कर्नल दिवाकर पद्म कुमार पिल्ले ( SHOURYA CHAKRA INDIAN ARMY)
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एक सैनिक होना कोई आसान बात नहीं है ,अगर आप एक सैनिक हैं तो आपको सिखाया जाता है कि अपनी जान की परवाह मत करो ,अपनी जान से पहले देश ,और देश में रहने वाले नागरिक , उस पल जब आपको पता हो की आपकी मौत हो सकती है तो उस समय जाहिर से बात है सब अपने बारे में ही सोचेंगे,किसी दूसरे को बचाने का तो ख्याल भी किसी के मन में नहीं आएगा क्योंकि उस समय तो खुद की जान बचाने के लाले पड़े रहते हैं,लेकिन एक सैनिक ही होता है जो अपनी जान की परवाह न करते हुए,पहले दूसरे लोगो की जान बचाने का कार्य करता है,चाहे इसकी कीमत एक सैनिक को जान देकर ही क्यों न चुकानी पड़े,
आज एक ऐसे ही सैनिक की सच्ची कहानी आप लोगो के सामने ले कर आया हु ,जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए दो मासूम बच्चों की जिंदगी बचाई,उनका नाम है
कर्नल दिवाकर पद्म कुमार
तो जानते हैं कर्नल पिल्ले के जीवन के कुछ रोचक तथ्य,
आपने सुना होगा कि कोई माता पिता किसी बच्चे को गोद लेते है लेकिन यहां पर एक पूरे गांव ने मिलकर एक सैनिक को ही गोद ले लिया ,जी हा उसी सैनिक का नाम है कर्नल पिल्ले!!!!!!!
शुरुवाती जीवन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कर्नल पिल्ले का जन्म केरल के कन्नूर में 12 अगस्त 1967 को हुआ था,।कर्नल पिल्ले बचपन से ही मेधावी छात्र थे,उनकी शिक्षा सैनिक स्कूल बेंगलूर में हुई,उसके बाद वे 1984 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) की परिक्षा उत्तीर्ण करने में सफल रहे,वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के 72 वे बैच में शामिल हुए,
सैनिक जीवन,,,,,,,,
कर्नल पिल्ले सन 1988 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से पासआउट हुए ,जिसके बाद उनको ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स की 4 रेजीमेंट में बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया,इसके बाद कर्नल पिल्ले में जम्मू कश्मीर और पंजाब में अपनी सेवाएं दी,इसके बाद कर्नल पिल्ले की पोस्टिंग सन 1994 में 8 गार्ड्स रेजीमेंट में कर दी गई ,। 8 गार्ड रेजीमेंट उस समय मणिपुर में तैनाद थी,मणिपुर उस समय आतंक वाद से गुजर रहा था, मणि पुर में स्थानीय आतंकी ग्रुप पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर ,नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (और भी कई अन्य छोटे छोटे दल सक्रिय थे ,INDIAN ARMY और इन आतंकी संगठनो के बीच मुदभेढ होती रहती थी ,25 जनवरी 1994 के दिन 08 गार्ड रेजीमेंट को इनपुट मिली की कुछ आतंकी मणिपुर के तामेलनाग में एक ब्रिज और एक टावर को उड़ाने की योजना बना रहे है,कर्नल पिल्ले(उस समय कैप्टेन) के नेतृत्व में एक गस्ती दल को आतंकियों को खोज बीन करने के लिए भेजा गया,
मौके पर पहुंचने पर दोनो तरफ़ से गोला बारी शुरू हो गई ,
आतंकी विरोधी अभियान में इनको काफी चोटे आई थी ,इनके हाथ और सीने में गोलियां लग गई थी,ग्रेनेड फटने से इनकी टांग का एक हिस्सा भी अलग हो गया था,
कर्नल पिल्ले बुरी तरह से घायल हो गए थे,इनके जिंदा बचने के बहुत कम चांस थे ,साथी सैनिकों द्वारा इनके लिए हेलीकॉप्टर मंगवाया गया ताकि इनको जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचाया जा सके, वही घटना स्थल पर फायरिंग से 2 बच्चे घायल हो गए थे ,वो दोनो भाई बहन थे,कर्नल पिल्ले ने अपने से पहले उन दोनो बच्चो को रेस्क्यू करने के लिए अपनी टीम के सदस्यों को बोला ,उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए , पहले दोनो बच्चो को रेस्क्यू करवाया ,
अन्त में 2 बच्चो सहित कर्नल पिल्ले की जान भी बच गई ,कर्नल पिल्ले ने मौत को मात दे दी थी,और इस घटना से पूरा तामेलनाग गांव जो एक आदिवासी बहुल क्षेत्र था ,कर्नल पिल्ले का मुरीद हो गया,उनके इस नेक काम ने वहा के ग्रामीणों ही नहीं बल्कि उस इलाके के विद्रोहियों का दिल भी जीत लिया था ,
उस समय कर्नल पिल्ले की उम्र केवल 26 साल थी ,और जिन बच्चो की जान उन्होंने बचाई उसमे एक की उम्र 13 साल और एक की 07 साल थी ,अभी हाल में ही उस लड़के की सादी हुई है जिसकी जान कर्नल पिल्ले ने उस टाइम जान बचाई थी, उस अभियान के बाद 2010 कर्नल पिल्ले उस गांव में गए ,जब उनको किसी के द्वारा पता चला की उस गांव के लोग आज भी उनको याद करते है ,क्योंकि उन्होंने उनके 2 बच्चो की जान बचाई थी,उसके बाद कर्नल पिल्ले ने तामेलनाग गांव के विकास के लिए बहुत कार्य किया ,आज उन्ही के कारण उस गांव तक रोड गई है ,उनके इस कार्य के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनको सम्मानित किया गया है,,
कर्नल पिल्ले अभी सेना से रिटायर हो गए है,और आज भी वे देश के विकास कार्य में लगे हुए है कर्नल पिल्ले को वीरता के दूसरे सबसे बड़े पदक SHOURYA CHAKRA से भी सम्मानित किया गया है,
जय हिंद जय भारत!!!!!
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