1971 की जंग के नायक परमवीर चक्र विजेता मेजर होशियार सिंह दहिया की वीरता की कहानी
मेजर होशियार सिंह दहिया(परमवीर चक्र)
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जो हार नहीं मानते यह दुनिया उनको सलाम करती हैं,जिसमें होता है कुछ कर गुजरने का जज्बा,ये दुनिया उनको याद करती हैं,अगर इंसान मन में ठान लें तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं होता है,आज एक ऐसी ही कहानी लिख रहा हूं,ये कहानी है ,एक ऐसे व्यक्ति की जिसने सेना में अपनी शुरुआत एक जवान से शुरू की और ब्रिगेडियर पर
खत्म,और इतना ही नहीं उन्होंने वीरता का सबसे ऊंचा पुरस्कार परमवीर चक्र भी प्राप्त किया,तो चलिए पढ़ते हैं,
खत्म,और इतना ही नहीं उन्होंने वीरता का सबसे ऊंचा पुरस्कार परमवीर चक्र भी प्राप्त किया,तो चलिए पढ़ते हैं,
""चलो फिर आज उनको याद कर ले
मेजर होशियार सिंह दहिया ने 1971 के भारत पाकिस्तान (बसंतर )के युद्ध में एक मोर्चे पर असीम शौर्य,कुशल नेतृत्व,का प्रदर्शन किया था,उनके इस निस्वार्थ देश प्रेम के लिए उनको वीरता का सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
मेजर होशियार सिंह दहिया का जन्म 05 मई 1937 में हरियाणा के सोनपत जिले के सिसाणा गांव में हुआ था, इनके पिता का नाम श्री हीरा सिंह दहिया था,।
होशियार सिंह शुरू से ही मेधावी छात्र थे,उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई स्थानीय स्कूल में ही पूरी करी,और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए पढ़ाई के साथ-साथ होशियार सिंह खेलकूद में भी अव्वल थे, वह बॉली बाल के एक बहुत बेहतरीन खिलाड़ी थे और पंजाब की टीम की तरफ से खेलते थे, बाद में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल मैचों में भी हिस्सा लिया,
एक मैच के दौरान उनके खेल से प्रभावित होकर जाट रेजीमेंट सेंटर के एक उच्च अधिकारी ने उनको सेना में आने की बात कही,और यही से उनके मन में सेना में भर्ती होने की बात बैठ गई.
सन् 1957 में होशियार सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गए,और 2 जाट रेजिमेंट का हिस्सा बने,क्युकी होशियार सिंह एक मेधावी छात्र थे,उन्होंने अपना सफर यही पर नहीं रोका,सेना में रहते हुए उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी और सेना में ऑफिसर की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली,और
1963 में 3 ग्रेनेडियर्स में बतौर सैकंड लेफ्टिनेंट नियुक्त हुए,
होशियार सिंह ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया,उसके बाद वे अपनी यूनिट के साथ यू एन मिशन पर भी गए,और कांगो में भी अपनी सेवाएं दी,
अब सैकंड लेफ्टिनेंट होशियार सिंह मेजर होशियार सिंह हो गए थे,उनकी समय समय पर पदोन्नति होती रही,
एक बार इनकी यूनिट लेह में तैनात थी,मेजर की तबीयत बिगड़ी हुई थी,डॉक्टर ने इनको आराम करने के लिए कहा था मगर एक बॉलीबाल के मैच में मेजर होशियार सिंह ने अपनी कंपनी की इज्जत के लिए मैदान में उतर गए,
