सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे (परमवीर चक्र
परमवीर चक्र विजेताओं की शौर्य गाथा
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क्या लोग थे वो दीवाने ,क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी ज़रा याद करो क़ुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको ,इसलिए लिखी ये कहानी,
कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया ये गीत,ऐसा कहा जाता है कि जब स्वरकोकिला लता जी ने 1963 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर जब इस गीत को अपने स्वर दिए थे तो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की आंखो से भी आंसू आ गए थे,और आंसू निकले भी क्यों नहीं,इस गीत को जब भी कोई सुनता है तो उसकी आंखे नम हो ही जाती है,इतना त्याग और बलिदान किया हमारे देश के सैनिकों ने हमारे लिए, आज आपको एक ऐसे ही वीर सैनिक की कहानी बताने जा रहा हूं ,जिनका नाम था सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे (परमवीर चक्र)। सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे ने 1948 के भारत पाकिस्तान युद्ध में असीम साहस का परिचय दिया था,जिसके लिए भारत सरकार ने सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे को वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया था
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शुरुवाती जीवन........
सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे का जन्म कर्नाटक के करवार के नजदीक हावेरी गांव में 26 जून 1918 में हुआ था,इनके पिता नाम श्री राघोबा पी राने था,इनके पिता एक पुलिस कांस्टेबल थे, राम राघोबा राणे जी की शुरुवाती पढ़ाई गांव के स्कूल में ही हुई,अपनी पढ़ाई पूरी करन के बाद राम राघोबा राणे सन 1940 में ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गए, वह बॉम्बे इंजिनियर में शामिल हुए,ट्रेनिंग के दौरान उनको बेस्ट रिक्रूट के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया,,
सैनिक जीवन............
सेना में भर्ती होने के बाद और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद राम राघोबा राणे जी को 28 फील्ड कंपनी में पोस्टिंग किया गया,अब तक वे अपने कार्य कुशलता के कारण नायक के पद पर पहुंच गए थे,और इस बीच दूसरी तरफ दूसरे विश्व युद्ध का आगाज भी हो गया था,इस युद्ध में भारतीय ब्रिटिश सेना ने भी हिस्सा लिया,उनकी 28 फील्ड कंपनी को 26 इन्फैंट्री डिवीजन के साथ बर्मा में तैनाद किया गया , यहां पर उन्होंने जापानियों के सेना से लोहा लेना था,राम राघोबा राणे जी ने इस युद्ध में असीम साहस और कुशल नेतृत्व का परिचय दिया,उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर उनको हवलदार के पद पर पदोन्नत किया गया,1947 में देश के आजाद होने के बाद इनको भारतीय सेना में स्थानांतरित कर दिया गया,और जमादार (नायब सूबेदार)के पद पर पदोन्नत भी किया गया,
जल्द ही इन्होंने शॉर्ट सर्विस कमीसन की परीक्षा पास कर ली और 15 दिसंबर 1947 में इनको भारतीय सेना में कमीसन दिया गया और सैकंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया,
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1947 का युद्ध.........
