दी,और सन् 1965 तक वे पूना हॉर्स के कमांडिंग ऑफिसर बन गए थे ,।
अप्रैल 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध की शुरुवात हो गई थी,दोनों ही तरफ से गोला बारी शुरू हो गई थी,पाकिस्तान अमेरिका से लिए हुए
पैटर्न टैंकों के भरोसे बहुत जोश में था लेकिन शायद वो इस बात को भूल गया था कि भारतीयों सैनिकों के हौसलों के सामने पैटर्न टैंक कुछ भी नहीं थे,
पूना हॉर्स भी युद्ध के मैदान में थी ,और कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर अपनी यूनिट का नेतृत्व कर रहे थे,11 सितम्बर 1965 को कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर की अगुवाई पूना हॉर्स सियालकोट सेक्टर की तरफ आगे बढ़ रही थी,और पूना हार्स को फिल्लौरा पर कब्जा करने का काम दिया गया था,सियालकोट सेक्टर में आगे बढ़ने के लिए फिलोरा पर कब्ज़ा करना बहुत जरूरी था,। पूना हॉर्स कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर की अगुवाई में तूफान की गति से फिल्लोरा और चामिंडा की तरफ आगे बढ़ रही थी, और बहुत ही जल्द उन्होंने फिलोरा पर कब्जा कर लिया था,पाकिस्तानी सेना इससे बौखला गई थी और आनन फानन में पाकिस्तानी सेना वाजिरवाली की तरफ से पैटर्न टैंक ले कर पूना हॉर्स को रोकने के लिए आगे बढ़ रही थी,और भारी गोला बारी शुरू कर दी थी,कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर अपनी जगह पर डटे रहे और चमिंडा की तरफ आगे बढ गए,भारी आर्टलरी फायर के बीच वे आगे बढ़ते रहे और दुश्मन पर अपने टैंको से फायर करते रहे,इस गोला बारी के बीच एक गोला कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर के टैंक के उपर गिर गया,वे जख्मी हो गए थे ,उनको पीछे हटने का हुक्म भी दिया गया,लेकिन भारत मां के इस वीर सपूत ने पीछे हटना मंजूर नहीं किया ,उन्होंने कहा ,अगर मेरे जवान ,और मेरी रेजिमेंट यहां पर है तो में पीछे कैसे जा सकता हूं,और वे वहीं अपने जवानों का नेतृत्व करते रहे ,उनके इस फैसले से पूना हॉर्स के जवान जोश से भर गए,और वे पाकिस्तानी सेना पर काल बन कर टूट पड़े ,
14 सितम्बर 1965 को पूना हॉर्स ने वज़ीर वाली में पाकिस्तानी सेना को हरा दिया, और कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर जख्मी हालत में वहा से चामुंडा, की तरफ बढ़ गए,।कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर के अगुवाही में 17 पूना हॉर्स ने पाकिस्तानी सेना के तकरीबन 60 टैंको को बर्बाद कर दिया था,और इनके सिर्फ 09 टैंक ही नष्ट हुए थे,।बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद भी कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर अपने जवानों का नेतृत्व करते रहे,और आखरी में 16 सितम्बर 1965 को यह वीर सपूत वीरगति को प्राप्त हो गया,वीरगति को प्राप्त होने से पहले उन्होंने अपनी साथी से कहा था कि उनकी आखरी इच्छा है कि उनका अंतिम संस्कार इसी युद्ध के मैदान में किया जाए,,बाद में उनकी अंतिम इच्छा को उनके साथियों द्वारा पूरा किया गया,
,इस तरह कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया,और भारत सरकार ने उनके असीम शौर्य,कुशल नेतृत्व और निस्वार्थ देश प्रेम के लिए वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया,
तो देखा आपने अगर कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर चाहते तो पीछे हट कर अपनी जान बचा सकते थे,वे आराम से अपना इलाज करा सकते थे,लेकिन नहीं उन्होंने वीरगति को अपने आप से चुना ,ऐसा होता है देश प्रेम, सच्चा प्रेम,,कर्नल ए॰ बी॰ तारापोर की इस वीरता से भारतीय सैनिक ,युवा पीढ़ी,और हमारे देश की आने वाली पीढ़ियां हमेशा प्ररेणा लेती रहेंगी ,और उनकी वीरता की कहानी ऐसे ही सुनाई और पढ़ाई जाएगी,
जय हिन्द वन्दे मातरम्,
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