वे मैच तो जीत गए परन्तु तबीयत खराब होने के कारण बेहोश होकर मैदान में ही गिर गए,उनको हॉस्पिटल ले जाया गया , वहा जब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि जब तबीयत ठीक नहीं थी तो मैच खेलने की क्या जरुरत थी,तब मेजर होशियार सिंह ने कहा"" डॉक्टर मैं अपने जवानों को पुख्ता बनाना चाहता हुं जो जवान खेल के मैदान में पूरी ताक़त लगा कर नहीं खेल सकता,वो जंग के मैदान में जान की बाजी कैसे लगाएगा,'"उन्होंने कहा कि जो काम मैं अपने जवानों से करवाना चाहता हुं,पहले वो काम मैं खुद करता हूं।
मेजर होशियार सिंह दहिया का जन्म 05 मई 1937 में हरियाणा के सोनपत जिले के सिसाणा गांव में हुआ था, इनके पिता का नाम श्री हीरा सिंह दहिया था,।
होशियार सिंह शुरू से ही मेधावी छात्र थे,उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई स्थानीय स्कूल में ही पूरी करी,और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए पढ़ाई के साथ-साथ होशियार सिंह खेलकूद में भी अव्वल थे, वह बॉली बाल के एक बहुत बेहतरीन खिलाड़ी थे और पंजाब की टीम की तरफ से खेलते थे, बाद में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल मैचों में भी हिस्सा लिया,
एक मैच के दौरान उनके खेल से प्रभावित होकर जाट रेजीमेंट सेंटर के एक उच्च अधिकारी ने उनको सेना में आने की बात कही,और यही से उनके मन में सेना में भर्ती होने की बात बैठ गई.
सन् 1957 में होशियार सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गए,और 2 जाट रेजिमेंट का हिस्सा बने,क्युकी होशियार सिंह एक मेधावी छात्र थे,उन्होंने अपना सफर यही पर नहीं रोका,सेना में रहते हुए उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी और सेना में ऑफिसर की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली,और
1963 में 3 ग्रेनेडियर्स में बतौर सैकंड लेफ्टिनेंट नियुक्त हुए,
होशियार सिंह ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया,उसके बाद वे अपनी यूनिट के साथ यू एन मिशन पर भी गए,और कांगो में भी अपनी सेवाएं दी,
अब सैकंड लेफ्टिनेंट होशियार सिंह मेजर होशियार सिंह हो गए थे,उनकी समय समय पर पदोन्नति होती रही,
एक बार इनकी यूनिट लेह में तैनात थी,मेजर की तबीयत बिगड़ी हुई थी,डॉक्टर ने इनको आराम करने के लिए कहा था मगर एक बॉलीबाल के मैच में मेजर होशियार सिंह ने अपनी कंपनी की इज्जत के लिए मैदान में उतर गए,
वे मैच तो जीत गए परन्तु तबीयत खराब होने के कारण बेहोश होकर मैदान में ही गिर गए,उनको हॉस्पिटल ले जाया गया , वहा जब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि जब तबीयत ठीक नहीं थी तो मैच खेलने की क्या जरुरत थी,तब मेजर होशियार सिंह ने कहा"" डॉक्टर मैं अपने जवानों को पुख्ता बनाना चाहता हुं जो जवान खेल के मैदान में पूरी ताक़त लगा कर नहीं खेल सकता,वो जंग के मैदान में जान की बाजी कैसे लगाएगा,'"उन्होंने कहा कि जो काम मैं अपने जवानों से करवाना चाहता हुं,पहले वो काम मैं खुद करता हूं।
1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध ( बसंतर की लड़ाई)
सन् 1971 में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया था,
15 दिसंबर 1971 को तीसरी (03)ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट को
शंकरगढ़ सेक्टर में जाने का आदेश मिला,इनको बसंतर नदी जो पाकिस्तान में थी उसके आगे जाकर कब्जा जमाना था,जिससे भारतीय सेना की इंजिनियर रेजिमेंट बसंतर नदी पर पुल बना सके, और सेना के टैंक ,पाकिस्तानी इलाके में प्रवेश कर सके,