देश आजाद होने के तुरन्त बाद ही पाकिस्तान ने भारत के उपर युद्ध थोप दिया था, मार्च 1948 में भारतीय सेना ने जम्मू के झांगर नामक जगह पर कब्जा करने के लिए अपनी टुकड़ियों को हुक्म दिया ,झांगर पर दिसम्बर 1947 में पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था ,भारतीय सेना की इन्फैंट्री यूनिट 4 डोगरा राजौरी से झांगर की तरफ कूच कर रही थी,इस दौरान 4 डोगरा ने नौशेरा के 11 किलोमीटर उत्तर की तरफ बरवाली रिज पर कब्जा कर लिया था,और अब 4 डोगरा रेजिमेंट को और आगे की तरफ एडवांस करना था,परंतु आगे के इलाके में बारूदी सुरंग और माइन फील्ड लगी हुई थीं जिसको पार करना बहुत मुश्किल काम था ,ये माइन फील्ड काफी बड़ी मात्रा में लगाया गया था,सहायक टैंक भी इसको पार करने में असफल थे, डोगरा रेजिमेंट के बहादुर सैनिकों ने बहुत वीरता का परिचय दिया था लेकिन अब उनको मदद कि जरूरत थी,?!??37 असाल्ट फील्ड कंपनी (बॉम्बे इंजिनियर)जो 04 डोगरा की मदद के लिए तैयार बैठी थी ,हुक्म मिलते ही 37 असाल्ट फील्ड कंपनी (इंजिनियर) का एक सेक्शन सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे के अगुवाई में माइन फील्ड को साफ करने के लिए निकल पड़े,और जैसे ही सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे और उनका दल माइन फील्ड और बारूदी सुरंगों की हटाने का काम कर रहा था,पकिस्तान सेना ने इनके दल के उपर भारी हथियारों से गोला बारी शुरू कर दी,इस गोला बारी में इनके दल के दो जवान वीर गति को प्राप्त हो गए,और बाकी 05 जवान भी घायल हो गए,सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे खुद भी जख्मी हो गए थे,लेकिन सभी जवानों के घायल होने के बावजूद भी सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे ने अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया और माइन फील्ड को साफ करने का कार्य जारी रखा ,और बहुत ही जल्द उनके दल ने शुरुवाती बारूदी सुरंगों को हटा दिया था,जिसके कारण भारतीय टैंक आगे बढ़ने में सक्षम हो गए थे ,लेकिन अभी पूरा कार्य समाप्त नहीं हुआ था,अभी सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे और उनके दल को टैंक के लिए सड़के भी साफ करनी थी ,जिसमें पाकिस्तानी सेना ने माइन फील्ड लगा रखा था,सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे और उनके दल ने 08 अप्रैल 1948 से 11 अप्रैल 1948 लगातार रात दिन माइन फील्ड हटाने का कार्य किया,उन्होंने ना केवल पाकिस्तानी सेना की तरफ से आने वाली भारी गोला बारी का सामना किया बल्किअपने दल के मनोबल को भी बढाये रखा,जिसके कारण वे बारूदी सुरंगों और माइन फील्ड को साफ करने में सफल रहे ,जिसके कारण 4 डोगरा रेजिमेंटऔर टैंक आगे की तरफ एडवांस कर सके ,और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के 500 से ज्यादा सैनिक मार गिरा और कई इलाकों पर कब्जा कर लिया,
सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे और उनके दल ने बिना कुछ सोचे अपनी जान की परवाह ना करते हुए दिन रात लगातार कार्य किया ,जिसके कारण ये मुश्किल कार्य पूर्ण हो सका,
इस युद्ध में अद्भुत साहस ,वीरता ,युद्ध कौशल,और कुशल नेतृत्व क्षमता के प्रदर्शन के लिए सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे को 1950 में वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया,
युद्ध के बाद ही लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत किया गया,और 1955 में स्थाई कमीसन दिया गया , 25 जून 1968 में वे मेजर के पद से सेवनिवृत्त हुए,
सन् 1994 में मेजर राम राघोबा राणे ने पुणे के सैनिक हस्पताल में अपनी आखरी सांस ली ,इस प्रकार इस सैनिक ने अपने जीवन के सबसे अनमोल दिन भारतीय सेना को दिए,और निस्वार्थ भाव से कार्य किया,
सैकंड लेफ्टिनेंट (मेजर)राम राघोबा राणे की वीरता की ये कहानी अमर हो गई है हमेशा हमेशा के लिए।,हमारे देश में आने वाली पीढ़ियां उनकी इस वीरता की सच्ची कहानी से प्रेरित होंगे,साथ भी आने वाले भारतीय युवा सैनिक भी इनसे प्ररेणा लेंगे,और सैकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे की वीरता को हमेशा सलाम करेंगे
जय हिन्द , जय भारत,
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