यहां से मेजर होशियार सिंह की c कंपनी को जरपाल गांव में हमला करना था, c कंपनी मेजर होशियार सिंह की अगुवाई में आगे बढ़ रही थी, रास्ते में पाकिस्तानी सेना ने जगह जगह माइन फील्ड लगा रखे थे,परन्तु मेजर होशियार सिंह अपनी कंपनी के साथ लगातार जरपाल की तरफ एडवांस कर रहे थे, माइन फील्ड की परवाह ना करते हुए हुए तीसरी ग्रेनेडियर्स की c कंपनी ने, मेजर होशियार सिंह की अगुवाई में"" सर्वदा शक्तिशाली""(ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का युद्ध घोष) युद्ध घोष करते हुए पाकिस्तानी सेना पर धावा बोल दिया,हमला इतना जबदस्त था कि हमले में पाकिस्तानी सेना के पैर जरपाल से उखड़ गए,और जरपाल पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया था,
पाकिस्तानी सेना ने अगले दिन फिर से मेजर होशियार सिंह के दल पर भारी हमला कर दिया था,मेजर होशियार सिंह और उनके जवान हर हमले को नाकाम कर रहे थे,पाकिस्तानी सेना ने एक दिन में चार बार जरपाल पर हमला किया लेकिन हर हमले में उनको मुंह की खानी पड़ी,
इस घटना से पाकिस्तानी सेना तिलमिला उठी और उन्होंने जरपाल की तरफ अपने टैंको को एडवांस करा दिया था,मेजर होशियार सिंह ने जब टैंको की आवाज़ सुनी तो उन्होंने भी टैंको की सहायता मांगी , उनकी सहायता के लिए 07 पूना हॉर्स के सैकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल टैंक लेकर पहुंच गए थे,जिसकी मदद से पाकिस्तानी सेना का यह हमला भी विफल हो गया था,इस बीच मेजर होशियार सिंह और उनके कई जवान घायल हो गए थे,लेकिन फिर भी तीसरी ग्रेनेडियर्स की c कंपनी पूरी बहादुरी के साथ जरपाल पर कब्जा जमाए बैठी थी,
17 दिसंबर के सुबह एक बार फिर से दुश्मन की सेना ने बड़ी मात्रा में हमला बोला,मेजर होशियार सिंह बुरी तरह घायल होने के बावजूद अपने साथियों का नेतृत्व कर रहे थे,वो हर मोर्चे पर जाकर अपने जवानों का हौसला बढ़ा रहे थे,और भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने यह हमला भी नाकाम कर दिया था,पाकिस्तानी सेना के कमांडिंग ऑफिसर मोहम्मद अकरम राजा को अपनी जान गंवानी पड़ी जिसके कारण पाकिस्तानी सेना भाग खडी हुई,,इस प्रकार मेजर होशियार सिंह की अगुवाई में तीसरी ग्रेनेडियर्स की c कंपनी असीम शौर्य और बहादुरी का परिचय देते हुए जरपाल पर कब्जा ही नहीं किया बल्कि उसको कायम भी रखा,
26 जनवरी 1972 में मेजर होशियार सिंह को उनकी इस बहादुरी और कुशल नेतृत्व, निस्वार्थ देश प्रेम के लिए वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया,
मेजर होशियार सिंह ने इसके बाद भी सेना में अपनी सेवाएं जारी रखी और ब्रिगेडियर के पद से सेवानिवृत्त हुए,
6 December 1998 में इस महानायक ,और बहादुर सैनिक ने अपनी आंखे मूंद लीं,उनके योगदान को भारत देश हमेशा याद रखेगा,और उनकी वीरता की कहानियां पढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाएंगी,
हमारे देश के हर सैनिक , युवा,और हर एक नागरिक को इनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए,
जय हिन्द जय भारत
15 दिसंबर 1971 को तीसरी (03)ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट को
शंकरगढ़ सेक्टर में जाने का आदेश मिला,इनको बसंतर नदी जो पाकिस्तान में थी उसके आगे जाकर कब्जा जमाना था,जिससे भारतीय सेना की इंजिनियर रेजिमेंट बसंतर नदी पर पुल बना सके, और सेना के टैंक ,पाकिस्तानी इलाके में प्रवेश कर सके,
यहां से मेजर होशियार सिंह की c कंपनी को जरपाल गांव में हमला करना था, c कंपनी मेजर होशियार सिंह की अगुवाई में आगे बढ़ रही थी, रास्ते में पाकिस्तानी सेना ने जगह जगह माइन फील्ड लगा रखे थे,परन्तु मेजर होशियार सिंह अपनी कंपनी के साथ लगातार जरपाल की तरफ एडवांस कर रहे थे, माइन फील्ड की परवाह ना करते हुए हुए तीसरी ग्रेनेडियर्स की c कंपनी ने, मेजर होशियार सिंह की अगुवाई में"" सर्वदा शक्तिशाली""(ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का युद्ध घोष) युद्ध घोष करते हुए पाकिस्तानी सेना पर धावा बोल दिया,हमला इतना जबदस्त था कि हमले में पाकिस्तानी सेना के पैर जरपाल से उखड़ गए,और जरपाल पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया था,
पाकिस्तानी सेना ने अगले दिन फिर से मेजर होशियार सिंह के दल पर भारी हमला कर दिया था,मेजर होशियार सिंह और उनके जवान हर हमले को नाकाम कर रहे थे,पाकिस्तानी सेना ने एक दिन में चार बार जरपाल पर हमला किया लेकिन हर हमले में उनको मुंह की खानी पड़ी,
इस घटना से पाकिस्तानी सेना तिलमिला उठी और उन्होंने जरपाल की तरफ अपने टैंको को एडवांस करा दिया था,मेजर होशियार सिंह ने जब टैंको की आवाज़ सुनी तो उन्होंने भी टैंको की सहायता मांगी , उनकी सहायता के लिए 07 पूना हॉर्स के सैकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल टैंक लेकर पहुंच गए थे,जिसकी मदद से पाकिस्तानी सेना का यह हमला भी विफल हो गया था,इस बीच मेजर होशियार सिंह और उनके कई जवान घायल हो गए थे,लेकिन फिर भी तीसरी ग्रेनेडियर्स की c कंपनी पूरी बहादुरी के साथ जरपाल पर कब्जा जमाए बैठी थी,
17 दिसंबर के सुबह एक बार फिर से दुश्मन की सेना ने बड़ी मात्रा में हमला बोला,मेजर होशियार सिंह बुरी तरह घायल होने के बावजूद अपने साथियों का नेतृत्व कर रहे थे,वो हर मोर्चे पर जाकर अपने जवानों का हौसला बढ़ा रहे थे,और भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने यह हमला भी नाकाम कर दिया था,पाकिस्तानी सेना के कमांडिंग ऑफिसर मोहम्मद अकरम राजा को अपनी जान गंवानी पड़ी जिसके कारण पाकिस्तानी सेना भाग खडी हुई,,इस प्रकार मेजर होशियार सिंह की अगुवाई में तीसरी ग्रेनेडियर्स की c कंपनी असीम शौर्य और बहादुरी का परिचय देते हुए जरपाल पर कब्जा ही नहीं किया बल्कि उसको कायम भी रखा,
26 जनवरी 1972 में मेजर होशियार सिंह को उनकी इस बहादुरी और कुशल नेतृत्व, निस्वार्थ देश प्रेम के लिए वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया,
मेजर होशियार सिंह ने इसके बाद भी सेना में अपनी सेवाएं जारी रखी और ब्रिगेडियर के पद से सेवानिवृत्त हुए,
6 December 1998 में इस महानायक ,और बहादुर सैनिक ने अपनी आंखे मूंद लीं,उनके योगदान को भारत देश हमेशा याद रखेगा,और उनकी वीरता की कहानियां पढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाएंगी,
हमारे देश के हर सैनिक , युवा,और हर एक नागरिक को इनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए,
जय हिन्द जय भारत
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